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संकोच तोड़ने का महाभियान

वाराणसी (जयप्रकाश पाण्डेय)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय समा

By Edited By: Published: Sun, 09 Nov 2014 05:01 PM (IST)Updated: Sun, 09 Nov 2014 05:01 PM (IST)
संकोच तोड़ने का महाभियान

वाराणसी (जयप्रकाश पाण्डेय)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय समाज की सबसे बड़ी विडंबना पर प्रहार करने का महाभियान छेड़ दिया है। विडंबना है उच्च इकाइयों की सबसे निचली पायदान से दूरी।

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देश की सर्वोच्च संस्था, प्रधानमंत्री के पद को उन्होंने ग्राम प्रधान, सेविकाओं व श्रमिकों के समक्ष समान रूप से प्रदर्शित करते हुए समाज को पैगाम दे दिया कि अब इस अंतर को पाटने में आड़े आ रहे संकोच को तोड़ने का महाभियान शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं, नरेंद्र मोदी ने काशी से नौ रत्‍‌नों की घोषणा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सूची में शीर्ष स्थान दिया, यह राजनीतिक संकोच तोड़ने के महाभियान का चरम था। इसके पहले शुक्रवार को जयापुर गांव में मोदी ने मंच पर सपा सरकार के मंत्री सुरेन्द्र पटेल को भरपूर सम्मान देते हुए खूब बातें कीं। यह दलगत भावना के संकोच से बहुत ऊपर की कवायद थी। इसके पहले की भी बात करें, तो लालपुर फैसिलिटेशन सेंटर के शिलान्यास के दौरान प्रधानमंत्री ने 16 जिलों के जिन सहकारी बैंकों के पुनर्जीवन के लिए 2375 करोड़ देने का एलान किया, उनके कर्ता-धर्ता गैर भाजपाई ही हैं। मोदी ने यह कदम जनहित में आर्थिक सुधार को देखते हुए उठाया, यह पहल भी राजनीतिक संकोच तोड़ने की कवायद थी।

जयापुर गांव में लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई ग्राम प्रधान दुर्गावती देवी को हो रही दिक्कत को देखते हुए प्रधानमंत्री ने स्वयं उठकर माइक व्यवस्थित किया। यह सर्वोच्च पंचायत का निचली पंचायत का अभूतपूर्व सम्मान था। अस्सी घाट पर प्रधानमंत्री ने समाज की सबसे निचली इकाई, श्रमिक वर्ग के साथ खड़े होकर फावड़ा चलाया। यह सबसे बड़े पद और सबसे निचले कद के बीच संकोच खत्म करने का पवित्र आगाज था।

नरेंद्र मोदी तो मानो ठानकर बैठे थे कि काशी से पूरे देश को, संस्थाओं के बीच अनावश्यक दूरी की विडंबना रूपी दीवार तोड़ने का पैगाम पूरी मजबूती से देकर ही मानेंगे। माता आनंदमयी अस्पताल में प्रधानमंत्री ने बच्चों के आगे सिर झुका दिया, छात्राओं के आगे हाथ जोड़ दिए ..और सेविकाओं पर पुष्पवर्षा की। अब इससे ज्यादा किसी सर्वोच्च संस्था से क्या अपेक्षा की जा सकती है। संस्थाओं, व्यक्तियों व दलों के बीच खाई पाटने में आड़े आ रहे संकोच को तोड़ने का यह महाभियान करामात तो करेगा, वक्त चाहे जितना लग जाए।


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