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पीलीभीत टाइगर रिजर्व : मांस में जहर देकर मांद में देते मौत

रिजर्व होने के बावजूद तराई का जंगल राजा (बाघ) के लिए मुफीद नहीं रहा है। पीलीभीत में शिकारी-तस्कर गठजोड़ ने टाइगर रिजर्व को जकड़ लिया है। नेपाल से लगी सीमा के कारण बाघ के दुश्मन यहां शिकार कर पड़ोसी देश में ठिकाना बना लेते हैं। तभी चार वर्षों में पूरे

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 25 Feb 2015 02:59 PM (IST)Updated: Wed, 25 Feb 2015 03:04 PM (IST)
पीलीभीत टाइगर रिजर्व : मांस में जहर देकर मांद में देते मौत

लखनऊ। रिजर्व होने के बावजूद तराई का जंगल राजा (बाघ) के लिए मुफीद नहीं रहा है। पीलीभीत में शिकारी-तस्कर गठजोड़ ने टाइगर रिजर्व को जकड़ लिया है। नेपाल से लगी सीमा के कारण बाघ के दुश्मन यहां शिकार कर पड़ोसी देश में ठिकाना बना लेते हैं। तभी चार वर्षों में पूरे देश में बाघों की आबादी सवा गुना यानी 30 फीसद तक बढ़ी है लेकिन पीलीभीत टाइगर रिजर्व में घट रही है। बाघों की गणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक तीन वर्षों में यहां बाघों की संख्या 40 से घटकर 28 रह गई है। यहीं नहीं अन्य वनजीवों खुलेआम शिकार हो रहा है। उन्हों उनके वासस्थान पर ही मौत की नींद सुला दिया जाता है। आज भी सुबह-सबेरे यहां एक चीतल और बारहसिंघा का शव बरामद किया गया। उनकी मौत के कारणों का पता तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही चलेगा लेकिन वन्यजीवों पर मौत के खतरा जंगल पर मंडरा रहा है।

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नेपाल से लगा पीलीभीत का जंगल लंबे अर्से से बाघों के लिए मुफीद ठिकाना रहा है। इसीलिए 9 जून 2014 को इसे देश का 45वां टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। 2010-11 की गणना में यहां पर 40 बाघ होने का दावा किया गया था, लेकिन अब यह संख्या घटकर मात्र 28 बताई जा रही है। वन विभाग के अधिकारी भी आपसी संघर्ष में छह बाघों की मौत स्वीकार करते हैं।

हाल में मारे गए चार बाघ

दरअसल, पीलीभीत का जंगल हाल ही में बाघों की कब्र नहीं बना है। सिलसिला अर्से से चल रहा है। हद तो अभी जनवरी माह में हुई। नेपाल के कंचननगर कस्बे से पीलीभीत के गभिया सहराई निवासी दुलाल मंडल व खीरी के अनुज पांडेय को वहां की पुलिस ने बाघ की खाल, दांत व मांस आदि के साथ गिरफ्तार किया। उनकी निशानदेही पर पीलीभीत व लखीमपुर से 10 शिकारियों की गिरफ्तारी हुई। तब पता चला, एक-दो नहीं बल्कि शिकारियों ने चार बाघों को हाल ही में शिकार बनाया। इसके पहले एक बाघ का शव नदी में भी बहता हुआ पाया गया था। शिकारियों ने खुद स्वीकारा था कि वे दूसरे जानवरों का शिकार कर उनके मांस में जहर मिलाकर डाल देते हैं। इसे लेकर बाघ मांद में जाता है और इत्मीनान खाता है तो वह मौत के आगोश में समा जाता है।

कब-कब शिकार

2012: 24 मई को हरीपुर रेंज की धनाराघाट बीट में। 25 मई को हरीपुर रेंज की धनाराघाट बीट में। 12 अगस्त : हरीपुर रेंज की नहर किनारे।

2013: - 04 नवंबर : हरीपुर रेंज के महोफ कंपार्टमेंट 98 बी चार में। 26 नवंबर : बराही रेंज के कंपार्टमेंट 71 बी में।

2014: 16 अक्टूबर : महोफ रेंज की फैजुल्लागंज बीट में

2015: जनवरी : चार बाघ मारे गए, दो का मांस जमीन में गड़ा मिला। इसके पहले एक बाघ का शव नदी में भी बहता मिला।

कब कितने बाघ: 2006 में 36 बाघ। 2010-11 में 40। 2014 से अब तक गणना की तस्वीर साफ नहीं। 2015 में हालिया अनुमान के मुताबिक सिर्फ 28 बाघ बचे।

फॉरेस्ट गार्ड की आधी सीटें रिक्त

सचिव सेव इन्वायरमेंट वेलफेयर सोसाइटी टीएच खान ने बताया कि जिन पांच आरक्षित वन क्षेत्रों को मिलाकर टाइगर रिजर्व बनाया गया है, उसमें फॉरेस्ट गार्ड की करीब 50 फीसद सीटें रिक्त हैं। कई तो उम्रदराज हैं, जिनका खुद भी जंगल में बहुत मूवमेंट नहीं रहता। शिकारियों के संजाल को तोडऩे के लिए नेपाल और यहां की पुलिस को वन विभाग के साथ मिलकर संयुक्त अभियान चलाना होगा।

28 बाघ होने की जानकारी

डीएफओ कैलाश प्रकाश ने बताया कि टाइगर रिजर्व में 28 बाघ होने के आंकड़े प्राप्त हैं। शिकारियों पर पूरी तरह नजर रखी जाती है। यह सही है कि स्टाफ की कमी है। सेव टाइगर मुहिम में स्थानीय लोगों को भी जोड़ा जाएगा ताकि शिकारियों की गतिविधियों पर और पैनी नजर रखी जा सके।


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