काम, क्रोध व लोभ पर पाएं विजय
कानपुर, जागरण संवाददाता: भावनाओं का नाम ही भवसागर है। हम सभी अपनी भावनाओं की वजह से ही पीड़ित होते हैं। कोई सम्मान, पद, प्रतिष्ठा पाने के लिए चिंतित है तो कोई सुख और ऐश्वर्य पाने के लिए। अगर सुखी रहना है तो काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार रूपी मगरमच्छ पर विजय पानी होगी। ये पांचों विकार मगरमच्छ की तरह हैं जिन पर विजय पाकर ही भवसागर से पार उतरा जा सकता है। ये बातें गुरु मां आनंदमूर्ति ने बुधवार को बृजेंद्र स्वरूप पार्क में ऋषि चैतन्य कथा समिति द्वारा आयोजित अमृत वर्षा सत्संग में कहीं।
उन्होंने कहा कि भव का अर्थ है भावनाएं। मन के विचारों का सागर ही भव सागर है। भव सागर पार करने का एक मात्र उपाय है प्रभु के नाम का सुमिरन। लोगों को लगता है कि प्रभु के सुमिरन का लाभ मृत्यु के उपरांत भवसागर को पार करने के लिए मिलता है किंतु ऐसा नहीं है। मनुष्य के जीवन में भावनाएं प्रधान होती हैं। निंदा से आहत और प्रसंशा से प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है। हमें प्रत्येक परिस्थिति में अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। निरंतर बदलती हुई भावनाओं का नाम ही भव सागर है। गुरु मां ने कहा कि भावनाएं मन में जन्म लेती हैं और जिसका मन प्रधान है वही मनुष्य है। पशु, पक्षी सिर्फ भोग कर सकते हैं उनके पास बुद्धि विवेक नहीं होता किंतु मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसे बुद्धि विवेक का वरदान परमात्मा ने दिया है। पशु पक्षी रिश्ते नाते जोड़ने का कार्य नहीं करते यह कार्य सिर्फ मनुष्य ही करता है। मनुष्य का मन बिगड़ जाए तो उसका पूरा जीवन बिगड़ जाता है। अध्यात्म मन को विकसित और नियंत्रित करने का नाम है। अत: अपने मन में अच्छी भावनाएं जगाएं। कथा में महापौर जगतवीर सिंह द्रोण, प्रेम सिंह सचदेवा, समिति के अध्यक्ष ऋषि अरोड़ा, उमेश भसीन, योगेश सचान, एचसी दुबे आदि रहे।
सुखी जीवन के सूत्र
- जिस कार्य को समाज से छुपाना पड़े वह कार्य न करें
- हर परिस्थिति में धैर्य धारण करना सीखें
- मन को नियंत्रित करना सीखें, चंचल मन पर पाएं विजय
- धर्म के जहाज पर चढ़ने के लिए अधर्म के मार्ग को त्याग दें
- जीवन में दया, क्षमा, मैत्री, संयम, चित्त में श्रद्धा को अपनाएं
- किसी भी बात का अभिमान न करें, सत्य का मार्ग अपनाएं
- अधर्मियों, ठगी करने वालों को न सम्मान दें न उसने सम्मान लें