पैरों में घुंघरु, कमर में पट्टा और हाथों में लाठियां
मूसानगर, संवाद सूत्र: ढोल-नगाड़े की टंकार के साथ पैरों में घुंघरू, कमर में पट्टा और हाथों में लाठियों
मूसानगर, संवाद सूत्र: ढोल-नगाड़े की टंकार के साथ पैरों में घुंघरू, कमर में पट्टा और हाथों में लाठियों से एक-दूसरे पर लाठी से प्रहार करते तो लोगों के दिल दहल जाते। ऐसा नजारा देखकर सभी को आश्चर्य होता है कि ताबड़तोड़ लाठिया बरसने के बाद भी किसी को तनिक भी चोट नहीं आती। यह कला है यमुना बीहड़ क्षेत्र के गांवों की दीवारी खेलने वाली टोलियों की। गुरुवार को पारंपरिक ढंग से लाठियां चटकते दीवारी जुलूस मां मुक्तेश्वरी मंदिर पहुंचा।
बुंदेलखंड का दीवारी नृत्य बुंदेलों की शौर्य एवं वीरता का प्रतीक है। इतिहासकारों का मानना है कि चंदेल शासन काल में शुरू हुई इस अनूठी लोक विधा का मकसद था कि घर-घर वीर सपूत तैयार किए जा सके और वह बुराई व दुश्मनों के खिलाफ लड़ सके। प्रकाश पर्व दीपावली के कुछ दिन पहले ही गांव-गांव लोग टोलियां बना दीवारी खेलने का अभ्यास करने लगते है। जो भाई बहन के प्रेम के पर्व भैया दूज के दिन समाप्त होती है। इसके बाद दोहों व लोकगीतों के साथ दीवारी नृत्य की शुरूआत होती है। कार्तिक के पवित्र माह में हर तरफ इस लोक विधा की धूम मची हुई है। गुरुवार को प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी मूसानगर स्थित मां मुक्तेश्वरी देवी मंदिर में ये दीवारी टोलियां पहुंची। लोगों का कहना है कि दिवारी का यह खेल परंपरागत है। यहां से जाने के बाद चौपही में शामिल लोग फसल वाले खेत की कीमत अदा कर सामूहिक रूप से गाये चराते हैं। गुरुवार को राठी, शीतलपुर, परास, निमधा कोटरा मकरंदपुर, मया का पुरवा, काटर, कृपालपुर, रसूलपुर, निषादपुर, चिरांव, गुरैया, हथेरुआ, चिल्ली व गुढा आदि गांवों से आई चौपही की टीमों ने यमुना स्नान के बाद लाठियां भांजते हुए जुलूस के रूप में मां मुक्तेश्वरी मंदिर पहुंचे। इसके बाद भक्तों ने पूजन अर्चन कर कल्याण की कामना की।