दाल मिलों पर भारी पड़ रहा मंडी शुल्क
कानपुर, जागरण संवाददाता : मंडी शुल्क की मार सबसे अधिक दाल मिलों पर पड़ रही है। पैदावार गिरने और पड़ोसी
कानपुर, जागरण संवाददाता : मंडी शुल्क की मार सबसे अधिक दाल मिलों पर पड़ रही है। पैदावार गिरने और पड़ोसी राज्यों में मंडी शुल्क न होने से यहां की दाल मिल संचालक परेशान हैं। उन्होंने प्रदेश सरकार से मंडी शुल्क हटाने की मांग की है।
बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में मंडी शुल्क न होने से प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में इन्हीं राज्यों से दलहन की आपूर्ति हो जाती है और कीमत भी कम रहती है। प्रदेश में मंडी शुल्क लगने से यहां की दालें 250 से 300 रुपये प्रति कुंतल महंगी पड़ती है। बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते प्रदेश से दूसरे राज्यों में दाल भेजने का काम लगभग खत्म हो गया है। वैसे भी प्रदेश सहित पूरे देश में दाल की पैदावार कम हुई है। किसानों को भी अधिक लाभ न होने से वह इस फसल को पैदा करने में रुचि नहीं दिखाते हैं। कानपुर महानगर दाल मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष मिथलेश गुप्ता ने बताया कि यही कारण है कि यहां की 170 दाल मिलें क्षमता की 30 से 40 फीसद काम ही कर पा रही हैं।
उन्होंने कहा कि देश में दाल की पैदावार कम होने और मांग अधिक होने के कारण ही सरकार विदेशों से दाल का आयात करती है। उन्होंने कहा कि विदेशों से आने वाली दाल की यहां की मंडियों में ग्रेडिंग या छिलका उतारने का काम नहीं होता है, न ही छन्ना लगाया जाता है। मंडी समितियों में इस तरह की कोई सुविधाएं भी सरकारी स्तर पर नहीं दी जा रही हैं। ऐसे में दालों पर मंडी शुल्क लगाने का कोई औचित्य ही नहीं है।
... नोटबंदी का भी असर ....
कानपुर : दाल मिलों पर नोटबंदी का भी असर है। वैसे तो इस सीजन में बाजार में हरी सब्जियां प्रचुर मात्रा में मिलने से दाल की खपत कुछ कम ही रहती है फिर भी किसान को पैसा न मिलने से वह मंडियों में माल नहीं ला रहे हैं। प्रदेश में दाल की पैदा बुंदेलखंड में होती है और नोटबंदी के बाद वहां की हालत और भी खराब है। किसान जो माल लेकर मंडी पहुंच भी रहे हैं उन्हें उसकी कीमत नहीं मिल रही है।