कीमतों की मार से दम तोड़ रहा बारदाना कारोबार
जागरण संवाददाता, कानपुर : एक दशक पहले कानपुर की शान रहे बारदाना कारोबार का दम प्लास्टिक के बोरों के
जागरण संवाददाता, कानपुर : एक दशक पहले कानपुर की शान रहे बारदाना कारोबार का दम प्लास्टिक के बोरों के सामने घुटता जा रहा है। तेजी से बढ़े प्लास्टिक के बोरों के कारोबार ने कीमतों के मामले में जूट के बोरों को दौड़ से लगभग बाहर कर दिया है। बोरों के 90 फीसद से ज्यादा बाजार पर प्लास्टिक का कब्जा है। गेहूं, दलहन के उत्पादन ने इस वर्ष प्लास्टिक के बोरों की खपत डेढ़ गुना तक बढ़ा दी है। जूट के पुराने बोरे सिर्फ उन वस्तुओं में इस्तेमाल हो रहे हैं जिन्हें कुछ दिन बचाकर रखना होता है।
कुछ वर्ष पहले कानपुर से देशभर में जूट के बोरे जाते थे। तब यहां बड़ी संख्या में जूट के बोरे बनाते थे। यहां के बोरे सस्ते पड़ते थे। जिस समय कानपुर में जूट का काम बंद हुआ, उसी समय प्लास्टिक के बोरों का निर्माण बढ़ा। जूट के बोरों के मुकाबले बहुत कम कीमत की वजह से प्लास्टिक के बोरों की मांग बढ़ती चली गई। अब देश के तमाम हिस्सों में जूट के नये बोरे कोलकाता से जा रहे हैं और कानपुर में जूट के पुराने बोरों का नाममात्र कारोबार बचा है। जूट के बोरे पुराने होने के बाद भी महंगे होते हैं। लोग इन्हें इसलिए लेते थे कि इस्तेमाल करने के बाद दोबारा बिक जाते थे लेकिन प्लास्टिक के बोरे इतने सस्ते आ गए कि जूट के बोरों का मोह ही त्याग दिया।
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आलू के भंडारण में इस्तेमाल
प्लास्टिक की बोरी में आलू खराब हो जाएगा, इसलिए इन्हें जूट के बोरों में भरा जाता है। 70 फीसद आलू जूट के बोरे में भरे जाते हैं। 30 फीसद बोरे जो प्लास्टिक की सुतली वाले होते हैं ताकि उनमें हवा जाती रहे।
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शहर में बोरों की स्थिति एक नजर में
शक्कर का नया बोरा 90 रुपये
गेहूं का नया बोरा 60 रुपये
50 किलो वाला पुराना बोरा 30 रुपये
प्लास्टिक का बोरा 10 रुपये
प्लास्टिक बोरा निर्माता करीब 200
प्लास्टिक बोरा ट्रेडर करीब 300
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बचाए है सरकारी खरीद
तीन दशक पहले आदेश हुआ था कि धान और गेहूं की सरकारी खरीद जूट के बोरे में ही हो। इसलिए खरीद केंद्रों में जूट के बोरे ही दिखते हैं।
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प्लास्टिक के बोरों का बड़ा कारोबार है। इनका एक दशक पहले आना शुरू हुआ था। सस्ते होने की वजह से ये बाजार पर छा गए हैं।
- राजेश कुमार गुप्ता, अध्यक्ष, कानपुर बारदाना व्यापार मंडल।
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आज हर तरह के खाद्यान्न प्लास्टिक की बोरी में भरे जाने लगे हैं। ये सस्ते तो होते ही हैं, प्रिंटिंग भी आकर्षक हो जाती है। इसलिए इनकी मांग है।
- पवन अग्रवाल, बारदाना कारोबारी।