बदलाव का तरीका कोई नहीं जानता
कानपुर, जागरण संवाददाता : हर आम आदमी व्यवस्था में बदलाव चाहता है लेकिन इसके लिए क्या तरीका अपनाया जा
कानपुर, जागरण संवाददाता : हर आम आदमी व्यवस्था में बदलाव चाहता है लेकिन इसके लिए क्या तरीका अपनाया जाए, कोई नहीं जानता। यह बात दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने शहर आए मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने कही। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता को रोका नहीं गया तो मुश्किल होगी। इसे लेकर सरकार काफी पैसा खर्च कर रही है, लेकिन जरूरत उन महिलाओं को जोड़ने की है, जो गली, बस्ती व मोहल्लों में रहती हैं, उनकी ही गोद में देश का भविष्य पलता है, इसलिए शुरूआत भी वहीं से होनी चाहिए। विभिन्न वर्ग की महिलाओं को एक मंच पर लाना चाहिए ताकि वह अपने विचार, बातें और शंकाओं को साझा कर सकें। तभी वे बच्चों को भी सही सीख और शिक्षा देंगी। इससे ही सांप्रदायिकता जैसी चीज पूरी तरह खत्म हो सकेगी, फिर इस पर खर्च होने वाला धन तालीम पर खर्च होगा, जिससे देश मजबूत होगा।
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कविता से परिवर्तन के बीज बोते
वक्त के साथ चीजें भी बदली हैं। समाज जो देखता है वह स्वीकार न भी करें तो कुछ न कुछ अंश तो आएगा ही। कवि अपनी कविता से बदलाव के बीज बोते हैं और इसका भी असर होता है। यह बात कविताओं से देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले कवि जगदीश सोलंकी ने कही। मंचों पर चुटकुलों की अधिकता पर बोले, कि इसके लिए श्रोता व कवि दोनों जिम्मेदार हैं। श्रोताओं को खड़े होकर विरोध करना होगा। यह सही है कि सब चाहते हैं कि श्रोता उन्हे सुनें और वह जमे रहें। इसके लिए कुछ कम ज्यादा करने से परहेज नहीं करते। नये कवियों के लिए उन्होंने कहा कि कविता सिखाने का कोई स्कूल नहीं है, कविता दिल से आती है और नये कवि भी बेहतर कर रहे हैं।
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जनता तो सब कुछ पसंद करती
फिल्म निर्देशक कहते हैं कि जनता को अश्लील फिल्में ही पसंद है इसलिए बनाते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। जनता सब पसंद करती है, जरूरत बस अपनी हिम्मत दिखाने की है। यह बात गजल गायक कुंवर जावेद ने कही। उन्होंने कहा कि एक ही मंच पर चुटुकला सुनाया जाता है और गीत भी। यह तो कहने की बाते हैं कि जनता को यह पसंद है, वह नहीं पसंद है। हमे अच्छाई का सम्मान करना चाहिए और उसी को बढ़ावा देना चाहिए। गांधी, सुभाष एक थे, पर उन्होंने दुनिया बदल दी। यह शक्ति सभी को ईश्वर ने दी है। हमारा उद्देश्य कविता को स्थापित करना है। कवि की पीड़ा पर बोले, सियासत ने दो चेहरे लगा रखे हैं। मोहब्बत बांटो, समाज निर्माण करो।
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आजादी को हम समझ नहीं पाए
आजादी की मौजूदा हालात पर समाज को भ्रष्ट बताते हैं, हास्य कवि आसकरन अटल। वह कहते हैं कि नेता, अफसर और कर्मचारी सब इसी समाज का हिस्सा हैं, कोई अलग से नहीं आये हैं। सरकारी विभाग में लोग काम अटकाते हैं जबकि निजी कार्यालयों में काम पूरा करते हैं। भ्रष्टाचार से पीड़ित सभी हैं, इसलिए सभी को साथ खड़ा होना होगा। आजादी बहुत बड़ी चीज है जिसके मायने न तो हमने जानने की कोशिश की और न ही समझ पा रहे हैं। आरक्षण को पूरी तरह खत्म करके वह प्रतियोगिता को प्रभावी बनाने की बात करते हैं। उनका मानना है कि प्रतियोगिता से लोग आगे आएंगे तो भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो जाएगा। वह बोले, ओशो को आज समझ नहीं पा रहे हैं, लेकिन जब समझेंगे तो स्वर्णिम युग आ जाएगा। यकीन है कि जल्द ही बदलाव आएगा।
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जो खुद पर हंसता, वही हंसा सकता
