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दामादों का गांव : महिलाओं को पूरी आजादी वाले 400 जमाई परिवार

उत्तर प्रदेश के कौशांबी का छोटा सा गांव अलग पहचान बनाएं है। इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोग बाहरी है जिन्होंने शादी के बाद से गांव में डेरा जमा लिया है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 10:47 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2016 06:06 PM (IST)
दामादों का गांव : महिलाओं को पूरी आजादी वाले 400 जमाई परिवार
दामादों का गांव : महिलाओं को पूरी आजादी वाले 400 जमाई परिवार

कौशांबी (नीरज सिंह)। उत्तर प्रदेश के कौशांबी का छोटा सा गांव अपनी अलग पहचान बनाएं हुए है। इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोग ऐसे हैं। जो बाहरी है। जिन्होंने शादी के बाद से ही गांव में डेरा जमा लिया है। इस गांव की एक खासियत यह भी है कि यहां पति पत्नी दोनों ही काम करते हैं। एक साथ मेहनत कर परिवार का भरण पोषण करते हैं।

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करारी नगर पंचायत क्षेत्र में बसा एक ऐसा गांव जिसकी अलग पहचान है। इस गांव की खासियत है कि गांव में रहने वाले चार सौ परिवार में ज्यादातर परिवार दामादों के हैं। जो शादी के बाद यहां बस गए है। ससुराल के बंधनों से आजाद यह विवाहिता पति के साथ बराबरी से रहकर हर तरह से उसकी मदद करती है। इस गांव में रहने वाले पुरुषों के साथ ही गांव की महिलाएं भी परिवार चलाने में पति की मदद करती है। जिसके लिए वह घर में बीड़ी बनाने के काम को करती है। इससे होने वाली आय को वह परिवार के भरण पोषण में खर्च करती है। यह सिलसिला गांव में लिए नया नहीं है। दसकों से दमादो ने यहा परिवार बसा रखा है। इस गांव मेकं 70 साल से लेकर 25 साल की आयु वर्ग के दामाद परिवार के साथ खुशी-खुशी रहते हैं।

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महिला को बराबारी का हक

गांव की विशोषता है कि गांव में बेटियों को बेटों के बराबर शिक्षा व अन्य सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। इस गांव के बेटियां हर वह कार्य करती हैं। जो बेटे कर सकते हैं। इनपर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। बीस साल पहले पति के साथ गांव में रहने के लिए आयी यासमीन बेगम की माने तो ससुराल में कितनी भी आजादी हो, लेकिन ससुराल में कुछ न कुछ बंधन होता है। यहां पति के साथ रहते हुए वह अपनी मर्जी से रह सकती हैं।

सुविधाओं ने किया आकर्षित

नगर पंचायत क्षेत्र करारी के किंग नगर में बसे दामादों के इस पुरवा में हर प्रकार की सुविधाएं हैं। यहा रहने के लिए नगर पंचायत की सुविधा के साथ ही विद्यालय व बाजार की भी सुविधा है। नगर पंचायत क्षेत्र में होने के कारण यहां रोजगार के भी पर्याप्त अवसर है। इसी कारण यह बाहरी युवकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है।

फतेहपुर जिले के रहने वाले फिरदौस अहमद भी २२ साल पहले यहां की बेटी से शादी के बाद यही के होकर रह गए। फिरदौस की ही तरह सब्बर हुसैन ने भी अपनी पत्नी के मायके में आकर अपना आशियाना बना लिया। इनके मुताबिक शादी के बाद जब वह अपनी पत्नी के साथ अपने गाव गए तो गाव में सुविधाओं के आभाव ने उन्हें यहां आने के लिए प्रेरित किया। बच्चों की पढाई और रोजगार की सुविधा के कारण वह भी दामादो के पूरा गांव में ही आकर हमेशा हमेशा के लिए बस गए।

यहां दामादों की पीढिय़ां

दामादों के पुरवा गांव में कुछ परिवार तो ऐसे है जहां उसके ससुर भी यहां घर जमाई बनकर गांव के संतोष कुमार हेला की माने तो उसके ससुर रामखेलावन ने गांव की बेटी प्यारी हेला के साथ शादी कर ली। उसके बाद यहां रहने लगे। वह भी उनकी बेटी चंपा हेला के साथ शादी के बाद गांव में बच गए।

क्या कहते हैं सभासद

सभासद यशवंत यादव कहते हैं कि तकरीबन चार सौ दामादों के घर गांव में बने हैं। यहां उनकों सभी सुविधाएं मिल रही है। जो उनके लिए जरुरी हैं। अधिकांश महिला व पुरुष मिलकर काम करते हैं। जिससे उनके बीच किसी प्रकार का विवाद नहीं होता। गांव के कुछ परिवार के लोग बाहर भी कमाने के लिए गए है। इस गांव के लोगों का दामादों की तरह सम्मान भी होता है। यही कारण ही बाहरी युवक गांव में बसने के बाद किसी तरह की असुविधा नहीं महसूस करते।


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