लाल पोटली से डीवीडी में पहुंची 1.11 लाख पांडुलिपियां
लखनऊ। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या के 30 हजार दुर्लभ ग्रंथों का अ
लखनऊ। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या के 30 हजार दुर्लभ ग्रंथों का अस्तित्व खतरे में है। इनके सरंक्षण का अभाव है। आलम यह कि डिजिटाइजेशन के लिए चार वर्ष पहले आया स्कैनर डिब्बे में बंद है। अब तक केवल लाल पोटली से कुछ पांडुलिपियां डीवीडी तक पहुंच पाई हैं।
विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक लाख से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियों के अलावा 30 हजार दुर्लभ किताबें भी हैं। रखरखाव के अभाव में कई दुर्लभ ग्रंथ नष्ट हो चुके हैं। कुछ को दीमक चाट गया है। इनको संरक्षित करने के लिए डिजिटलाइजेशन का निर्णय किया गया था। एक बड़ा स्कैनर भी मंगाया गया। हालत यह है कि इसे अब चालू ही नहीं किया गया है जिसके कारण ग्रंथों का ओटोमेशन का काम अब तक नहीं शुरू हो सका।
उपेक्षा की शिकार लाइब्रेरी
लाइब्रेरियन सूर्यकांत का कहना है कि लाइब्रेरी विश्वविद्यालय प्रशासन के उपेक्षा की शिकार है। समय-समय पर संरक्षण के लिए प्रस्ताव बनाए गए लेकिन मंजूरी नहीं मिली। चार वर्ष पहले जो स्कैनर मंगाया गया वह किताबें स्कैन करने में सक्षम नहीं है। बिना उपयोग में लाए ही उसकी वारंटी भी खत्म हो गई।
पोटली से डीवीडी में पांडुलिपियां
सरस्वती भवन पुस्तकालय में लाल पोटली में सहेज कर रखी गई दुर्लभ पांडुलिपियां अब डीवीडी में भी पहुंच गई हैं। 285 डीवीडी में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां समाई हैं। अब इसे कंप्यूटर के हार्ड डिस्क में कॉपी करने का निर्णय किया गया है ताकि यह नष्ट न हो सके।