Move to Jagran APP

दड़बों जैसे कमरे, कैदखानों सी रिहाइश

जागरण संवाददाता, कानपुर : कालकोठरी और दड़बों जैसे कमरे, न हवा आने का कोई रास्ता और न ही रोशनी का। बिज

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 01:28 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 01:28 AM (IST)
दड़बों जैसे कमरे, कैदखानों सी रिहाइश
दड़बों जैसे कमरे, कैदखानों सी रिहाइश

जागरण संवाददाता, कानपुर : कालकोठरी और दड़बों जैसे कमरे, न हवा आने का कोई रास्ता और न ही रोशनी का। बिजली गुल होने पर छात्र मोबाइल या टार्च की रोशनी में जैसे-तैसे पढ़ाई करते हैं। ऐसा लगता है जैसे कैदखाने में रह रहे हों। काकादेव कोचिंग मंडी से लेकर, लखनपुर और रावतपुर तक इसी तरह ढाई हजार से ज्यादा हास्टल और पीजी भवन हैं। बावजूद इसके जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे हैं। किसी भी भवन में नक्शे और अग्निशमन मानकों का पालन नहीं किया गया। तुलसी नगर के जिस मकान में आग लगने से दो जिंदगियां खत्म हो गई, वहां भी दड़बेनुमा कमरे दिखे।

loksabha election banner

काकादेव में ही गुटैया रेलवे क्रासिंग से लेकर विजयनगर और छपेड़ा पुलिया के बीच करीब डेढ़ हजार हास्टल हैं। तमाम लोगों ने अपने मकान में खुद के रहने के लिए दो-तीन कमरे छोड़कर बाकी कमरों को किराए पर उठा रखा है। यहां फाइबर सीट की दीवारें खड़ी कर चार बाई आठ फीट के दड़बेनुमा बना रखे हैं। एक कमरे का किराया चार हजार से लेकर छह हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। कमाई के लालच में भवन मालिकों ने आंगन और बरामदों के ओपन स्पेस में भी कमरे बना दिए हैं।

अफसर भी रह गए दंग

तुलसी नगर में हादसे के बाद सुबह जब अफसर पहुंचे तो हास्टल के अंदर का नजारा देखकर दंग रह गए। मकान में वेंटिलेशन का कोई इंतजाम नहीं था। अंदर वाले कमरे में छात्र ऐसे रह रहे थे, मानो कैदखाने में हों। इसके बाद तुरंत सभी भवनों की जांच के आदेश दिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.