जमीन पर उतरे तारे, दीपों की रोशनी से नहा उठे घाट
पूरे दिन के विश्राम के बाद जैसे ही चांद ने अंगड़ाई ली, काशी के ऐतिहासिक घाट दीपों की रोशनी से नहा उठे। कहीं दीप माला सजी तो कहीं स्वास्तिक। कार्तिक पूर्णिमा पर असंख्य दीपों से जगमग काशी के घाट अलौकिक छटा बिखेर रहे थे। आतिशबाजी से आकाश में रोशनी की
लखनऊ। पूरे दिन के विश्राम के बाद जैसे ही चांद ने अंगड़ाई ली। काशी के ऐतिहासिक घाट दीपों की रोशनी से नहा उठे। कहीं दीप माला सजी तो कहीं स्वास्तिक। कार्तिक पूर्णिमा पर असंख्य दीपों से जगमग काशी के घाट अलौकिक छटा बिखेर रहे थे। आतिशबाजी से आकाश में रोशनी की अनुपम छटा बिखरती रही। मोक्षदायिनी काशी के प्राचीन ऐतिहासिक ८४ घाटों पर जलते असंख्य दीप। गंगा की पावन गोद में अठखेलियां करतीं दीपों की रोशनी। वेद मंत्रों व भजन के मध्य हर-हर महादेव की अनुगूंज। लाखों आस्थावानों को सुखद अहसास करा रहे थे। ऐसा लग रहा था, मानो धरा पर स्वर्ग के द्वार खुल गए हों और वहां से आने वाली रोशनी से काशी के प्राचीन घाट नहा उठे हों। कुछ ऐसा ही अनुपम-अलौकिक नजारा रहा बुधवार को देव दीपावली पर काशी केप्राचीन ऐतिहासिक घाटों का। दीपों के दप-दप से यह भी महसूस हुआ कि देवी-देवता आकाश से घाटों पर उतर आए हों और गंगा तट के आठ किलोमीटर इलाके में ही तीनों लोक समा गए हों। अस्सी से लेकर आदिकेशव व खिड़किया घाट तक रोशनी बिखेरते असंख्य दीप। हर शख्स को आहृलादित कर रही थी। मां गंगा के पावन तट पर दीपों की रोशनी थी तो आसमान में आतिशबाजी का आतिशी नजारा रहा।