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धरती के स्वर्ग से आए कलाकारों की काशी में सुर लय ताल की त्रिवेणी

झेलम के तट पर पला बढ़ा धरती के स्वर्ग कश्मीर का लोक संगीत बीती रात वाराणसी में गंगा का मीत बना। बारुदों की गंध और इससे जख्मों से राहत पाने के बाद अपनी पुरानी रवानी पाने की कामना उसे महादेव की नगरी में खींच ले आई। जम्मू कश्मीर व लद्दाख

By Nawal MishraEdited By: Published: Mon, 23 Feb 2015 11:24 AM (IST)Updated: Mon, 23 Feb 2015 11:27 AM (IST)
धरती के स्वर्ग से आए कलाकारों की काशी में सुर लय ताल की त्रिवेणी

लखनऊ। झेलम के तट पर पला बढ़ा धरती के स्वर्ग कश्मीर का लोक संगीत बीती रात वाराणसी में गंगा का मीत बना। बारुदों की गंध और इससे जख्मों से राहत पाने के बाद अपनी पुरानी रवानी पाने की कामना उसे महादेव की नगरी में खींच ले आई। जम्मू कश्मीर व लद्दाख से आए कलाकारों ने केसर की क्यारियों में उपजे लोकसंगीत को बाबा की दुलारी भगवती गंगा के चरणों में अर्पित किया। जी भर कर चहका-महका और मांगा अपनी सदियों पुरानी वही उड़ान जो जिंदगी में उल्लास का रंग भरती है। अस्सी घाट की सीढिय़ां गवाह रहीं कि अद्भुत नजारे ने संगीतज्ञों की इस नगरी का दिल जीत लिया। सुर साज के रसिकों ने सुर लय ताल की कलकल करती त्रिवेणी में गोता लगाया और तालियां बता रही थीं कि हर मन अघाया और हर हृदय से इसके उत्थान का आशीष बह आया।

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परंपरागत वेशभूषा में सजे सौ कलाकारों के सात सात दल ने वादियों की परंपरा से जुड़े गीत, संगीत-नृत्य और मस्ती के तराने घोले। श्रुति अधिकारी ने संतूर के तार छेड़े और प्रस्तुतियों की झड़ी लग गई। इसके बाद तो गोजरी गायन, पहाड़ी गायन, बच नगमा और कुड़ नृत्य, धमाली नृत्य, घेराऊ नृत्य, जबरो नृत्य, रुप नृत्य, भाड़ पाथर तथा डोगरी नृत्यों से सांकृतिक छटा बिखेरी और समा बांध दिया। आतंक के निर्मम पंजों तले दब कर कराहते लुप्त प्राय वाद्य भी कुछ इस तरह अपनी मौज में ठनके, दिल से झनके और कानों से होते हृदय की कोटरों तक उतर गए। झंझावातों के बाद भी किस कदर उसने अपने आप को सहेज कर रखा इसका अहसास भी कराया।

इससे पहले उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के तत्वावधान में आयोजित इस अनूठी लोक संगीत संध्या का उद्घाटन मंडलायुक्त आरएम श्रीवास्तव ने दीप जलाकर किया। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर व काशी दोनों स्थान भारतीय संगीत और कला के लिए मशहूर हैं। इन्हें जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। आयोजन की सफलता से अभिभूत एनजीजेडसीसी के निदेशक गौरव कृष्ण बंसल ने मार्च में एक बार फिर इस उत्सव को उत्तर पूर्व की झांकी के साथ दोहराने का वादा किया। लगे हाथ इसे आक्टेव महोत्सव का नाम भी दे दिया। स्वागत जम्मू कश्मीर कला संस्कृति भाषा अकादमी के अतिरिक्त सचिव अमरेंद्र सिंह, संचालन संजय पुरुषार्थी व धन्यवाद ज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र प्रमुख डा. रत्नेश वर्मा ने किया।


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