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रंगभरी एकादशी : भोले बाबा के भाल पर पहला गुलाल

फागुन शुक्ल एकादशी यानी रंगभरी एकादशी पर काशीवासियों ने भोले बाबा के भाल पहला गुलाल सजाया। हर हर महादेïव के उद्घोष व मंगल गीत-भजनों से औघड़दानी को रिझाया। बदले में पाप ताप से मुक्ति का आशीष तो पाया ही, होली व हुड़दंग की अनुमति भी ले ली। यह नेग था

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 01 Mar 2015 09:31 PM (IST)Updated: Sun, 01 Mar 2015 09:33 PM (IST)
रंगभरी एकादशी : भोले बाबा के भाल पर पहला गुलाल

लखनऊ। फागुन शुक्ल एकादशी यानी रंगभरी एकादशी पर काशीवासियों ने भोले बाबा के भाल पहला गुलाल सजाया। हर हर महादेïव के उद्घोष व मंगल गीत-भजनों से औघड़दानी को रिझाया। बदले में पाप ताप से मुक्ति का आशीष तो पाया ही, होली व हुड़दंग की अनुमति भी ले ली। यह नेग था देवाधिदेव महादेव के गौना का, जिसकी रंगत सुबह से ही काशी विश्वनाथ दरबार में बिखर आई। अबीर गुलाल इतने उड़े कि जमीन लाल गलीचे सी नजर आने लगी। परिसर शंखनाद व डमरुओं की गडग़ड़ागहट से गूंज उठा, इसी भव्यता के बीच निकली रजत पालकी में सवार बाबा की बरात।

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ब्रह्मïमुहूर्त में ही महंत आवास से होते बाबा के गौना बरात का उल्लास मंदिर परिसर में छाने लगा। वेद मंत्रों की सस्वर ध्वनि के बीच वर-वधू का पंचामृत स्नान और नख शिख साज शृंगार किया गया। रेशमी साड़ी में सजीं गौरा और बाबा के तन पर खादी फबी। शाही पगड़ी लगाए और सिर पर सेहरा सजाए बाबा का सविधि पूजन-अनुष्ठान किया गया। सपरिवार सजा बाबा दरबार और भक्तों ने दर्शन किया। मंदिर के महंत डा. कुलपति तिवारी ने आरती कर गौरा को ससुराल के लिए विदा किया। इसके साथ ही शहनाई की तान, शंखनाद व डमरुओं की थाप से मंदिर परिसर गूंज उठा। दूल्हा शंकर दुल्हन पार्वती को रजत पालकी में लेकर अपने धाम को चले। बारातियों के उल्लास हवा में घुले और कई क्विंटल गुलाल से वातावरण तक लाल हो गया। मंदिर के मुख्य परिसर में पालकी प्रवेश के साथ ही 'हर हर महादेवÓ व 'बोल बमÓ उद्घोष से जोश दोगुना हो उठा। गर्भगृह में शिव परिवार को प्रवेश कराने के लिए पालकी रखने तक में मशक्कत करनी पड़ी। मानो दुल्हन पार्वती के साथ गृह प्रवेश से पहले भक्तों की टोली 'नेगÓ लेने पर उतारू हो। नेग भी रुपये पैसे या सोना चांदी का नहीं, बाबा की कृपा का, आशीष का, जय का, विजय का। शिव परिवार की रजत प्रतिमाओं को गर्भगृह में स्थापित किया गया। बाबा के गौना पर संगीत संध्या शिवार्चनम में सुर साज गूंजे। लखनऊ की सुरभि टंडन ने कथक के भाव सजाए। दिल्ली की सुनंदा शर्मा ने ठुमरी और होरी गायन से बाबा को रिझाया। अजय प्रसन्ना ने बांसुरी व देवव्रत मिश्र ने सितार वादन की जुगलबंदी की।


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