मनमानी व्याख्या पर अड़े हैं कैलाश चौरसिया
लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकने वाले बाल विकास व पुष्टाहार राज्य मंत्री कैलाश चौरसिया को भले ही मीरजापुर की एक कोर्ट ने तीन वर्ष कैद की सजा सुना दी है लेकिन चौरसिया तो अपने पर अड़े हैं। उनकी विधान सभा की सदस्यता समाप्त होने में
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकने वाले बाल विकास व पुष्टाहार राज्य मंत्री कैलाश चौरसिया को भले ही मीरजापुर की एक कोर्ट ने तीन वर्ष कैद की सजा सुना दी है लेकिन चौरसिया तो अपने पर अड़े हैं। उनकी विधान सभा की सदस्यता समाप्त होने में केवल प्रक्रियागत विलंब है और उसके बाद उनका मंत्री पद जाना भी तय है लेकिन स्वयं चौरसिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपने तरीके से परिभाषित करने पर अड़े हैं। अपनी इस कोशिश में वह विरोधाभासी बातें भी कह रहे हैं।
हाल ही में सजा मिलने के कारण विधान सभा की सदस्यता से हाथ धोने वाले महोबा की चरखारी सीट से सपा विधायक रहे कप्तान सिंह राजपूत के ताजा उदाहरण के बारे में राज्य मंत्री कैलाश चौरसिया ने कहा उनके 'केस' का 'नेचर' अलग था। उन्हें हाईकोर्ट से सजा हुई थी जबकि मुझे निचली अदालत से।
गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट ने दस जुलाई 2013 को ऐतिहासिक फैसले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ के अनुच्छेद चार को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसके तहत सांसद व विधायक सजा पाने के बावजूद तीन महीने तक अपने पद पर बने रहते हुए सजा के खिलाफ ऊपरी आदलत में अपील कर सकते थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि सजा सुनाए जाने के क्षण से ही सांसद अथवा विधायक की सदस्यता समाप्त मानी जाएगी। इसी आधार पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को लोकसभा व पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद को राज्य सभा की सदस्यता गंवानी पड़ी थी। उत्तर प्रदेश में पहला उदाहरण कप्तान सिंह राजपूत के सदस्यता गंवाने का है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहीं यह जिक्र नहीं किया है कि सजा देने वाली अदालत का स्तर क्या होगा। कैलाश चौरसिया का यह कथन भी असत्य है कि कप्तान सिंह राजपूत को हाईकोर्ट से सजा हुई। सच यह है कि राजपूत को जालौन की अदालत ने सुनाई थी। जाहिर है कि कैलाश चौरसिया जिन तर्कों का सहारा ले रहे हैं उनमें कोई दम नहीं है। अलबत्ता सदस्यता समाप्त होने की प्रक्रिया के चलते चंद दिन की मोहलत मिल सकती है लेकिन सदस्यता उनकी सजा सुनाए जाने वाले दिन से ही समाप्त की जाएगी।
मैं ऊपरी अदालत से 'स्टे' ले आऊंगा
कैलाश चौरसिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मुझ पर लागू नहीं होता क्योंकि मेरा केस दूसरों से अलग है। मेरे पास 90 दिन का समय है और इस बीच मैं ऊपरी अदालत से 'स्टेÓ ले आऊंगा।
यह है प्रक्रिया
संबंधित जिलाधिकारी कोर्ट के फैसले की सूचना शासन को देते हैं। शासन इसे भारत निर्वाचन आयोग को सीधे अथवा प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के माध्यम से भेज देता है। निर्वाचन आयोग सदस्यता समाप्त करते हुए विधान सभा सचिवालय को सीट के रिक्त होने की अधिसूचना जारी करने को कहता है और तदनुसार सीट रिक्त घोषित की जाती है।
आयोग को अभी जानकारी नहीं मिली : सिन्हा
उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी व भारत निर्वाचन आयोग के उप आयुक्त उमेश सिन्हा ने कैलाश चौरसिया के बारे में पूछे जाने पर कहा कि आयोग को अभी इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। सूचना मिलते ही आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
सरकार लेगी विधिक राय
कैलाश चौरसिया के मामले में सरकार हड़बड़ी में कोई निर्णय नहीं करना चाहती है। सरकार ने उनको मिली सजा के मामले में न्याय विभाग से राय मांगी है।
राज्यपाल कर सकते हैं बर्खास्त
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के सूत्रधार रहे गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के महासचिव,अधिवक्ता व पूर्व आईएएस अधिकारी एसएन शुक्ला का कहना है कि सरकारी मशीनरी से जुड़े व्यक्ति तो जितना संभव होगा मामले को विलंबित ही करेंगे जबकि अब तक मंत्री को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था। सजा पाते ही जो सदस्यता के अयोग्य हो गया उसे मंत्री पद पर बरकरार नहीं रखा जा सकता। सरकार अगर कुछ न करे तो राज्यपाल के पास अधिकार है कि वह मंत्री को बर्खास्त कर दें।
इस मामले में हुई सजा
मीरजापुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट राजेश भारद्वाज ने बीस वर्ष पहले 28 फरवरी को डाकिया से मारपीट, चिट्ठियों का बंडल छीनने तथा जान से मारने की धमकी देने के मामले में बेसिक शिक्षा एवं बाल विकास पुष्टाहार राज्य मंत्री कैलाश चौरसिया को दोषी पाते हुए तीन वर्ष कारावास और नौ हजार रुपये के अर्थ दंड की सजा सुनाई थी। बाद में न्यायालय ने बीस-बीस हजार के मुचलके पर उन्हें जमानत दे दी।