गंगा के मैदानी क्षेत्र भूकंप में भी महफूज
लखनऊ(रूमा सिन्हा)। भूकंपीय सक्रियता के आधार पर साइज्मिक जोन तीन में आने वाले लखनऊ सहित सूबे के कई जि
लखनऊ(रूमा सिन्हा)। भूकंपीय सक्रियता के आधार पर साइज्मिक जोन तीन में आने वाले लखनऊ सहित सूबे के कई जिले नेपाल में आए भूकंप के जबर्दस्त झटकों से सिर्फ इसलिए बच गए क्योंकि गंगा बेसिन के मोटे गद्देनुमा मिट्टी के स्ट्रेटा ने खतरनाक तीव्रता वाली भूकंपीय ऊर्जा को जज्ब कर लिया और केवल झटके ही महसूस किए गए। अन्यथा भूकंप की इस तीव्रता से बड़ी तबाही हो सकती थी।
भूगर्भ विशेषज्ञों के अनुसार गंगा का मैदानी क्षेत्र एल्यूवियम (मिट्टी का स्ट्रेटा) का बना है जो मोटे गद्दे के रूप में सुरक्षा कवच का काम करता है और भूकंपीय तरंगों को सोखने की क्षमता रखता है। इससे इमारतों को भारी नुकसान पहुंचने से रुक जाता है।
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सूबे के गर्भ में छिपी हैं भूकंपीय संवेदी दरारें
भूवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि प्रदेश के गंगा एल्यूवियम क्षेत्र में जमीन के गर्भ में काफी गहराई पर कई सक्रिय भूगर्भीय दरारें मौजूद हैं, जो भूकंपीय तरंगों को फैलाने में मदद करते हैं।
-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निकट 'दिल्ली-हरिद्वारभूगर्भीय रिज' भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र है।
- वहीं, जमीन के भीतर 10-12 किमी. की गहराई पर मौजूद 'मथुरा-मुरादाबाद फॉल्ट' तथा 'लखनऊ फाल्ट' सक्रिय दरारें मानी जाती हैं।
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भूगर्भीय प्लेटों के टकराने से होती है घटनाएं
भूविज्ञानी आरए शर्मा बताते हैं कि समूची पृथ्वी विभिन्न प्लेटों में बंटी है जिनके स्थिर अथवा गतिमान रहने से भूगर्भीय हलचलें और गतिविधियां होती हैं। 'गुरुत्वाकर्षण भूगर्भीय विसंगति' नामक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय भूखंड (इंडियन प्लेट) चार से पांच सेमी. प्रति वर्ष की रफ्तार से उत्तर दिशा की ओर निरंतर गतिमान है और इस प्लेट के एशियन प्लेट (जो स्थिर है) से टकराने से भूगर्भीय दबाव बराबर पैदा हो रहा है और धरती की गर्भ में लगातार ऊर्जा इकट्ठा होने से भूकंप जैसी घटनाएं होती हैं।