मनरेगा से नहीं भरता पेट,बिकने को मजबूर मजदूर
कुशीनगर: मजदूरों को गांवों से पलायन रोकने के लिए लगभग सात वर्ष पूर्व बनी केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा अपने उद्देश्यों से भटकती नजर आ रही है। योजना के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार व धन के कमी के कारण अधिकतर मजदूरों का अब इस योजना में दिलचस्पी नहीं रहा। मजदूर गांवों में काम करने के बजाय दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मुम्बई, गुजरात आदि प्रांतों के लिए पलायन कर रहे हैं। वहीं गांव से दूर छोटे कस्बों में उन्हें मनरेगा की तुलना में अधिक मजदूरी मिल रही है ।
तहसील क्षेत्र के विकास खंडों के चार सौ दो गांवों में जाब कार्ड धारकों की संख्या 1,28,627 है। आन लाइन रिपोर्ट के अनुसार हाटा ब्लाक में चालू वित्तीय वर्ष में 1,55,932, मोतीचक में 1,50,867 तथा सुकरौली ब्लाक में 1,53,265 रोजगार दिवस अब तक सृजित हुए। इस योजना में हर जाब कार्ड धारक को वर्ष में 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी दी गई है। परंतु अब तक तहसील क्षेत्र के किसी भी गांव में चालू वित्तीय वर्ष में 100 दिन तक रोजगार पाने वाले मजदूरों की संख्या दहाई के अंक में नहीं पहुंच सकी है। विकास खंड मोतीचक के 33 मजदूरों को ही अब तक 100 दिन का काम मिला। जिसमें बड़हरा लक्ष्मीपुर का एक , भूड़ाडीह का चार , गौनरिया दो , जमुआन एक, खैरटवां दो , मधवलिया एक , मंगलपुर मगरूआं चार, मथौली एक, मठिया उर्फ अकटहां दो, नरायनपुर एक , पोखरभिण्डा झांगा एक , सिरसियां एक , सोढ़रा पांच, सोनिया पांच तथा तेलगावां के दो मजदूरों को ही अब तक सौ दिन का रोजगार मिला । इसी प्रकार सुकरौली ब्लाक में 31 तथा हाटा ब्लाक में मात्र 22 मजदूर ही ऐसे हैं। जिन्हें अब तक 100 दिन का रोजगार मिल सका है।
पिछले कुछ महीनों में ग्राम सभाओं में शासन द्वारा मिलने वाले धन की कमी का जहां सामना करना पड़ रहा है। वहीं 142 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी के बाद बैंक से मजदूरी मिलने में विलम्ब तथा मजदूरों के नाम पर फर्जी भुगतान के कारण मोह भंग हो रहा है। महंगाई बढ़ने के कारण छोटे कस्बों में भी निर्माण आदि कार्यो में दो सौ से लेकर ढाई सौ रुपये तक मजदूरों को तथा राजगीरों को चार सौ से पांच सौ रुपये तक प्रति दिन आसानी से मिल जा रहा है। इसके कारण गांवों में मनरेगा की मजदूरी करने के बजाय मजदूर मंडियों में पहुंच कर बिकना पसंद कर रहे हैं। कस्बे में रोजगार की तलाश में आए मजदूर शिवशंकर , जितेंद्र, रामअवध गोंड़, सुभाष प्रसाद, मनोज यादव, भिखारी प्रसाद आदि का कहना है कि कि नियमित काम न मिलने के कारण मंडी में बिकना मजबूरी है। अगर कस्बे में काम के लिए न पहुंचे तो घर का चूल्हा नहीं जलेगा ।