दड़बों जैसे कमरे, कैदखानों सी रिहाइश
जागरण संवाददाता, कानपुर : कालकोठरी और दड़बों जैसे कमरे, न हवा आने का कोई रास्ता और न ही रोशनी का। बिज
जागरण संवाददाता, कानपुर : कालकोठरी और दड़बों जैसे कमरे, न हवा आने का कोई रास्ता और न ही रोशनी का। बिजली गुल होने पर छात्र मोबाइल या टार्च की रोशनी में जैसे-तैसे पढ़ाई करते हैं। ऐसा लगता है जैसे कैदखाने में रह रहे हों। काकादेव कोचिंग मंडी से लेकर, लखनपुर और रावतपुर तक इसी तरह ढाई हजार से ज्यादा हास्टल और पीजी भवन हैं। बावजूद इसके जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे हैं। किसी भी भवन में नक्शे और अग्निशमन मानकों का पालन नहीं किया गया। तुलसी नगर के जिस मकान में आग लगने से दो जिंदगियां खत्म हो गई, वहां भी दड़बेनुमा कमरे दिखे।
काकादेव में ही गुटैया रेलवे क्रासिंग से लेकर विजयनगर और छपेड़ा पुलिया के बीच करीब डेढ़ हजार हास्टल हैं। तमाम लोगों ने अपने मकान में खुद के रहने के लिए दो-तीन कमरे छोड़कर बाकी कमरों को किराए पर उठा रखा है। यहां फाइबर सीट की दीवारें खड़ी कर चार बाई आठ फीट के दड़बेनुमा बना रखे हैं। एक कमरे का किराया चार हजार से लेकर छह हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। कमाई के लालच में भवन मालिकों ने आंगन और बरामदों के ओपन स्पेस में भी कमरे बना दिए हैं।
अफसर भी रह गए दंग
तुलसी नगर में हादसे के बाद सुबह जब अफसर पहुंचे तो हास्टल के अंदर का नजारा देखकर दंग रह गए। मकान में वेंटिलेशन का कोई इंतजाम नहीं था। अंदर वाले कमरे में छात्र ऐसे रह रहे थे, मानो कैदखाने में हों। इसके बाद तुरंत सभी भवनों की जांच के आदेश दिए।