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कृत्रिम बारिश के लिए मिली पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी

आइआइटी कानपुर की मदद से लखनऊ में कृत्रिम बारिश कराने की राह में सरकार ने एक कदम और बढ़ाया है। सरकार को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 17 Nov 2017 08:42 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 08:47 AM (IST)
कृत्रिम बारिश के लिए मिली पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी
कृत्रिम बारिश के लिए मिली पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी

कानपुर (जेएनएन)। आइआइटी कानपुर की मदद से लखनऊ में कृत्रिम बारिश कराने की राह में सरकार ने एक कदम और बढ़ाया है। सरकार को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है। उड्डयन मंत्रालय की मंजूरी मिलना बाकी है। वहां से हरी झंडी मिलने के बाद आइआइटी के वैज्ञानिक कृत्रिम बारिश करा देंगे।

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कार्यवाहक निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल की इस संबंध में शासन के अधिकारियों के साथ चर्चा चल रही है। साल भर पहले आइआइटी कानपुर को प्रदेश सरकार से क्लाउड-सीडिंग का प्रोजेक्ट मिला था। उस प्रोजेक्ट पर आइआइटी लगातार काम कर रहा है पर अब सरकार चाहती है कि इसे अमली जामा पहनाया जाए। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि बारिश कब करवाई जाएगी यह दोनों मंत्रालय की स्वीकृति व वातावरण की अनुकूलता पर निर्भर करेगा। आइआइटी इस क्षेत्र में लंबे समय से शोध कर रहा है और वह इसके लिए तैयार है।

20 लाख रुपये होंगे खर्च 

आइआइटी में सिविल विभाग के प्रोफेसर व वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी बताते हैं कि कृत्रिम बारिश के लिए दो तरह से एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है। पहला ऐसा एयरक्राफ्ट जो उपकरण से लैस हो और दूसरा एयरक्राफ्ट जिसमें अंदर व बाहर अलग से उपकरण लगाए जाते हैं। उपकरण से लैस एयरक्राफ्ट का खर्च करोड़ों में आता है। जबकि अगर उपकरण उपलब्ध हैं तो उन्हें एयरक्राफ्ट में लगाने में मामूली सा खर्च आता है लेकिन एयरक्राफ्ट का प्रतिघंटे खर्च करीब दो लाख रुपये होता है।

यह दस घंटे तक हवा में रहकर एयरोसोल, पर्यावरण व बादलों की अनुकूलता का अध्ययन करता है। उसके बाद बारिश कराने की तैयारी होती है। आइआइटी के पास एयरक्राफ्ट में फिट होने वाले करीब सभी उपकरण मौजूद हैं। देश में अभी तक कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र में कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है। जबकि विदेशों में अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका व इजरायल में भी कृत्रिम बारिश हो चुकी है।


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