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जाति और ग्लैमर के समंदर में डूब रही यमुना

मथुरा(आनंद राय)। मथुरा का जैसे कान्हा से रिश्ता है वैसे ही यमुना से। इस लोकसभा सीट के चार

By Edited By: Published: Sun, 30 Mar 2014 11:11 AM (IST)Updated: Sat, 29 Mar 2014 05:03 PM (IST)
जाति और ग्लैमर के समंदर में डूब  रही यमुना

मथुरा(आनंद राय)। मथुरा का जैसे कान्हा से रिश्ता है वैसे ही यमुना से। इस लोकसभा सीट के चार विधानसभा क्षेत्र बलदेव, मथुरा, छाता और मांट से सटकर यह नदी बहती है। मथुरा का सिर्फ गोव‌र्द्धन ही यमुना से अछूता है। यहां जीवनदायिनी यमुना की सांस थमने लगी है और नदी अब जाति और ग्लैमर के समंदर में डूब रही है। कान्हा ने तो कालिया नाग को नाथ कर यमुना को जहरीला होने से बचा लिया, लेकिन अब के सियासी रहनुमाओं को इसकी सुधि नहीं है। नदी को सांस देने की जो कोशिशें हैं, वह भी सियासत की दहलीज पर अनसुनी हैं।

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मथुरा के आम लोगों की यही पीड़ा है। कभी जीवनदायिनी रही यमुना को 1983 से ही जीवन देने की लड़ाई लड़ रहे बृज लाइफ लाइन वेलफेयर के महेन्द्र नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि यूपी, दिल्ली और हरियाणा राज्य में यमुना के किनारे वाले क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों और उनकी पार्टी के अध्यक्षों समेत कुल 242 लोगों को 30 से 35 पृष्ठों में नदी की दुर्दशा का ब्योरा देते हुए उन्होंने पत्र लिखा, लेकिन किसी ने जवाब देने तक की जहमत नहीं उठाई। यमुना के मुद्दे पर रालोद सांसद जयंत चौधरी ने लोकसभा में एक निजी बिल जरूर पेश किया, लेकिन इसे कोई मुकाम नहीं मिला। भाजपा से टिकट पाकर हेमामालिनी यहां चुनाव लड़ने आयीं तो यमुना की पीड़ा उनके शब्दों में भी फूट पड़ी। पर यहां के माहौल ने उन्हें समीकरण साधने पर मजबूर कर दिया है। मथुरा जाट बहुल इलाका है और यहां के सांसद जयंत चौधरी इस बिरादरी के सबसे नामचीन परिवार से हैं। भाजपा ने जाट परिवार की बहू और ग्लैमर के चलते ही हेमामालिनी को यहां जयंत से मुकाबिल किया है। जाटों को लुभाने के लिए हेमा के पति और अपने जमाने के मशहूर अभिनेता धर्मेन्द्र को इलाके में लाने की मांग बढ़ती जा रही है। सनी और बाबी देओल तो पता नहीं आएं या न आएं, लेकिन हेमामालिनी के चुनावी अभियान में सक्रिय विहिप जिलाध्यक्ष बच्चू सिंह दावा करते हैं कि धरम पा जी और उनकी बेटियां जरूर आयेंगी। यहां ग्लैमर और जाति का ही नतीजा है कि यमुना का मुद्दा उभर नहीं पा रहा है। सिर्फ जयंत और हेमा ही नहीं, बसपा के योगेश द्विवेदी के पक्ष में भी जातीय समीकरण बिठाए जा हैं। पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय समेत तमाम स्टार प्रचारक ब्राह्माण और अनुसूचित जाति के गठजोड़ के साथ ही यहां बाकी जातियों पर निगाह टिकाए हैं। सपा उम्मीदवार चंदन सिंह के लिए सपा का 'एमवाइ' फार्मूला पहले से चल रहा है।

इन सबसे अलग महेन्द्र नाथ चतुर्वेदी की लड़ाई जारी है। चतुर्वेदी के लिए यमुना की लड़ाई जिंदगी से बड़ी लड़ाई है। वह कहते हैं कि जल नहीं होगा तो कल नहीं होगा और आज नहीं सोचा तो हल नहीं होगा। यमुना के लिए निर्णायक लड़ाई की जरूरत है। अभी कुछ समय पहले सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने दिल्ली सरकार को चेतावनी दी कि वह औद्योगिक कचरा यमुना में न आने दे, वरना दिल्ली को गंगा का पानी देना बंद कर देंगे, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। हालात यह है कि हर दिन यमुना और विषैली होती जा रही है।

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जान ही नहीं तो जहान क्या होगा : जबसे यमुना एक्सप्रेस-वे बना, विकास के फलक पर मथुरा का नया मानचित्र उभरा है। एजुकेशनल हब के रूप में इस शहर की नई पहचान बनी है और कृषि के लिहाज से अयोग्य पड़ी जमीनों के भारी भरकम दाम मिलने से लोगों का बैंक बैलेंस बढ़ा है। यह निवेश का ही कमाल है कि मथुरा में ढाई सौ से अधिक बैंक शाखाएं खुल गयी हैं। मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में कंक्रीट के जंगल उग आए हैं और एक दशक के भीतर चालीस हजार नए फ्लैट बने हैं। अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि आर्थिक समृद्धि ने लोगों के रहन-सहन और तौर तरीके बदले हैं, पर जिस इलाके में दूध की नदियां बहती थीं, वहां का पानी जहर हो गया है। सबसे बड़ी समस्या खारे पानी की है और जब तक यमुना शुद्ध नहीं होगी तब तक इसका समाधान संभव नहीं है। फिर ऐसे विकास का क्या मतलब।


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