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जान बचाने के इंतजाम 'धड़ाम'

जागरण संवाददाता, कानपुर : शहर के सरकारी अस्पतालों में जान बचाने के इंतजाम 'धड़ाम' हो ग

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Aug 2017 01:29 AM (IST)Updated: Sun, 13 Aug 2017 01:29 AM (IST)
जान बचाने के इंतजाम 'धड़ाम'
जान बचाने के इंतजाम 'धड़ाम'

जागरण संवाददाता, कानपुर :

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शहर के सरकारी अस्पतालों में जान बचाने के इंतजाम 'धड़ाम' हो गए हैं। कुत्ते के काटने के इंजेक्शन (एआरवी) से लेकर जीवन रक्षक उपकरणों का संकट गहरा गया है। दवाओं के बजट से आक्सीजन सिलेंडर और अन्य जरूरी सामान मंगवाया जा रहा है। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। संक्रामक रोगों के पैर पसारने से बेड तक नहीं मिल पा रहे हैं। मरीजों का स्ट्रेचर पर इलाज चल रहा है। स्वाइन फ्लू और डेंगू के लिए आइसोलेशन वार्ड तो बना लिए गए हैं, लेकिन संक्रमित व्यक्ति को भर्ती नहीं किया जा रहा है।

बिना रिकार्ड के उर्सला अस्पताल का आइसीसीयू

बसपा शासन काल में उर्सला अस्पताल में इमरजेंसी की ऊपर इनटेंसिव कोरोनरी केयर यूनिट (आइसीसीयू) तैयार हुआ। यह 16 बेड का है, जिसमें तीन बेड डायलिसिस के हैं। आइसीसीयू की सबसे खास बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग के रिकार्ड में इसकी कोई लिखा पढ़ी नहीं है। वहां से इसको चलाने के लिए कोई बजट नहीं आता है। दवाओं के बजट से आइसीसीयू को संचालित किया जा रहा है। यहां लगे छह वेंटीलेटर में सभी के मॉनीटर खराब हो गए हैं। तकनीशियन जुगाड़ और अपनी काबलियत से मरीजों को सांसें दे रहे हैं। रोगी कल्याण समिति के मद से दवाओं और अन्य सामान खरीदे जाते हैं।

बेड संख्या- 488

डॉक्टरों की संख्या- 65 (सात कम)

दवाओं का बजट- एक करोड़ रुपये

सिलेंडर का खर्च- चार लाख रुपये

सिलेंडरों की खपत- 3000 (महीना)

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केपीएम में दवाएं खत्म

केपीएम अस्पताल में आइसीयू और वेंटीलेटर की सुविधा नहीं है। बजट के संकट से जीवन रक्षक दवाएं तक खत्म हो गई हैं। ऑपरेशन के लिए मरीजों को बाहर से इंजेक्शन और मलहम पट्टी तक लानी पड़ रही है। एआरवी का स्टाक समाप्त हो गया है। डेंगू और स्वाइन फ्लू के लिए आइसोलेशन वार्ड बना है। केंद्रीकृत ऑक्सीजन सप्लाई नहीं है। फिजीशियन, हृदय रोग विशेषज्ञ की कमी है।

बेड क्षमता- 68

डॉक्टरों की संख्या - 17 (चार की कमी)

दवाओं का बजट- 30 लाख रुपये

सिलेंडर की खपत - 25 से 30 महीना

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कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय में नहीं वेंटीलेटर

कांशीराम संयुक्त चिकित्सायल में एसएनसीयू और ट्रामा सेंटर की सुविधा है, लेकिन वेंटीलेटर नहीं है। केंद्रीकृत व्यवस्था से ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो रही है। मरीजों को छोटे और बड़े सिलेंडर मैनुअली लगाए जाते हैं। दवाओं का संकट बना हुआ है। पैथोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट, चर्म रोग विशेषज्ञ की कमी है। विशेषज्ञ डॉक्टर न होने पर मरीजों को एलएलआर अस्पताल (हैलट) रेफर किया जाता है। स्वाइन फ्लू के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है।

बेड क्षमता- 100

डॉक्टरों की संख्या- 30 (7 की कमी)

दवाओं का बजट- 80 लाख रुपये

सिलेंडरों की खपत-48 से 50 महीना

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डफरिन में दवाओं के पर्चे पर संकट डफरिन अस्पताल में दवाओं के पर्चे और बिल्डिंग की मरम्मत के लिए बजट का संकट बना हुआ है। दवाएं सेल्फ परचेज से ले ली जाती हैं।

बेड क्षमता-210

डॉक्टरों की संख्या- 27

दवाओं का बजट- 70 से 80 लाख

सिलेंडरों की खपत- 150 से 160 माह

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'अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के लिए 17 अगस्त को साक्षात्कार कराए जा रहे हैं। जीवन रक्षक उपकरण और दवाओं के लिए सीएमएस की जिम्मेदारी है।'

- डॉ. अशोक शुक्ला, सीएमओ


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