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नशा करने वाले व्यक्ति को नहीं मिल सकती मुक्ति

कौशांबी : मंझनपुर विकास खंड क्षेत्र के अगियौना गांव में इन दिनों श्रीमद् भागवत कथा की बयार बह रही है

By Edited By: Published: Sun, 29 Nov 2015 10:42 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2015 10:42 PM (IST)
नशा करने वाले व्यक्ति को नहीं मिल सकती मुक्ति

कौशांबी : मंझनपुर विकास खंड क्षेत्र के अगियौना गांव में इन दिनों श्रीमद् भागवत कथा की बयार बह रही है। प्रयाग से पधारे आचार्य बालशुक देवव्रत महाराज ने कथा के दौरान बताया कि नशा करने वाले व्यक्तियों की कभी मुक्ति नहीं हो सकती। जीव मनुष्य योनि को पाकर अपना अमूल्य जीवन नशे में बिता देता है। वह क्या करने आया है इस बात का उसे ज्ञान नहीं रहता। इसी बीच धर्म और परीक्षित का संवाद करते हुए आचार्य ने कहा कि जो जैसा कर्म करता है वैसा फल भोगता है। श्रीमद् भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है, यह हमें सत्य से परिचय कराता है। उन्होंने कहा कि कलियुग में तो श्रीमद् भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें यही अवगत कराता है। उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी। एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहां उन्हें कलियुग मिल गया। कलियुग ने उनसे राज्य में आश्रय मांगा, लेकिन उन्होंने देने से इन्कार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलियुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी। इसमें से पहला वह स्थान है जहां जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहां पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहां झूठ बोला जाता हो, लेकिन राजा परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे। तब कलियुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह मांगी। जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्णमुकुट में जाकर बैठ गए। राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलियुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई। कलियुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा। लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया। अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है। आखेट से लौटते समय राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुंचकर पानी मांगते हैं। उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में लीन थे। उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी, इतने में राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। जैसे ही उनका ध्यान समाप्त हुआ, उन्होंने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया। आचार्य देवव्रत ने कहा कि हम सब कलियुग के राजा परीक्षित हैं, हम सभी को कालरूपी सर्प एक दिन डस लेगा, राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं। इस बीच उन्हें व्यासजी मिलते हैं और उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हैं। व्यास जी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है। श्रीमद् भागवत की कथा हमें इसी सत्य से अवगत कराता है। इस मौके पर कथा के आयोजक पारस नाथ शुक्ल, अश्वनी शुक्ल, अशोक, शंकर दत्त, कृष्णकांत, मंगलेश्वरी नारायण तिवारी समेत सैकड़ों श्रोतागण मौजूद रहे।


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