गोपनीय डायरी लिखना भूले थानेदार
कानपुर, जागरण संवाददाता : थानेदार की गोपनीय डायरी इतिहास बन चुकी है। थानाक्षेत्र में अपराध और कानून व्यवस्था से संबंधित हर छोटी-बड़ी सूचना और सफेदपोशों का सच इस डायरी में रोजाना दर्ज किया जाता था। इसका उद्देश्य था कि नए थानेदार को इलाके से परिचित होने में ज्यादा वक्त न लगे लेकिन अब थानेदार डायरी लिखना भूल चुके हैं। वहीं अधिकारी बीट सिपाही तक को अपनी डायरी दुरुस्त रखने की बात कह रहे है।
जुगाड़ से थानेदारी पाने वालों ने पुरानी व्यवस्थाएं ताक पर रखकर अपराध बढ़ने के साथ ही पुलिस का अपना तंत्र भी कमजोर कर दिया है। पुलिस डायरी को गोपनीय इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें लिखने का अधिकार सिर्फ थानेदार और निरीक्षण का अधिकार सिर्फ एसपी, एसएसपी या आलाधिकारियों के पास है। कभी थानेदार की गोपनीय डायरी क्षेत्र के अपराध व अपराधियों का दस्तावेज हुआ करती थी। छोटे-मोटे अपराधी, नए सिर उठाने वाले गिरोह, माफिया, सफेदपोश से लेकर सांप्रदायिक समीकरण, अपराध और राजनीति के गठजोड़ समेत इलाके में होने वाले अपराध की जानकारी डायरी में रहती है। थानेदार रोज इस डायरी में सूचनाएं दर्ज करते हैं। गोपनीय डायरी पढ़कर आने वाले नए थानेदार को इलाके की हर गतिविधि के बारे में जानकारी के साथ ही इलाके की बारीकियां व दुश्वारियां समझने में मदद मिलती है। हालांकि थानेदार गोपनीय डायरी भरना लगभग भूल चुके हैं। ऐसा तब है जब आईजी व डीआईजी ने समय-समय पर गोपनीय डायरी भरने पर जोर दिया है। साथ ही बीट के आधार पर काम तक का निर्धारण किया गया है। पुलिस महकमे के एक बड़े अधिकारी की मानें तो पहले काम करने वाले दरोगा को थानेदारी मिलती थी। अब जुगाड़ व सिफारिश वाले दरोगा कुर्सी संभाल रहे हैं। ऐसे में उन्हें न तो अपराध की फिक्र है न कानून व्यवस्था की परवाह। फिर गोपनीय डायरी के बारे में कौन सोचे?
थानेदार को नहीं मालूम इलाका
बीट पुलिसिंग की व्यवस्था इतनी बदतर हो चुकी है कि बीट सिपाही को खुद नहीं पता उसके इलाके में कितने हिस्ट्रीशीटर या शातिर अपराधी रहते है। थानेदार तो दूर चौकी इंचार्ज को इलाके के लोग नहीं पहचानते। थानेदार तबादला होने तक अपने पूरे क्षेत्र की जानकारी नहीं जुटा पाते और घटना स्थल पर जाने के लिए जीप चालक का मुंह तकते नजर आते हैं।