भिखारी भी बदल रहे अपना स्टाइल
ललितपुर ब्यूरो :समय बदलने के साथ-साथ भिखारी भी अपना स्टाइल बदल रहे है। भिखारी आटा-दाल-चावल व खाने पीने की चीजों के बजाए पैसा लेने को प्राथमिकता देते है। अनेक भिखारी तो भीख माँगने को अपना प्रोफेशन बना बैठे है। भिखारी इसे कला मानकर तरह-तरह के उपाय कर मोटी धनराशि कमा रहे है। शहर के भिखारियों की लाइफ स्टाइल भी बदल रही है।
एक दौर था जब भिखारी कहते थे 'दे दाता के नाम, तुझको अल्ला रखे..।' अब तो भिखारी कहते है 'छुट्टे न होने का बहाना न बनाओ साहब, छुट्टे तो भिखारी दे ही देगा, वह तो पाँच सौ तक का नोट तोड़ देगा।' भीख माँगने के धधे में नये-नये प्रशिक्षु भी पाँच रुपये से कम नहीं लेते। जो अनुभवी हो चुके है, ये तो अब 5-10 रुपये के नोट से कम लेना अपनी तौहीन समझते है। ये साफतौर पर कहते है कि एक रुपये में तो कुछ नहीं मिलता।
परमनेन्ट भिखारियों ने मन्दिरों और मस्जिदों के बाहर भीख माँगने के लिए नियत स्थान बना रखे है। जो ठिकाना छोड़ने पर मौके के अनुसार पगड़ी पर उठाये जाते है। ऐसे भिखारियों को नमाज का समय या मन्दिर में पूजा का समय अच्छे से मालूम रहता है। ये उसी समय मन्दिर-मस्जिद के गेट पर दस्तक देते है। भिखारियों को यदि एक रुपया दें, तो ये ऐसे घूरते है कि मानों इनका अपमान कर दिया हो। शहर के प्रसिद्ध तुवन मन्दिर के बाहर बैठने वाले एक भिखारी ने बताया कि लड्डू खाते-खाते आजिज आ जाते है। वे चाहते है कि प्रसाद के साथ कुछ रुपए दिये जायें। महगाई इतनी बढ़ गई है कि पाँच रुपये से कम में अब चाय भी नहीं आती। कुछ अन्य भिखारी भी प्रसाद लेने से बहाना बनाकर मना कर देते है। कुछ लोग ही पाँच या दस रुपये दे देते है। कुछ लोग अनसुनी कर आगे बढ़ जाते है। अनेक भिखारी तो नशे आदि के लती है। कुछ भिखारी तो दिन में चार-पाँच बार चाय पीते है। भिखारियों को अखबार खरीदकर पढ़ते देखा जा सकता है। भिखारियों में धूम्रपान और शराब के लती खूब मिलते है। कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी साधु वेष में भीख माँगने को धधा बना बैठे है। यदि भिखारी से काम करने के बारे में कहा जाए तो वे साफ कह देते है कि जब ऊपर वाला ऐसे ही दे रहा है तो काम क्यों करे? कुछ भिखारी साधु वेष में हाथी आदि किराये पर लेकर धार्मिक कार्याें के लिए भीख माँगते है। कुछ गाय व नंदी को साथ लेकर भीख माँगते है। कुछ लोगों ने शनि भगवान को अपने रोजगार का साधन बनाया है। कुछेक सीधे-सादे भिखारी ही शहर के मन्दिरों में सेवा कार्य करने से मिले भोजन से अपनी संतुष्टि मानते है।