हास्य और व्यंग्यकार दिनेश दिग्गज कहते हैं कि हंसी मनुष्य के साथ जुड़ी हुई है। जब बच्चा पैदा होता है तो हंसता है या फिर रोता है। शब्दों की सीख हम उसे बाद में देते हैं। हमारी विचारशीलता और कल्पनाशीलता ही हमे पशुओं से अलग करती है इसलिए कवि हंसाने का काम करता है और हम वह कर रहे हैं। कविता में उपहास का पुट जुड़ने पर वह कहते हैं कि उपहास सही नहीं है, एक अच्छा कवि परिहास से भी बेहतर काम चला सकता है। जो कवि स्वयं पर हंसता है वह ही दूसरों को हंसा सकता है। साहित्य के प्रति कम होते रुझान पर उन्होंने कहा कि संवादहीनता बढ़ गई है। तकनीकी ने हमे व्यवहारिक रूप से दूर कर दिया है। हंसने और हंसाने के लिए संवाद की जरूरत है। नए कवियों को आसपास की घटनाओं पर नजर रखनी चाहिए, सोचने का नजरिया बदलना चाहिए।
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लय में टूटे न मर्म की कड़ी
गजल व गीत को तरन्नुम के साथ श्रोताओं के सामने लाने वाली कवयित्री डॉ. सुमन दुबे ने पिता से प्रेरणा लेकर गजल गायकी में बुलंदी का मुकाम हासिल किया है। वह कहती हैं कि कविता में साहित्यिक पुट हो तो बहुत कद्रदान मिलते हैं। हां गीत, कविता या गजल किसी को भी उसी लय में पढ़नी चाहिए, जिस अंदाज में उसे लिखा गया हो। मंच पर चुटकुले सुनाने की बढ़ती प्रथा पर उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि व्यंग्य से ही लोगों को हंसाया जाए। हंसाने के लिए चुटकुले भी जरूरी हैं। नये कवियों के लिए मेहनत ही सफलता की कुंजी है। बोलीं, हुनर निखारने के लिए लगातार रियाज की जरूरत पड़ती है। सामाजिक अभिव्यंजनाओं पर कड़ी चोट हर किसी को अच्छी लगती है। बदलते सामाजिक परिवेश को ठीक करने के लिए कवि व कविताओं को आत्मसात करने की जरूरत कल भी थी और वर्तमान में भी है।
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वाह-वाह क्या बात सीजन-2 जल्द
वक्त की कमी से नये सीरियल पर ध्यान नहीं दे रहा हूं। फिल्में बनाना मुझे पसंद नहीं है, क्योंकि अब छोटे पर्दे के सामने बड़ा पर्दा भी कमतर साबित हो रहा है। यह बात मशहूर कवि शैलेष लोढ़ा ने कही। एक रीजनल फिल्म पर काम करने की जानकारी देते हुए बोले, तैयारी पूरी है, काम भी कर रहा हूं। शैलेष लोढ़ा ने कहा कि वाह-वाह क्या बात है, का सीजन-2 जल्द दर्शकों को उपलब्ध होगा। कार्यक्रम में नये कवियों का मौका न मिलने पर कहा कि सैकड़ों कवि उनके इस कार्यक्रम के जरिये ही सामने आए हैं, हां मंच पर वही आता है जिसकी कविता में दम होता है। मोदी सरकार से अपेक्षाओं पर कहा कि हम समय नहीं देना चाहते। हम चाहते हैं बीज बोते ही पेड़ बन जाए। फिल्म इंडस्ट्री में करियर बनाने वालों को उन्होंने सलाह दी कि यह रास्ता कांटों भरा है।
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ये कहां आ गए हम..?
पद्मश्री कवि सुरेंद्र दुबे कहते हैं कि नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है। मानवता प्रदूषित हो गई है। संस्कार व नैतिकता को हम जीवन का अंग नहीं बना पा रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ में पारिवारिक सौहार्द भी नहीं बचा पा रहे हैं। जरूरी है कि अब हम ठहरें और सोचे कि कहां आ गए हैं। हम अपने लिए जो सोचते हैं वास्तव में वैसा करते कभी नहीं। ऐसी दोहरी मानसिकता का पर्याय ही गिरावट है। बढ़ते भ्रष्टाचार पर बोले, इसके लिए हम खुद ही दोषी है। हम हमेशा अपना काम निकालने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। खुद के लिए स्वार्थ छोड़ना होगा। मंचीय चुटकुलेबाजी पर कहा कि इससे सृजन प्रभावित होता है। कविता हर युग में कविता ही रहेगी। उसकी पहचान करने वाले अलग हैं। राजनीति टिप्पणियों पर खूब तालियां इसलिए मिलती हैं क्योंकि वास्तविक स्थिति से हम भलीभांति वाकिफ होते हैं।