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सीबीआइ को छह जनपदों के नहीं मिले अभिलेख

कौशांबी : मनरेगा की प्रारंभिक जांच कर रही सीबीआइ की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की जा रही है। छह जनप

By Edited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 05:04 PM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 05:04 PM (IST)
सीबीआइ को छह जनपदों के नहीं मिले अभिलेख

कौशांबी : मनरेगा की प्रारंभिक जांच कर रही सीबीआइ की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की जा रही है। छह जनपदों ने शासन को आधे अधूरे अभिलेख भेजे हैं। 12 नवंबर को प्रकरण की सुनवाई थी। सीबीआइ ने जनपदों के अभिलेख न सौंपे जाने की बात कही तो हड़कंप मच गया। मामले को गंभीरता से लेते हुए विशेष सचिव ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द संपूर्ण अभिलेख मुहैया कराएं।

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मनरेगा में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले की जांच सीबीआइ कर रही है। पहले सीबीआइ चिह्नित जिलों की ही जांच कर रही थी। इसके बाद प्रदेश के सभी जिलों की प्रारंभिक जांच शुरू कर दी। इसके लिए प्रमुख सचिव ने सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिया था कि जांच के लिए सीबीआइ को वर्ष 2007 से 2010 तक मनरेगा से कराए गए कार्यों के अभिलेख व सूचनाएं दें। अव्वल तो जिलों ने अभिलेख भेजने में आनाकानी की। दबाव बना तो आधे अधूरे अभिलेख भेज दिए गए। लाइन डिर्पाटमेंट और कनवर्जन मनी से संबंधित अभिलेख नहीं दिए गए। जिन ग्राम पंचायतों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी थी, वहां के भी अभिलेख सीबीआइ को सुपुर्द नहीं किए गए। आधे अधूरे अभिलेख मिलने पर सीबीआइ ने आपत्ति भी जताई थी, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

12 नवंबर को अदालत में मामले की सुनवाई थी। सीबीआइ ने अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए बताया कि अब तक कौशांबी, इटावा, फैजाबाद, कानपुर देहात, श्रावस्ती, संत रविदास नगर (भदोही) जनपद के अभिलेख नहीं मिले। अदालत ने इसे गंभीरता से लिया है। इसकी जानकारी होते ही शासन में खलबली मच गई। विशेष सचिव अशोक कुमार ने जिन जनपदों से अभिलेख नहीं मिले, वहां के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह जल्द से जल्द संपूर्ण अभिलेख सीबीआइ को मुहैया कराएं।

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गर्दन बचाने को हो रही आनाकानी

कौशांबी : सीबीआइ की जांच से बचने के लिए विकास विभाग के अफसर रोड़े अटका रहे हैं। पहले तो अभिलेख नहीं दिए गए। दबाव बनने पर अभिलेख सुपुर्द किए गए तो वह भी आधे-अधूरे। सूत्रों की मानें तो लाइन डिपार्टमेंट व कनवर्जन मनी में भी गड़बड़ी है। कई विभागों ने मनरेगा की रकम से विकास कार्य कराया है। जांच शुरू होते ही विभागाध्यक्षों के होश उड़ गए हैं। सीबीआइ से अपनी गर्दन बचाने के लिए अधिकारी तमाम तरह के हथकंडे अपने रहे हैं।


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