भारत-नेपाल सीमा का जवाभारी क्षेत्र आतंकियों का महफूज ठिकाना
लखनऊ। भारत-नेपाल की खुली सीमा पर आंतकी गतिविधियों को बढ़ावा मिलने लगा है। अराजकतत्व इसी र
लखनऊ। भारत-नेपाल की खुली सीमा पर आंतकी गतिविधियों को बढ़ावा मिलने लगा है। अराजकतत्व इसी रास्ते भारत में घुस आते हैं। इनके मददगार एक दशक में फर्श से अर्श तक पहुंच गए। इनकी अकूत संपदा देख खुफिया विभाग अब ऐसे लोगों की कुंडली खंगालने में लगा है।
नेपाल के जवाभारी में इनके नए सुरक्षित ठिकाने का राजफाश होने पर खुफिया विभाग के कान खड़े हो गए हैं। सप्ताह भर पहले धर्म प्रचार के नाम पर संदिग्ध पाकिस्तानी दल जवाभारी पहुंचा था। नेपाली प्रशासन की पूछताछ के बाद दल लौट गया। कुछ दिन पहले इसी स्थान पर कश्मीर के संदिग्ध हाफिज आलम का लोकेशन मिला लेकिन पकड़ में नहीं आया। सोनौली में आतंकी संगठन भिंडरेवाला टाइगर फोर्स ऑफ खालिस्तान के चीफ रतनदीप की गिरफ्तारी के बाद सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय हैं।
सूत्रों के मुताबिक सिद्धार्थनगर में करीब डेढ़ सौ संदिग्ध लोगों पर खुफिया नजर है। एक दशक पहले इनके पास कुछ नहीं था, लेकिन आज आलीशान हवेली और करोड़ों-अरबों का व्यापार है। इनका संबंध कहीं न कहीं से भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने पर बल दे रहा है। सिद्धार्थनगर एसपी केके चौधरी का कहना है कि ऐसे लोगों को चिह्नित किया जा रहा है जो दस वर्षो में गरीब से अमीर बन गए। उनके आय का स्रोतों की जांच हो रही है। कुछ के अवैध गतिविधियों में लिप्त होने की शिकायतें हैं। एसएसबी कमांडेंट अमित शर्मा ने बताया कि नेपाल के जवाभारी क्षेत्र में पाकिस्तानी दल के आने की सूचना थी। ज्यादा जानकारी तो नहीं मिल सकी लेकिन यह क्षेत्र संदिग्ध है। बार्डर पर सुरक्षा चाक चौबंद कर दी गई है।
सीमा पर पकड़े गए आतंकी
मार्च 2010 को इंडियन मुजाहिद्दीन का खास गुर्गा सलमान बढ़नी बार्डर से पकड़ा गया।
जून 2010 में बब्बर खालसा ग्रुप का माखन सिंह यहीं से पुलिस के हाथ लगा।
अगस्त 2013 को आइएम के यासीन भटकल और अस्दुल्लाह को रक्सौल से दबोचा गया।
2001 में लखनऊ में एके-47 के साथ गिरफ्तार अकील अहमद बढ़नी से होकर पहुंचा था।
2002 में खलिस्तानी एरिया फोर्स कमांडर सुखबीर सिंह उर्फ राजू भी पकड़ा गया था।
यही नहीं लश्करे तैयबा के अब्दुल करीम टुंडा, याकूब मेनन सहित लगभग तीन दर्जन आतंकी सीमा पर पकड़े जा चुके हैं।