देव भाषा संस्कृत को जन-जन तक पहुंचा रहे डॉ. ओंकार नारायण दुबे
राकेश मिश्रा, लखीमपुर जिन्हें सपने देखना अच्छा लगता है उन्हें रात छोटी लगती है, जिन्हें सपने पूरे
राकेश मिश्रा, लखीमपुर
जिन्हें सपने देखना अच्छा लगता है उन्हें रात छोटी लगती है, जिन्हें सपने पूरे करना अच्छा लगता है उन्हें दिन छोटा लगता है। ऐसा ही जज्बा रखते हैं बलिया जिले के मूल निवासी डॉ. ओंकार नरायण दुबे। समाज को सुशिक्षित बनाने के लिए 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर बार छोड़ा और संस्कृत से लोगों को जोड़ने के लिए निकल पड़े। तभी से वह निशुल्क शिक्षण का कार्य करते हुए लोगों को देव भाषा संस्कृत का बोध करा रहे हैं। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से वर्ष 2009 में संस्कृत में पीएचडी की। सीतापुर जिले के उमरी सलेमपुर गांव के प्राइमरी स्कूल में बतौर शिक्षक कार्य कर रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने खीरी जिले को अपना कार्य क्षेत्र बनाया है। संस्कृत भारती से जुड़कर पांच वर्ष तक पूर्ण कालिक के रूप में देश के विभिन्न जिलों में शिविर लगाकर संस्कृत का प्रचार प्रसार किया है। अब तक करीब 14000 लोगों को संस्कृत भाषा बोलना सिखा चुके हैं। इसमें खीरी जिले में ही 2000 से अधिक लोग संस्कृत भाषा बोलने लग गए हैं। इसके अलावा गुरूकुल व छात्रा वासों में भी निर्धन छात्रों को रखवाकर उनके शिक्षण की पूरी व्यवस्था वह स्वयं देखते हैँ।
डॉ. ओंकार नरायण दुबे ने गोरखपुर, बनारस, कानपुर, मुंबई, गोंडा, रायबरेली, बलिया, सीतापुर व लखीमपुर में लोगों को संस्कृत की निशुल्क शिक्षा दी है। उन्होंने वर्ष 2008 में मुंबई में शिविर लगाकर फिल्मी हस्तियों को भी संस्कृत का ज्ञान दिया है। इनमें कृति कुमार, शक्ति कपूर, एसपी बाला सुभ्रमंणयम समेत कई हस्तियों को संस्कृत भाषा सिखाई है। बालीवुड में नाटय शास्त्र संस्कृत में है। सभी फिल्म निदेशक संस्कृत पढ़ते हैं और अपनी फिल्म के लिए अच्छे शब्दों का चयन संस्कृत भाषा से ही करते हैं। बनारस में शिविर के दौरान कुछ फिल्मी हस्तियों से मुलाकात हुई थी। उनकी इच्छा पर ही मुंबई में निशुल्क शिविर लगाया गया था।
डॉ. दुबे के मुताबिक संस्कृत भारती कोई संस्था नहीं बल्कि एक आंदोलन है। इससे वर्ष 1999 से जुड़कर समाज को सुशिक्षित बनाने का अभियान चला रहे हैं। खीरी जिले में 42 कार्यकर्ता और 26 कार्यकारिणी सदस्य उनके इस अभियान को सफल बनाने में अपना पूरा योगदान दे रहे हैँ। डॉ. ओंकार दुबे का मानना है कि समस्त बुराईयों का एक ही निदान है व्यक्ति को सुशिक्षित बनाना। सुशिक्षित समाज से नशा और छुआछूत जैसी तमाम कुरीतियां स्वयं दूर हो जाती हैं। व्यक्ति अपने जीने की वजह जान जाता है। जब किसी व्यक्ति का जीवन निरुद्देश्य होता है तो वह उसे समाप्त करने की कोशिश करता है। डॉ. दुबे आईआईटी कानपुर व रुड़की में एमटेक व बीटेक के छात्रों को 15 दिन का निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। कानपुर के आईआईटी में 30 दिसंबर से निशुल्क प्रशिक्षण देने के लिए डॉ. दुबे को आमंत्रित किया गया है।
डॉ. दुबे के पिता रामकुमार दुबे भी शिक्षक थे। सात भाई और एक बहन के परिवार में डॉ. दुबे का पांचवां स्थान है।