यहां पर सीखें मोती की खेती करना और खोलें अपार कमाई के द्वार
चित्रकूट में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्र गनीवां में मोती संवर्धन इकाई से सीखने के बाद देश के कोने-कोने में जाकर युवा मोतियों की खेती कर रहे हैं।
कानपुर [जागरण स्पेशल]। स्त्रियों की सुंदरता में आभूषणों का विशेष महत्व है और उनमें मोतियों का खास स्थान है। पुरातन काल से खास प्रकार के मोती बहुमूल्य रहे हैं। राजा महाराजा हो या फिर रानियां, उनकी शोभा को बढ़ाने में मोतियों के हार अलग ही होते थे। आप शायद सुनकर चौंक जाएं कि मोतियों की खेती की जाती है। जी हां, ठीक उसी तरह जैसे किसान खेती कर अनाज पैदा करता है। धर्मनगरी चित्रकूट में तो कृषि विज्ञान केंद्र में युवाओं को मोती की खेती करना सिखाया जाता है। इस संवर्धन इकाई में सीखने के बाद युवा देश विभिन्न क्षेत्रों में जाकर मोती की खेती करके अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।
देश की पहली मोती संवर्धन इकाई
चित्रकूट में देश में मोती संवर्धन की पहली इकाई वर्ष 2013 में खोली गई थी। अब मोतियों की चमक से किसान अपनी किस्मत चमका रहे हैं। यहां से गुरुमंत्र लेकर हरियाणा, बिहार, और मध्य प्रदेश में कई किसान मोतियों की खेती कर रहे हैं। मोती की ये खेती पहले सीमित थी, जिसे सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत किसान फार्म हाउस में वैज्ञानिकों की देखरेख में करते थे। गनीवां की मोती संवर्धन इकाई ने कम लागत में बेहतर उत्पादन का माहौल तैयार किया गया। यहां पर सिखाया जाता है कि कैसे नदियों, तालाबों और पोखरों में मोतियों की खेती की जा सकती है। इसके लिए मार्जेनिलिस, पायरेसिया कारुगेट और लेमनीडेस कोरियेनस प्रजाति की सीप पैदा की जा रही हैं।
नौ ग्रहों के लिए होते अलग-अलग मोती
मोती भी अलग अलग तरह से फायदेमंद होते हैं। ये मोती इंसान के लिए रोग, व्यापार और ग्रहों को शांत करने के काम में भी आते हैं। ज्योतिष के अनुसार अलग अलग मोती अलग अलग फल प्रदान करते हैं। इसके चलते बाजार में मोतियों की मांग अधिक रहती है। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू केतु आदि के लिए जन्मकुंडली के अनुसार अलग अलग मोती शुभ फल देते हैं। घर में भी खास प्रभाव डालते हैं।
ऐसे तैयार होता मोती
मोती उत्पादन एक कठिन काम है। इसमें विशेष हुनर की जरूरत पड़ती है। सीप का चुनाव करने के बाद प्रत्येक में छोटी सी शल्य क्रिया की जाती है। इसके बाद सीप के भीतर एक छोटा सा नाभिक व मैटल ऊतक रख कर उसे बंद कर देते हैं। ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है जो मोती का रूप ले लेता है। एक निश्चित समय के बाद सीप को चीर कर मोती निकाला जाता है। इसके लिए अक्टूबर से दिसंबर तक मौसम सबसे अनुकूल होता है।
लागत से कई गुना फायदा
मोती उत्पादन में एक साल में लागत से चालीस गुना अधिक तक मुनाफा कमाया जा सकता है। बाकी किसी काम में इतना फायदा नहीं है। विशेषज्ञ डॉ. अशोक के मुताबिक एक सीप में दो कृत्रिम मोती तैयार होते हैं। इसमें सिर्फ दस रुपये खर्च होते हैं। एक मोती तैयार होने के बाद कम से कम दो सौ रुपये में बिक जाता है। मोती संवर्धन इकाई के प्रभारी डॉ. कमला शंकर शुक्ला कहते हैं कि यहां से देश के विभिन्न प्रांतों के अभी तक 58 किसान कृत्रिम मोती उत्पादन का प्रशिक्षण ले चुके है। इसमें 30 किसान अपने तालाबों में मोती उत्पादन कर खुद के साथ दूसरों को भी आर्थिक मजबूत करने लगे हैं।