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400 बीएड कालेजों पर बंदी का साया

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 07:30 PM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 07:30 PM (IST)
400 बीएड कालेजों पर बंदी का साया

हकीकत:1

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कालेज : कालेज आफ प्रोफेशनल एजुकेशन, मेरठ

सीटों की संख्या : 200

प्रवेश हुए : 05

कुल शुल्काय : 2,56,250 रुपए

कुल संभावित खर्च : 45-50 लाख

हकीकत: 2

कालेज : त्रिभुवन हरिहर सिंह कालेज, सुल्तानपुर

सीटों की संख्या : 100

प्रवेश हुए : 04

कुल शुल्काय : 2,05000

कुल संभावित खर्च: 45-50 लाख

हकीकत: 3

कालेज : आदि श्री कालेज, मेरठ

सीटों की संख्या : 100

प्रवेश हुए : 17

कुल शुल्काय : 8,71,250

कुल संभावित खर्च : 45 से 50 लाख

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डॉ.सुरेश अवस्थी, कानपुर:

बीएड कालेजों के हकीकत की यह सूची और भी लंबी है, जो प्रदेश स्तर पर करीब 400 की संख्या पर जाकर ठहर रही है। सीटें न भर पाने के कारण इन कालेजों के सितारे गर्दिश में हैं। इस बार काउंसलिंग से सिर्फ 35 प्रतिशत सीटें ही भरी जा सकी हैं। खाली पड़ी सीटों को भरने की आगे भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही। तमाम प्रयासों के बाद भी सभी रास्ते बंद हैं और मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में निजी कालेज प्रबंधक कालेज बंद करने का मन बना रहे हैं।

बात यहीं आकर ठहरती तो भी अगले वर्ष से कुछ उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन अगले सत्र के लिए शासन ने दो साल का बीएड करने की योजना बनाकर कालेज संचालकों के मंसूबों पर ही पानी फेर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि दो साल का बीएड होने पर बड़ी संख्या में अभ्यर्थी बीएड से दूर भागेंगे जिसका विपरीत प्रभाव निजी कालेजों पर पड़ना तय है। निजी कालेज प्रबंधकों के एसोसिएशन के प्रतिनिधि राजेश भदौरिया बताते हैं कि सीएसजेएमयू से संबद्ध 165 कालेजों की कुल 19,000 सीटों में 7 हजार सीटें भरी जा सकी हैं। मेरठ व आगरा का तो इससे भी बुरा हाल है।

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बीएड की तस्वीर

बीएड की कुल सीटें : 1,38,000

सीटें भरीं : 50,000

प्रति छात्र शुल्क : 51,250 रुपए

कालेजों के लिए जरूरी :

प्राचार्य : 01

शिक्षक : 07

कर्मचारी : 25

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खर्चो में कटौती का फैसला

बीएड कालेजों ने बीते सत्र में ही सांस्कृतिक कार्यक्रम, शैक्षिक सेमिनार बंद करने के अतिरिक्त अध्यापन प्रशिक्षण में होने वाले खर्चो में भी कटौती का फैसला किया है। कालेजों ने बिजली खर्च बचाने के लिए न्यूनतम कक्षाएं लगाने व शिक्षकों की संख्या कम करने की कवायद भी शुरू कर दी है। जिन छात्रों ने प्रवेश ले लिया है उनकी शैक्षिक गुणवत्ता गिरनी तय है।

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क्या हैं मुख्य कारण

- जरूरत से ज्यादा कालेजों को मान्यता

- 15 फीसद प्रबंधन कोटा खत्म करना

- विशिष्ट बीटीसी से नियुक्तियां बंद

- बीएड के बाद भी टीईटी भी अनिवार्य

- निजी कालेजों को बीटीसी को मान्यता

- कालेजों में अतिरिक्त शुल्क वसूली

- बीएड जेईई से सत्र की लेटलतीफी

- पढ़ाई का स्तर न्यून, ठेके पर नकल

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''खाली सीटों को भरने का रास्ता न निकला तो प्रदेश के करीब 400 कालेजों में ताला पड़ सकता है। शासन से 20,000 रुपया शुल्क बढ़ाने का आग्रह किया था लेकिन उस पर भी ध्यान नहीं दिया गया।''

-विनय त्रिवेदी, अध्यक्ष उप्र स्ववित्तपोषी महाविद्यालय एसोसिएशन।


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