कहीं फुल पेमेंट, कहीं आधा भी नहीं
कानपुर, जागरण संवाददाता : नोटबंदी के तीसवें दिन भी जिले की अधिकांश बैंक शाखाओं में नकदी संकट कम होन
कानपुर, जागरण संवाददाता : नोटबंदी के तीसवें दिन भी जिले की अधिकांश बैंक शाखाओं में नकदी संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। हालांकि कुछ बैंक शाखाओं ने कम कैश आपूर्ति के बाद भी नकद निकासी की सीमा के भीतर ग्राहकों को उनकी मांग के अनुसार भुगतान करना शुरू कर दिया है और वहां लाइनों में कमी आई है लेकिन अभी भी कई बैंक शाखाओं में दो-दो हजार रुपये तक बांटना मजबूरी बना हुआ है। इससे बैंक कर्मियों को परेशानी का सामना कर पड़ रहा है। वहीं शहर के अधिकांश एटीएम गुरुवार को भी बंद रहे और लोग नकद निकासी के लिए चक्कर लगाते रहे।
गुरुवार को बैंक आफ बड़ौदा गुमटी समेत करीब एक दर्जन बैंक शाखाओं, बिरहाना रोड शाखा समेत पीएनबी की सात शाखाओं, आरके नगर एवं फजलगंज शाखा समेत एसबीआई की करीब 14, सेंट्रल बैंक की आधा दर्जन शाखाओं में 24 हजार और 50 हजार रुपये की लिमिट तक भुगतान किया गया। वहीं बैंक आफ बड़ौदा की सर्वोदय नगर शाखा समेत कई शाखाओं में चार से छह हजार रुपये ही बांटे गए। एसबीआई मोतीझील ने केडीए कर्मियों को पांच हजार और अन्य ग्राहकों को दो-दो हजार का ही भुगतान किया। एसबीआई की करीब 40 शाखाओं में दोपहर तीन बजे के बाद कैश पहुंचा। ऐसे में ग्राहकों को इसका लाभ नहीं मिल पाया। पीएनबी के भी तीन दर्जन से अधिक शाखाएं नकदी संकट झेल रही हैं। हालांकि शुक्रवार को बैंकों में अधिक राशि का भुगतान किए जाने की संभावना है। इसके अलावा बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक की शाखाओं का नकदी संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। यहां भी दो हजार रुपये से अधिक का भुगतान संभव नहीं हो पा रहा है।
उधर, एटीएम से नकद निकासी के संकट की समस्या नहीं सुधर रही है। इसके चलते लोगों को एटीएम के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं वहीं अगर कोई एटीएम खुला मिल रहा है तो वहां कम से आधे घंटे लाइन में लगना पड़ रहा है।
छुपा कर रखे थे नोट, चूहे कुतर गए
छोटी छोटी बचत को बड़े नोटों में तब्दील करना और अलमारी के कोने में छुपा कर एक किसान की पत्नी को भारी पड़ गया। करीब साढ़े सोलह हजार रुपये के एक हजार और पांच सौ रुपये के नोट चूहे कुतर गए। फतेहपुर निवासी किसान महेश वहां की बैंक शाखाओं के चक्कर लगाकर थक गए तो गुरुवार को बैंक आफ बड़ौदा की चेस्ट शाखा गुमटी पहुंचे। खाते में जमा करने से लेकर नोटों के बदलने तक बारे में उन्होंने शाखा के मुख्य प्रबंधक से पूरी जानकारी ली और नोट बदलने की गुहार लगाई। आरबीआइ के नियमों से बंधा बैंक नोट नहीं बदल पाया। महेश ने बताया कि वह किसान हैं। साथ ही घर पर उनकी छोटी सी परचून की दुकान है। उनकी पत्नी दुकान से हर रोज कुछ पैसे लेकर अपनी बचत करती और उन्हें बड़े नोट में तब्दील कर रख लेती थीं। पैसे छुपाकर दीवार की अलमारी में रखे थे। चूहों ने अलमारी में बिल बना लिया और एक पालीथिन में बांधकर झोले में रखे गए पैसे कुतर गए। महेश कुतरे हुए नोट लेकर आए थे। बताते चलें, आरबीआइ का नियम है कि जिस नोट के चार या अधिक टुकड़े हो जाते हैं, उसकी कीमत शून्य हो जाती है। साथ ही नोट का हिस्सा होना भी जरूरी है। कुतरे जाने के कारण महेश के नोट चार से अधिक हिस्सों में थे और उसके टुकडे़ भी पास नहीं थे।