चुनावी रंगों में सराबोर हुई रिश्तों की कसौटी
लखीमपुर: रिश्तों की कसौटी के ढेर सारे रंग धौरहरा में हो रहे चुनाव में भी साफ दिख रहे हैं। अप्रैल महीने की गर्मी जहां पारे को तेजी से बढ़ा रही है उसी वेग से उम्मीदवारों के परिवारीजनों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है। सत्तर का आंकड़ा पार कर चुकीं कांग्रेस प्रत्याशी जितिन प्रसाद की मां अपने बेटे के लिए दिन भर चुनावी मेलजोल करने को गांव-गांव पहुंच रहीं हैं। महज हाईस्कूल की परीक्षा पास कर भाजपा उम्मीदवार रेखा वर्मा का बेटा अनिमेष भी मां के चुनाव में कूद पड़ा है। पिता के असमयनिधन ने मानों उसके मासूम कंधों पर जिम्मेदारी का बड़ा बोझ डाल दिया। पति के चुनाव में दिन रात तो एक सपा प्रत्याशी आनंद भदौरिया की पत्नी अर्चना भी कर रही हैं। पेशे से डॉक्टर अर्चना ने इन दिनों सब कुछ ताक पर रख कर पति को विजयश्री दिलाने की मुहिम चला रखी है। ढाई साल के बेटे को दादी के सहारे छोड़ अर्चना की सुबह और शाम इन दिनों पति के चुनाव में कटती है। खीरी व सीतापुर जिले को जोड़कर बनी धौरहरा सीट पर जैसे-जैस वक्त गुजर रहा है प्रचार के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। सभी प्रत्याशी ही नहीं उनके परिवारीजन भी दिन रात एक कर रहे हैं। ये जोश किसी में भी रंच मात्र कम नहीं है।
1 . हर बेटा मां की नजर में बच्चा
72 साल उम्र में भी कांग्रेस उम्मीदवार जितिन प्रसाद की मां कांता प्रसाद का जोश चुनाव में देखने वाला है। रविवार को वो कस्ता विधानसभा क्षेत्र के गावों को मथ रहीं थीं। राजनीति तो इस परिवार में कूट कूट कर समाई है, तो भला ये चुनाव क्या, ऐसे न जाने कितने चुनाव कांता ने देखे व जिताये हैं। चुनाव के दौरान बेटे को अपने सामने ही नाश्ता कराना और देर चाहे जितनी हो जाए पूरे दिन की रिपोर्ट लेने तक ही मां की जिम्मेदारी वे पूरी नहीं मानतीं। वे खुद मासूम पोते को दुलरा कर पिछले कई दिनों से धौरहरा के गांव के गांव कच्चे कर रही हैं। मन नहीं मानता जनता से मिले बिना और बेटे का चुनावी माहौल देखे बिना। वे कहती हैं कि मां के आगे बच्चे कभी बड़े नहीं होते।
2. पिता की विरासत और मां का संघर्ष पहले
भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा के बेटे अनिमेष हाईस्कूल के बाद आईएएस बनना चाहते हैं, पर मासूम कंधों पर जिम्मेदारी का बड़ा बोझ आ गया है। चुनाव से ठीक पहले पिता का निधन और मां की दिन रात मेहनत अनिमेष से देखी नहीं गई तो वो भी चुनावी समर में कूद पड़े हैं। रविवार को धौरहरा के गावों को कच्चा कर रहे थे। पिता के निधन के बाद मां की दिन रात मेहनत, खाना पीना भी सहीं वक्त पर नहीं होता तो अनिमेष भी अब कमान अपने हाथ में ले चुके हैं। अपने यार दोस्तों के साथ वो हर उस जगह पर रोज पहुंच रहे हैं जो उनके पिता का क्षेत्र है। मां को सहारा देते अनिमेष कहते हैं कॅरियर बनाने को पूरी जिंदगी पड़ी है पर पिता का सपना और मां की मेहनत की परीक्षा का वक्त चल रहा है। उनकी जिंदगी में इससे बड़ा कोई लक्ष्य नहीं।
3: पति का संकल्प ही जिंदगी का लक्ष्य
सपा प्रत्याशी आनंद भदौरिया की पत्नी डॉ. अर्चना अपने ढाई साल के बेटे को दादी की गोद में छोड़ आई हैं। पिछले कई दिनों से उनका यही रुटीन बना है। वो कहती हैं चुनौती बड़ी है तो उनके पति का संकल्प भी महान है। उनके जनसेवा के भाव को अब अर्चना अपना लक्ष्य बना चुकी हैं। वो हर रोज दस से पंद्रह गांव में जा रही हैं। रविवार को अर्चना मोहम्मदी के गांवों में अपने प्रचार अभियान पर थीं। घरों में घुसकर महिलाओं से पति के लिए समर्थन जुटा रहीं अर्चना कहती हैं इस वक्त उनके पति की ये बड़ी परीक्षा है इसमें वो बराबर की भागीदार बनेंगी।