बदले परिसीमन से बदलेगा जातीय गणित
लखीमपुर, इस बार पिछले चुनाव वाला जातीय समीकरण भी प्रत्याशियों के लिए नहीं रह जाएगा। बदले परिसीमन में कई गांव एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने से परिस्थितियां भी बदल गई हैं। पिछले चुनाव में प्रत्याशी जिस जातीय आधार पर चुनाव लड़ रहे थे उसमें इस बार भारी अंतर भी आ चुका है। इसे लेकर प्रत्याशियों में खलबली मची हुई है। वहीं दूसरे विधान सभा क्षेत्रों से कटकर आए गांव के लोगों ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। इस प्रकार वोट बैंक में भी सेंधमारी हो चुकी है।
मसलन अगर हम गोला विधानसभा क्षेत्र की ही बात करें तो यह बताना जरूरी है कि इस क्षेत्र का पहले नाम हैदराबाद था। इस क्षेत्र में पहले मितौली ब्लॉक के दर्जनों गांव थे जो अब कस्ता विधान सभा क्षेत्र में चले गए हैं। इसी प्रकार मोहम्मदी विधान सभा क्षेत्र की दो न्याय पंचायतें जो पहले गोला विधान सभा क्षेत्र में थीं वह मोहम्मदी विधान सभा क्षेत्र से जुड़ गई हैं। वहीं मैलानी कस्बा समेत बिजुआ की आठ न्याय पंचायतें, बांकेंगंज की दो और कुंभी की दस पंचायतें गोला विधान सभा क्षेत्र से जुड़ गई हैं। पहले यह क्षेत्र हरदोई जिले के शाहाबाद संसदीय क्षेत्र में आता था मगर यह खीरी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा बन चुका है।
खास बात यह है कि मितौली ब्लॉक क्षेत्र के ब्राह्मण बाहुल क्षेत्र कस्ता और मोहम्मदी विधान सभा क्षेत्र से जा मिले हैं। गोला में जो क्षेत्र बढ़ा है उसमें कुर्मी, वैश्य और दलित मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। मैलानी नगर पंचायत का व्यापारी वर्ग इतना बड़ा है कि यह भी वोट का बड़ा फैक्टर बनेगा। इस वर्ग का समर्थन जिसे भी मिले उसका वोट बैंक बढ़ेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक इस क्षेत्र से हैट्रिक बना चुके विधायक अरविंद गिरि के लिए नया क्षेत्र चुनौती भरा है। कांग्रेस के बैनर तले इनकी नाव भी इसी गणित पर आधारित होगी ऐसा माना जा रहा है। बसपा यहां से पिछले चुनाव में दूसरे नंबर थी। इसे देखते हुए बसपा की राजनीति मुस्लिम मतों पर टिकी है क्योंकि यहां से पिहानी के बसपा विधायक दाउद की पत्नी सिम्मी बानो चुनाव लड़ रहीं हैं। इसी तरह सपा के लिए राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व सांसद रवि प्रकाश वर्मा कुर्मी वोट बटोरने की कोशिश में हैं। सपा ने इसीलिए यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा है। भाजपा के ईश्वरदीन वर्मा भी कुर्मी वोट और भाजपा के परंपरागत वोट के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि यहां एक बात साफ है कि प्रत्याशी जिस वर्ग को भी वोट बैंक मान रहे हों वह यहां कारण है ही नहीं। यहां तो बदले परिसीमन के बाद जुड़े नए क्षेत्र के मतदाता ही निर्णायक होंगे, जो फिलहाल खामोश हैं।
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