फर्जी था अवध विश्वविद्यालय का पीजीडीसीए कोर्स
दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री की फर्जी डिग्री को लेकर लंबे समय से चर्चा में रहे फैजाबाद के डॉ.राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में कोर्स संचालन व संबद्धता का खेल नया नहीं है। यहां बगैर पाठ्यक्रम मंजूरी के ही पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (पीजीडीसीए) कोर्स को न सिर्फ
फैजाबाद (रमा शरण अवस्थी)। दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री की फर्जी डिग्री को लेकर लंबे समय से चर्चा में रहे फैजाबाद के डॉ.राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में कोर्स संचालन व संबद्धता का खेल नया नहीं है। यहां बगैर पाठ्यक्रम मंजूरी के ही पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (पीजीडीसीए) कोर्स को न सिर्फ संचालित किया गया बल्कि इसे बेहद लोकप्रिय बनाया गया।
हाल में ही जनसूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक यह कोर्स बगैर अधिकृत पाठ्यक्रम के वर्षों तक चलता रहा। हालांकि तीन वर्ष पूर्व इस कोर्स को विवि ने बंद कर दिया लेकिन इस गोरखधंधे में लिप्त लोगों का खुलासा नहीं हो सका। विवि के प्रशासक अब कटघरे में हैं। सवाल हर जुबां पर है कि आखिर संबद्धता के जरिए छात्रों को धोखे में रखने का खेल क्यों खेला जा रहा है।
अतीत में झांकें तो पीजीडीसीए का पाठ्यक्रम ऐसा रहा जिसे भले ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने बंद कर दिया हो लेकिन अभी तक उसकी चर्चा आम है। सूत्रों के मुताबिक कोर्स के बंद होने की वजह अधिकृत संस्था से अनुमति न होना बतायी गई लेकिन पर्दे के पीछे की एक बड़ी अनियमितता को सार्वजनिक नहीं होने दिया गया। इसमें कई तत्कालीन आलाधिकारियों के हाथ रंगे हैं। पूर्व कुलपति प्रो. आरसी सारस्वत के कार्यकाल में ही इस कोर्स के संचालन से विवि ने हाथ खड़े किए थे। विश्वविद्यालय परिसर के सहायक आचार्य डॉ. अनिल कुमार की मांगी गयी सूचना के उत्तर से कोर्स फर्जी होने के दावे पर मुहर लगती है।
विवि प्रशासन ने बताया है कि यह डिप्लोमा कार्यक्रम है। इसमें छात्रों को उपाधि प्रदान नहीं की जाती। सिर्फ अंकपत्र ही निर्गत किया जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि विवि के अध्यादेश में पीजीडीसीए के पाठ्यक्रम का उल्लेख नहीं है। प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार पीजीडीसीए का पाठ्यक्रम अध्ययन बोर्ड से अनुमोदित नहीं है। यहां तक कि विद्या परिषद व कार्य परिषद ने भी इस पर अपनी मुहर नहीं लगायी। इसके बावजूद इस कोर्स का धंधा फलता-फूलता रहा।