अमेरिका की चकाचौंध छोड़ सहेज रहीं विरासत
जागरण संवाददाता, कानपुर : जुनून देश सेवा का हो तो फिर विदेश की चकाचौंध भी अच्छी नहीं लग
जागरण संवाददाता, कानपुर : जुनून देश सेवा का हो तो फिर विदेश की चकाचौंध भी अच्छी नहीं लगती। इसी वजह से रीता को भी अमेरिका नहीं भाया और वह शहर लौट आई। शुरुआत में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ कई जटिल समस्याओं पर रिसर्च किया, उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया। हस्तशिल्प को लेकर उनकी रिसर्च काफी सराहनीय रही। उन्होंने बुंदेलखंड के कई जिलों में जाकर वहां की सांस्कृतिक विरासतों को भी सहेजा।
सीएसए कैंपस में जन्मी रीता सिंह आइआइटी से बीटेक करने के बाद एमएस करने के लिए कनाडा चली गई। अमेरिका में एमबीए करने के बाद नौकरी की लेकिन कहीं न कहीं कुछ ऐसा था जिससे उनका मन वहां नहीं लग रहा था। वर्ष 1991 में वह भारत वापस आ गई। दिल्ली की एक कंसल्टिंग फर्म में कुछ वक्त काम किया। वर्ष 1995 में एक्सपोर्ट कारपोरेशन के साथ उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने का मौका मिला। शायद इसी काम को वह खोज रही थीं। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़ीं। यूनीसेफ के साथ एचआइवी एड्स पर काम किया। जिसके तहत प्रदेश के कई जिलों जैसे बुंदेलखंड, ललितपुर और झांसी आदि में जाकर कई जानकारियां जुटाई। वर्तमान में उन्नत भारत अभियान के तहत गांवों को संवारने में जुटी हैं। रीता बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने का मौका मिलना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
शहर से मिटा रहीं पॉलीथीन
रीता सिंह ने पॉलीथीन के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। सबसे पहले आइआइटी कैंपस को पॉलीथीन मुक्त कराया। डोनेशन ड्राइव चला लोगों से दान में कपड़े मांगे। बस्तियों की लड़कियों को सिलाई सिखा उनसे झोले बनवाए। उन झोलों को दुकानदारों को दिए। अब दुकानदारों को कपड़े के झोले में सामान देने को प्रेरित कर रही हैं। शहर की बड़ी बाजारों में एक शिवाला को वह पॉलीथीन और गंदगी मुक्त बनाना चाहती हैं। जिसके लिए उन्होंने परिवर्तन संस्था के साथ मिलकर रिपोर्ट तैयार की है।