दीये जलाएं तो रोशन हों परंपराएं
कानपुर, जागरण संवाददाता : दीपावली का बाजार बदला तो इस पर्व की परंपराएं भी पीछे छूटती गई। मिट्टी के
कानपुर, जागरण संवाददाता :
दीपावली का बाजार बदला तो इस पर्व की परंपराएं भी पीछे छूटती गई। मिट्टी के दीपकों से सजने वाली दीप मालाओं की जगह चाइनीज झालर ने ले ली। मिट्टी के दीये औपचारिकता भर बनकर रह गए। चीन के सजावटी सामान ने भी मिट्टी के खिलौने व अन्य उत्पादों की जगह ले ली। हालांकि अब चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम से बदले माहौल में कुंभकार समाज बेहतर व्यवसाय की उम्मीद देख रहा है। कुहारन बस्ती इन दिनों माटी की सोंधी खुशबू से गमक रही है और चाक दनादन घूम रहे हैं। कच्ची माटी दीयों व खिलौनों आदि का रूप ले रहे हैं। बाजार तैयार है। बस इंतजार है तो आपका और आपके निर्णय का। आप क्या पसंद करेंगे, मिट्टी के दीयों से परंपराएं रोशन करना या कुछ और।
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जलाएंगे दीये तो रोशन होगी इनकी जिदंगी
नौबस्ता निवासी रामसजीवन कुंभकार बताते हैं कि महंगाई बढ़ती जा रही है। तीन से चार हजार रुपये प्रति ट्राली के हिसाब से मिंट्टी मिलती है। लेबर, कोयला, भाड़ा को मिलाकर मिंट्टी के बर्तन में बहुत लागत आ जाती है। इसके बावजूद भी उचित दाम नहीं मिलता है। ज्यादा आमदनी न होने के कारण बच्चों को अच्छी पढ़ाई नहीं करा पाते हैं। बच्चों को इसी काम लगाना पड़ा है।
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इनसेट
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दीपक का महत्व-
ज्योति के रूप में अग्नि और उजाले का प्रतीक दीपक बहुत प्राचीन है। वेदों में अग्नि को देवतास्वरूप माना गया है। ¨हदू धर्म में शुभ कार्य से पहले भगवान के सामने दीपक जलाया जाता है। दीपावली पर सरसों के तेल से मिट्टी का दीप जलाने से लक्ष्मी आकर्षित होती हैं।
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वैज्ञानिक महत्व
मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल जलने से जो गंध उत्पन्न होती है,उससे हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट होते हैं। दीपक वातावरण को शुद्ध करता है। मिट्टी का दीपक उपयोग के बाद मिट्टी में मिल जाता है जिससे प्रदूषण नहीं फैलता है।
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आर्थिक महत्व
दीपावली पर करोड़ों रुपये से चाइनीज लाइटें खरीदी जाती हैं। ये धन सीधे चीन जा रहा है जबकि मिट्टी के दीये पर आप जो भी खर्च करेंगे वह पैसा देश में ही रहेगा और प्रगति में आर्थिक योगदान होगा।