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'समाज सुधारक' के आगे मानवाधिकार दंडवत

कानपुर, जागरण संवाददाता : दरोगा जी के 'समाज सुधारक' यंत्र के सामने मानवाधिकार के फलसफे बौने साबित हो

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 02:25 PM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 02:25 PM (IST)
'समाज सुधारक' के आगे मानवाधिकार दंडवत

कानपुर, जागरण संवाददाता : दरोगा जी के 'समाज सुधारक' यंत्र के सामने मानवाधिकार के फलसफे बौने साबित हो रहे हैं। इस पर अरसे से चल रही बहस अब भी जारी है। सब बदल गया लेकिन पुलिस नहीं। किसी से अपराध कबूल कराना हो, गवाह बदलवाने हों, मुकदमा वापस कराना हो, सबके लिए दरोगाजी के पास सिर्फ एक उपाय है 'समाज सुधारक' (लकड़ी के हत्थे पर जड़ा चमड़े का पट्टा)। थानों में मानवाधिकार के बोर्ड शोभावस्तु बने हैं और 'समाज सुधारक' अपना काम कर रहा है। पुलिस के उत्पीड़न की वजह से एक व्यक्ति को जान गवांनी पड़ी लेकिन अब भी उम्मीद कम ही है कि उसे इंसाफ मिल पाएगा।

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मानवाधिकार के हनन में पुलिस सबसे आगे है। हर थाना-चौकी में डीके बसु के नियमों की धज्जियां उड़ती हैं। किसी भी थाने में सुबह-सुबह चले जाइए, कोई झाड़ू लगाता दिखेगा तो कोई मेज-कुर्सी पोछता। ये वह लोग हैं जिन्हें किसी अपराध के मामले में पूछताछ के लिए लाया जाता है। जब तक ये थाना में रहते हैं, बंधुआ मजदूर की तरह पुलिस की सेवा करते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिशें थानों में बोर्ड तक सिमटकर रह गई हैं। हर कदम पर उनकी धज्जियां उड़ती हैं और अफसर देखते रह जाते हैं। मानवाधिकारों पर बड़ी-बड़ी बातें हुईं लेकिन हकीकत इससे परे है। यह किसी एक थाने की बात नहीं हर जगह का यही रवैया है। थानों की बात छोड़िए, चौकियों तक में मनमानी कायम है। थाने पर व्यथा लेकर जाने पर अव्वल तो पुलिस टरका देती है। तहरीर ले भी ली तो बस कागज का ढेर बनकर ही रह जाती है। दूसरी तरफ छोटे मोटे मामले में पकड़े गये लोगों से पहले अपना काम करवाती रहती है। यदि परिजन अधिकारियों तक पहुंच गये तो वह शातिर अपराधी बन जाते है। क्योंकि किसी को भी व्यक्ति को अपराधी बनाना तो पुलिस के लिए बाएं हाथ का खेल है। नियम यह भी है कि महिलाओं से थाने में अश्लील अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं होगा लेकिन थाने जाने पर क्या महिला क्या पुरुष, सभी अपमानित होते हैं। दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं लेकिन मानव अधिकार कब मिलेंगे, इसका भगवान ही मालिक है।

इनको भी न भूले मानवाधिकार आयोग

कानपुर : अपराधियों के लिए हर वक्त खड़े होने वाले मानवाधिकार के कार्यकर्ता व आयोग पुलिस कर्मियों के लिए भी कुछ अपनी जिम्मेदारियों को पालन करें। यह हमेशा पुलिस कर्मियों की तरफ से उठता आया है क्योंकि अपराधियों की प्रति जरा सी शिथिलता प्राणघातक साबित हो जाती है। जैसा कि कानपुर के नौबस्ता थाना की एक चौकी में हुई थी। जहां दरोगा देवेंद्र कुमार को एक अपराधी ने पूछताछ के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी। वहीं भागने के प्रयास में एक सिपाही को गोली मार दी। वहीं गोविंदनगर में दबिश के दौरान पुलिस जीप को शातिर के साथियों ने आग लगा दी और पुलिस पार्टी पर फायरिंग की। पुलिस को घरों में दुबककर जान बचानी पड़ी। ऐसे कई मौके दबिश के दौरान पुलिस को झेलना पड़ा है, लेकिन यदि अपराधी को कुछ नुकसान होता है तो लोग पुलिस को दोषी मानती है।

राष्ट्रीय-राज्य आयोग में चल रहे कई मामले

कानपुर : इस साल जनवरी से सितंबर तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में 87 मामले आये जबकि राज्य मानवाधिकार आयोग से करीब 157 मामलों की जांच भेजी गई। पुलिस का दावा है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मामलों में कुछ ही लंबित हैं।

ये हैं मानवाधिकार नियम

-थाना लाए गए व्यक्ति से मारपीट या अमानवीय व्यवहार नहीं होगा।

-साक्ष्य के लिए लाये जाने वालों को उचित व्यय दिया जाएगा।

-गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे में न्यायालय में पेश करना होगा।

-न्यायालय में पेश करते समय, जेल ले जाते समय या जेल से दूसरी जेल स्थानांतरित करते समय हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।

-अपराधी से किसी वस्तु की बरामदगी पर उसकी रसीद दी जाएगी तथा कुर्क माल की सुरक्षा की जाएगी।

-थानों में महिलाओं से अभद्र-अश्लील व्यवहार नहीं किया जाएगा।

कुछ चर्चित मामले

-हिस्ट्रीशीटर रफीक को आला कत्ल बरामदगी के लिए ले जाते वक्त हमला, रफीक की मौत, जांच चल रही।

-रेलबाजार में दरोगा की पिटाई से हिरासत में मुकेश नाम युवक की मौत। थानेदार जमानत पर जांच जारी।

-किदवईनगर पुलिस ने धीरज नाम के युवक को थाने में अमानवीय यातनाएं दी। मनवाधिकार ने शिकायत पर तत्कालीन एसपी ग्रामीण, सीओ बाबूपुरवा, एसओजी प्रभारी समेत थानेदार के खिलाफ कार्रवाई के साथ पीड़ित को एक लाख मुआवजे के आदेश दिये।


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