विधान परिषद चुनाव के लिए सियासी गर्माहट बढ़ी
लखनऊ(राज्य ब्यूरो)। उत्तर प्रदेश की 30 जनवरी को रिक्त हो रही विधान परिषद की 12 सीटों पर निगाहें लगाए
लखनऊ(राज्य ब्यूरो)। उत्तर प्रदेश की 30 जनवरी को रिक्त हो रही विधान परिषद की 12 सीटों पर निगाहें लगाए दावेदारों ने गणेश परिक्रमा शुरू कर सियासी गर्माहट बढ़ा दी है। विधायकों की संख्या आधारित चुनाव में बसपा के साथ भाजपा को नुकसान झेलना होगा तो सपा को चार सीटों का लाभ मिलना तय है। कांग्रेस की यथास्थिति बनी रहे, इसके लिए रालोद या सपा की मेहरबानी मिलना जरूरी है।
जाहिर है अधिक विधायक होने के कारण सपा के सबसे ज्यादा सदस्यों को विधानपरिषद में जाने का अवसर मिलेगा। एक विधान परिषद सदस्य के निर्वाचन को 36 विधायकों का समर्थन जरूरी है। ऐसे में 229 विधायक वाली सपा छह सदस्यों को आसानी से जिता सकती है। इसके बाद भी उसके पास अतिरिक्त वोट रहेंगे। सपा के इन ज्यादा वोटों पर कांग्रेस की निगाहें भी लगी हैं। राज्यसभा निर्वाचन की तरह संभव हुआ तो कांग्रेस को रालोद का साथ लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उच्च सदन में यथास्थिति बनी रहेगी।
विधान परिषद चुनाव के लिए सपा में मारामारी अधिक है परन्तु स्वास्थ मंत्री अहमद हसन की सदस्यता पर आंच नहीं आएगी। डा. सरोजनी अग्रवाल व रमेश यादव को सीट बचाए रखने में मुश्किलें आएंगी क्योंकि वैश्य कोटे से अन्य दावेदारों में सुरेंद्र मोहन, गोपाल अग्रवाल, संजय गर्ग व संदीप बंसल जैसे व्यापारी नेता भी कतार में हैं। सपा में सर्वाधिक रस्साकसी मुस्लिम व पिछड़े वर्ग से दावेदारों में है। अगर रमेश यादव सीट बचाए रखते हैं तो भी तीन अथवा चार पिछड़े नेताओं को विधानपरिषद भेजकर सत्तारूढ़ दल भाजपा में बढ़ते पिछड़े प्रेम का जवाब देने की स्थिति में होगी। प्रमुख दावेदार डा. राजपाल कश्यप, रामजतन राजभर, संजय लाठर, उमाशंकर यादव, रामवृक्ष यादव, सुनील साजन एवं साहब सिंह माने जा रहे हैं। मुस्लिमों में नया नेतृत्व तैयार करने के नाते आशु मलिक और जावेद आब्दी व जफर अमीन डक्कू जैसे नाम चर्चा में हैं तो उज्ज्वल रमण सिंह व आनंद भदौरिया का दावा भी मजबूत है।
बसपा में केवल दो सदस्य जिताने की विधायक संख्या है। जिनमें एक नसीमुद्दीन सिद्दीकी की कुर्सी कायम रहना तय है। सवाल केवल एक सीट का रहेगा। वर्तमान सदस्यों धर्मप्रकाश भारती, अशोक कुमार सिद्वार्थ, प्रताप सिंह बघेल, लोकेश प्रजापति व महेश आर्य में से किसी एक का टिके रहना आसान नहीं दिख रहा है। ऐसे में नए चेहरे को सामने लाने की उम्मीद है। भाजपा में स्थिति जटिल है। मात्र एक सदस्य जिताने की स्थिति ही होने और दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त नेतृत्व की मुश्किलें खड़ी कर सकती है। माना जा रहा है इस बार मोदी फार्मूले पर किसी पिछड़े वर्ग अथवा दलित समुदाय से विधान परिषद सदस्य बना भाजपा वोटों का गणित सुधारने की कोशिश करेगी। इस संभावना के चलते विनोद पांडेय व बाबूराम एमकाम को सीट बचाने का संकट हो सकता है लेकिन स्वतंत्रदेव सिंह, बाबू राम निषाद, डा. रमापति शास्त्री, बहोरन लाल मौर्य, परशुराम कुशवाहा, भूपेंद्र सिंह, लक्ष्मण आचार्य एवं रामनरेश रावत जैसे नामों में किसी की लाटरी लग सकती है।
रालोद की दावेदारी में राज्यसभा की तरह पेंच फंस सकता है। कांग्रेस के सपा की ओर नरम रुख अपनाए जाने से रालोद के 8 विधायकों की संख्या को अनदेखा भी किया जा सकता है। कांग्रेस मेंडा.ओमप्रकाश त्रिपाठी का उत्तराधिकारी बनने के दावेदार कम नहीं हैं। देखना है कि रालोद व कांग्रेस गठबंधन का हश्र क्या होगा।
विधानसभा में ताजा दलीय स्थिति
दल- विधायक संख्या
1. सपा- 229
2. बसपा- 080
3. भाजपा - 041
4. काग्रेस- 028
5. रालोद- 008
6. पीस पार्टी - 004
7. कौएद - 002
8.राकापा - 001
9.अपना दल - 001
10.आइएमसी - 001
11. टीएमसी - 001
12. निर्दलीय - 006
13-नामित सदस्य- एक।