जानें, मौसम में बदलाव से बच्चों का क्यों फूलता है दम, पहचानें लक्षण और इस तरह करें बचाव
बच्चों में खांसी-जुकाम व पसली चलने की शिकायत। श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े की नलिकाओं में सूजन आने लगती है।
By AbhishekEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 03:14 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 07:06 PM (IST)
कानपुर, जेएनएन। ठंड बढऩे के साथ ही बच्चों की भी मुश्किलें बढऩे लगी हैं, उन्हें खांसी-जुकाम व पसली चलने की शिकायत हो रही है। सर्दी के दिनों में बच्चे रातभर खांसी से बेहाल रहते हैं और अचानक उनका दम फूल रहा है, यह सब दमा के लक्षण है। इसमें अभिभावकों को लापरवाही नहीं बरतनी चाहिये। चिकित्सकों से परामर्श लेकर बच्चों का सही उपचार कराना चाहिये। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों में यह समस्या होना, अस्थमा का अटैक है।
अस्थमा के शुरुआती लक्षण
जुकाम, नाक बंद होना, छींक आना, नाक से पानी, आंखें लाल होना। अस्थमा पीडि़त बच्चों का समय से इलाज नहीं कराने पर श्वांस नलिकाएं और फेफड़े की नलिकाएं सख्त हो जाती हैं। दवा के बावजूद उनकी ठीक ढंग से सफाई नहीं हो पाती है। इलाज में लापरवाही से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। फिर धीरे-धीरे फेफड़े क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
ये है दमा के कारण
-फूलों और फसलों के परागकण।
-घर की मिट्टी (डस्ट माइट)।
-धूल और धुआं।
-सॉफ्ट ट्वॉय की धूल।
-घर के परदों की धूल।
-घर में लगी वॉल हैंगिंग।
-फर्नीचर की पॉलिश।
-पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली और खरगोश) के बालों की एलर्जी।
ऐसे करें बचाव
-बच्चों के सॉफ्ट ट्वॉय नियमित धोएं।
-साफ कर फ्रिजर में कुछ घंटे रखें।
-घर के कंबल, रजाई-गद्दे, तकिया को नियमित धूप में रखें।
-चादर एवं पर्दे भी सप्ताह में धोएं।
सांस की बीमारी है अस्थमा
अस्थमा सांस की बीमारी है। प्रदूषण एवं एलर्जी कारक तत्व जब श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े में पहुंचते हैं तो संक्रमण होता है। जिससे ल्यूकोट्राइन केमिकल निकलता है। श्वांस नलिकाओं में सूजन, आंख में जलन, आंखें लाल होना, पानी आना, नाक में सूजन व पानी आना एवं छींक आने लगती है। श्वांस नली में सूजन से संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।
इस तरह अस्थमा को पहचानें
मौसम में बदलाव के समय बच्चों को बार-बार सर्दी-जुकाम होने पर हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी इसे दमा मानने से इन्कार करते हैं। इलाज को टालते रहते हैं। ऐसे बच्चों में दमा के लक्षण पहचान कर समय से उचित इलाज कराने से रोकथाम संभव है।
साल दर साल बढ़ती समस्या
मौसम बदलने पर साल-दो साल जुकाम की समस्या रहती है। उसके बाद श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े की नलिकाओं में सूजन आने लगती है। इससे नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। पसली चलने (दम फूलना) की शिकायत होती है। दम फूलने से खांसी भी आने लगती है। सांस लेने पर घर्र-घर्र तथा छोडऩे पर सीटी जैसी आवाज आती है। अंत में फेफड़े की क्षमता कम हो जाती है।
सीओपीडी की संभावना
अस्थमा एवं एलर्जी का ठीक से इलाज नहीं कराने पर ऐसे बच्चों में आगे चलकर क्रॉनिंग आब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की संभावना अधिक रहती है। इसलिए समय से इलाज जरूरी है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. सुधीर चौधरी का कहना है कि बढ़ता प्रदूषण, खानपान की बदलती आदतों से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। अगर बदलते मौसम में बच्चों को खांसी-जुकाम और सांस लेन में दिक्कत होती है तो अस्थमा होने की संभावना है। ऐसे बच्चों को तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं। समय से इलाज कराने पर इसे पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
अस्थमा के शुरुआती लक्षण
जुकाम, नाक बंद होना, छींक आना, नाक से पानी, आंखें लाल होना। अस्थमा पीडि़त बच्चों का समय से इलाज नहीं कराने पर श्वांस नलिकाएं और फेफड़े की नलिकाएं सख्त हो जाती हैं। दवा के बावजूद उनकी ठीक ढंग से सफाई नहीं हो पाती है। इलाज में लापरवाही से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। फिर धीरे-धीरे फेफड़े क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
ये है दमा के कारण
-फूलों और फसलों के परागकण।
-घर की मिट्टी (डस्ट माइट)।
-धूल और धुआं।
-सॉफ्ट ट्वॉय की धूल।
-घर के परदों की धूल।
-घर में लगी वॉल हैंगिंग।
-फर्नीचर की पॉलिश।
-पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली और खरगोश) के बालों की एलर्जी।
ऐसे करें बचाव
-बच्चों के सॉफ्ट ट्वॉय नियमित धोएं।
-साफ कर फ्रिजर में कुछ घंटे रखें।
-घर के कंबल, रजाई-गद्दे, तकिया को नियमित धूप में रखें।
-चादर एवं पर्दे भी सप्ताह में धोएं।
सांस की बीमारी है अस्थमा
अस्थमा सांस की बीमारी है। प्रदूषण एवं एलर्जी कारक तत्व जब श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े में पहुंचते हैं तो संक्रमण होता है। जिससे ल्यूकोट्राइन केमिकल निकलता है। श्वांस नलिकाओं में सूजन, आंख में जलन, आंखें लाल होना, पानी आना, नाक में सूजन व पानी आना एवं छींक आने लगती है। श्वांस नली में सूजन से संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।
इस तरह अस्थमा को पहचानें
मौसम में बदलाव के समय बच्चों को बार-बार सर्दी-जुकाम होने पर हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी इसे दमा मानने से इन्कार करते हैं। इलाज को टालते रहते हैं। ऐसे बच्चों में दमा के लक्षण पहचान कर समय से उचित इलाज कराने से रोकथाम संभव है।
साल दर साल बढ़ती समस्या
मौसम बदलने पर साल-दो साल जुकाम की समस्या रहती है। उसके बाद श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े की नलिकाओं में सूजन आने लगती है। इससे नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। पसली चलने (दम फूलना) की शिकायत होती है। दम फूलने से खांसी भी आने लगती है। सांस लेने पर घर्र-घर्र तथा छोडऩे पर सीटी जैसी आवाज आती है। अंत में फेफड़े की क्षमता कम हो जाती है।
सीओपीडी की संभावना
अस्थमा एवं एलर्जी का ठीक से इलाज नहीं कराने पर ऐसे बच्चों में आगे चलकर क्रॉनिंग आब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की संभावना अधिक रहती है। इसलिए समय से इलाज जरूरी है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. सुधीर चौधरी का कहना है कि बढ़ता प्रदूषण, खानपान की बदलती आदतों से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। अगर बदलते मौसम में बच्चों को खांसी-जुकाम और सांस लेन में दिक्कत होती है तो अस्थमा होने की संभावना है। ऐसे बच्चों को तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं। समय से इलाज कराने पर इसे पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
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