Move to Jagran APP

टूटा सब्र का बांध तो खुद बना लिया पुल

सर्वेश पांडेय, कानपुर : वर्षों से नेताओं के आश्वासनों पर पुल बनने की आस लगाए ग्रामीणों के सब्र का

By Edited By: Published: Sun, 01 Feb 2015 01:55 PM (IST)Updated: Mon, 02 Feb 2015 04:30 AM (IST)
टूटा सब्र का बांध तो खुद बना लिया पुल

सर्वेश पांडेय, कानपुर :

loksabha election banner

वर्षों से नेताओं के आश्वासनों पर पुल बनने की आस लगाए ग्रामीणों के सब्र का बांध टूटा तो उन्होंने चंदा करके नेशनल हाइवे-2 भौंती के पास पांडुनदी पर सीमेंट की पटियों से पुल तैयार कर लिया।

आधी सदी ग्रामीणों ने पार की तैर के नदी : आजादी के बाद से भौंती से नदी के उस पार बसे आधा दर्जन गांव पनका, बनपुरवा, छेदेपुर, गंभीरपुर, कनालपुरवा, कैंदा के ग्रामीण नदी पर पुल न होने के चलते नदी को तैरकर पार करते रहे। कुछ समय बाद पनका गांव के कुछ लोगों ने नदी मे दो नाव चलानी शुरू कर दीं जिससेग्रामीण गांव से शहर का सफर तय करने लगे। इसके बाद भी गरीबों के लिए नाव का सफर मुश्किल था इसलिए वह नदी का पानी कम होने का इंतजार करते थे, नहीं तो तैरकर ही पार जाते थे।

ग्रामीणों में जली एकता की अलख : लंबे समय से नदी को तैरकर पार कर रहे ग्रामीणों में एकता की अलख जगी। वर्ष 1965 में आधा दर्जन गांवों के लोगों ने मिलकर लकड़ी का पुल बनाना शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने लकड़ी का पुल बना दिया। लोग एक-एक करके धीरे-धीरे नदी पार करने लगे लेकिन यह व्यवस्था बारिश में सफल नही रही। तेज बहाव में लकड़ी का पुल हर बारिश में बह जाता था। बारिश खत्म होते ही ग्रामीण पुल निर्माण में फिर से जुट जाते।

नेताओं ने वोटों के नाम पर की ग्रामीणों से ठगी : बीते 50 वर्षों से लकड़ी के पुल के सहारे गांवों में वोट मांगने गए कई जनप्रतिनिधियों ने हर चुनाव में पुल बनवाने का वादा करके ग्रामीणों के साथ जमकर ठगी की। सांसद व विधायक बनने के बाद जब ग्रामीण उनकी चौखट पर पुल की गुजारिश लेकर पहुंचे तो उन्हें फाइल पास होने का आश्वासन देकर शांत कर दिया। लेकिन किसी ने अपने वादों को अमली जामा नहीं पहनाया।

झूठे वादों से निराश हो शुरू की एकता की जंग: वर्ष 1999 में नेताओं के झूठे आश्वासनों से परेशान ग्रामीणों ने घर घर जाकर एकता का बिगुल फूंका। ग्रामीणों ने घर-घर से चंदा करके पुल का निर्माण शुरू कर दिया। लोगों ने नदी में पांच पिलर खड़े कर दिए। पैसा कम होने के चलते लोगों ने जंगलों में पड़े बिजली के पुराने लोहे के पोल लाकर इन पिलरों में जाम कर दिए। जिनपर सीमेंट की पटियां डालकर रखकर एक करीब चार फुट चौड़ा पुल तैयार कर दिया। जिसके ऊपर से हर रोज करीब 20 हजार पैदल व दो पहिया वाहनों से निकलने लगे।

स्कूली बसें हाईवे किनारे उतार देतीं बच्चे: गांव में कोई दूसरा रास्ता न होने के चलते स्कूली बसें भौंती के पास हाइवे किनारे ही बच्चों को उतार कर चली जाती हैं। जहां से पहले से इंतजार कर रहे अभिभावक बच्चों को इस पुल से घर ले जाते हैं। इस दौरान यदि कोई बाइक सवार दूसरी तरफ से आ रहा होता है तो बच्चों को संभालना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

पुल से कई बार बाइक सवार नदी में गिरे : पनका गांव निवासी राधाकृष्ण ने बताया कि दो साल पहले वह रात में बुलेट से घर लौट रहे थे। बीच पुल में आते ही अचानक पुल पर रखी पटियां खिसक गई। संतुलन खोने से वह नदी में जा गिरे। किसी प्रकार वह तैरकर नदी के से निकल आए, लेकिन उनकी बुलेट दूसरे दिन घंटों मशक्कत के बाद निकाली जा सकी।

यूं फूंटा ग्रामीणों का दर्द:

'नेता केवल चुनाव के समय ही इन गांवों में नजर आते हैं। कई बार ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की योजना बनाई लेकिन गांव में कई राजनीतिक गुट होने से योजना सफल नहीं सकी।'-राजीव त्रिपाठी

'जिस समय गांव वाले लकड़ी पुल हर वर्ष बनाकर नदी पार होते थे। उसी दौरान तत्कालीन सांसद श्यामबिहारी मिश्र गांव आए थे और पुल बनवाने का वादा किया था। पुल की नाप जोख भी हुई थी पर पुल नहीं बना।'-राधाकृष्ण शुक्ल

'पचास वर्षों में कोई सरकार पुल तक तो बनवा नहीं पाई। उम्र ढल गई नेताओं के झूठे वादे सुनते-सुनते। '-रामप्रसाद

'लगता है कि सभी नेताओं को चुनाव के समय ही नदी पार के गांवों की याद आती है। पुल तो इन गांव के लिए सपना बनकर रह गया है।'-शिवनारायण कुशवाहा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.