सुरेंद्र कोली की फांसी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की रोक
लखनऊ। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने आज निठारी कांड के नरपिशाच सुरेंद्र कोली की फांसी पर 25 नवं
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी काड के दोषी सुरेन्द्र कोली की फासी पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से याचिका पर 21 नवम्बर तक जवाब मागा है। याचिका की सुनवाई 25 नवम्बर को होगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को सुरेन्द्र कोली की दया याचिका की पत्रावली भी अगली तिथि पर पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश फासी देने में 3 वर्ष 3 माह की देरी के कारण दिया है। कोली डासना जेल में बंद है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड तथा न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खण्डपीठ ने पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्त्रेटिक राइट की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। 8 फरवरी 2005 को 14 वर्षीय बालिका रिम्पा हलधर की निर्मम हत्या सहित अन्य मामलों में कोली को फासी की सजा सुनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी फासी की सजा बरकरार रखी है। कोली को फासी देने का वारंट भी जारी हो चुका है। कोली ने दया याचिका प्रदेश के राज्यपाल के समक्ष दाखिल की जिसके निस्तारण में दो वर्ष लगा और इसके तीन माह बाद दया याचिका राष्ट्रपति को भेजी गई। दोनों दया याचिकाएं निरस्त हो गईं। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितम्बर 14 के आदेश से फासी पर 28 अक्टूबर 14 तक रोक लगा दी थी। 28 अक्टूबर को कोली की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। इसके बाद यह जनहित याचिका दाखिल कर जीवन के मौलिक अधिकार की दुहाई देते हुए फासी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील किए जाने की इस आधार पर माग की गई है कि फासी देने में अनावश्यक देरी से मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। याचिका में राष्ट्रपति व राज्यपाल द्वारा दया याचिका खारिज करने की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका पर भारत के अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अशोक मेहरा, प्रदेश के मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय, शासकीय अधिवक्ता अखिलेश सिंह आदि अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा।