मोनू को मिटाने को दुश्मनों ने की साझेदारी
लखनऊ (आनन्द राय)। कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। फैजाबाद कचहरी में पेशी पर गए स
लखनऊ (आनन्द राय)। कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। फैजाबाद कचहरी में पेशी पर गए सुलतानपुर के पूर्व ब्लाक प्रमुख यशभद्र सिंह मोनू को राह से हटाने को उनके सभी दुश्मन आपस में दोस्त बन गए। दुश्मनों के साझा लक्ष्य को पुलिस ने नहीं, खुद मोनू ने ही पहचाना है। घटना के बाद उन्होंने एफआइआर दर्ज कराई तो एक तीर से तीनों धुर विरोधियों पर निशाना साध लिया।
मोनू की तहरीर पर तीन नामजद समेत आठ लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। इनमें सुलतानपुर की मझवारा की कमला देवी, हत्या के प्रयास के षड्यंत्र में पूर्व मंत्री विनोद सिंह और आगरा निवासी जयनेन्द्र कुमार शर्मा नामजद हैं। कमला देवी उस लेखपाल रामकुमार यादव की पत्नी है जिसकी हत्या के आरोप में मोनू कचहरी में पेशी पर आए थे। पूर्व मंत्री विनोद सिंह से गाड़ी ओवरटेक करने के मामले में मोनू की भिड़ंत हो चुकी है, जबकि जयनेन्द्र कुमार शर्मा को संत ज्ञानेश्वर का शिष्य बताया जा रहा है। तीन दिशाओं के मोनू के इन दुश्मनों के बीच वाकई कोई साझा नेटवर्क है भी या नहीं, कहा नहीं जा सकता है। पर मोनू से इनकी धुर दुश्मनी को नकारा नहीं जा सकता है।
सुलतानपुर के कूड़ेभार थाना क्षेत्र के मोनू ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की राह पकड़ी और हिस्ट्रीशीट भी खुल गई। मोनू ब्लाक प्रमुख बन गए तो उनके भाई चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू को विधानसभा पहुंचने का अवसर मिला। दोनों भाई राजनीति में जरायम की पैठ के मिसाल बन गए। सोनू व मोनू की शोहरत भी बढ़ी और दबदबा भी। लिहाजा सपा, बसपा, पीस पार्टी और भाजपा समेत सभी ने इन्हें गले लगाया।
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फ्लैश बैक
संत ज्ञानेश्वर ने 1996 में पूर्व विधायक इन्द्रभद्र सिंह की हत्या कराई थी। मोनू व सोनू ने 2006 में पिता की हत्या का बदला लेने के लिए संत ज्ञानेश्वर की हत्या करा दी। दुश्मनी का रंग गाढ़ा होने के साथ ही सोनू और मोनू का इलाके में दबदबा भी बढ़ा। हत्या, हत्या के प्रयास, बलवा, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट जैसे करीब 19 मुकदमे मोनू पर दर्ज हुए। इस मुकाम तक पहुंचने के बाद मोनू की राह में कोई रोड़ा बना तो उसे हटाने में देर भी नहीं की। 25 अक्टूबर 2010 को बीकापुर इलाके में लेखपाल रामकुमार यादव की हत्या कर दी गई। रामकुमार पत्नी कमला देवी को ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा रहे थे और मोनू किसी और को चाह रहे थे। इसी को लेकर मतभेद हुआ और रामकुमार की नृशंस हत्या कर दी गई। बसपा सरकार में मंत्री रहे विनोद सिंह से अदावत तो काफी पुरानी हो गई, लेकिन बीते दिनों उनके एमएलसी भाई से गाड़ी ओवरटेक करने को लेकर विवाद हुआ। फिर मारपीट भी हुई। मोनू की एफआइआर को देखकर यही लग रहा है कि इन तीनों दुश्मनों ने साझा नेटवर्क बनाकर हमला किया है।
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कचहरी में कैसे पहुंचे असलहे
फैजाबाद कचहरी में 23 नवंबर 2007 के आतंकी हमले के बाद से ही सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि कचहरी में असलहों से लैस लोग कैसे पहुंचे। बम से लैस मोनू के हमलावर हों या फिर अवैध असलहों से सजे मोनू के समर्थक, पुलिस और शासन के पास इस बात का जवाब नहीं है। पुलिस, एसटीएफ व स्थानीय अभिसूचना तंत्र मामले की छानबीन में लगा है।
पश्चिम से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक कोर्ट-कचहरी असुरक्षित होती जा रही हैं। फैजाबाद कचहरी में तो जाने वालों को मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ता है। कल जब गृह सचिव कमल सक्सेना व पुलिस महानिरीक्षक कानून-व्यवस्था अमरेन्द्र कुमार सेंगर से पूछा गया कि आखिर असलहे कैसे पहुंचे तो दोनों निरुत्तर थे। सेंगर ने यह जरूर बताया कि डेढ़ सेक्शन पीएसी, दो उपनिरीक्षक, आठ कांस्टेबल और 15 होमगार्ड सुरक्षा में लगाए थे। पर सवाल तो यह भी है कि सुरक्षा में लगा यह पुलिसबल क्या हमले के वक्त तमाशबीन बना रहा। इस मामले की जांच के सवाल पर कमल सक्सेना बस इतना कह सके कि कमजोर कड़ी की तलाश की जाएगी। रिपोर्ट आने के बाद इसकी जांच होगी।