वायु प्रदूषण पर आईआईटी की नजर
डा.सुरेश अवस्थी, कानपुर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले कणों (पार्टिकल्स) की हर हरकत पर नजर रख रहा है। प्रति मिनट उनकी संख्या घटने बढ़ने का डाटा तैयार कर उनका विश्लेषण करके प्रदूषण के कारण व बचाव के उपाय भी खोज रहा हैं।
संस्थान में यह काम सिविल इंजीनियरिंग में सेंटर फार इनवायरमेंट साइंस में किया जा रहा है। यह काम हाई रिजुएलेशन अप्लाइड एरोसाल मास स्पैक्ट्रोमीटर मशीन कर रही है। यह देश में पहली मशीन है जो हर मिनट मे पर्यावरण के समक्ष मुश्किलें पैदा करने वाले वायु मंडल में फैले कणों (नाइट्रेट, सल्फेट व आर्गेनिक) को रिकार्ड करती है। इनसे वैज्ञानिकों को वायुमंडल की दशा व दिशा जानने में भारी मदद मिल रही है। यहां डेढ़ साल पहले आयी करोड़ों की मशीन ने भारी मात्रा में डाटा तैयार किया है और मिनट दर मिनट कर रही है। संस्थान के पर्यावरण विज्ञानी प्रो. सच्चिदानंद तिवारी व उनके नेतृत्व में कुछ शोधार्थी मशीन से मिले रिकार्ड के आधार पर पर्यावरण प्रदूषण से जुड़े महत्वपूर्ण शोध में जुटे हैं।
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आठ-आठ घंटे में होता था रिकार्ड
इसके पहले वायुमंडल में कार्बन आदि के पार्टिकल्स का रिकार्ड नापने का काम आठ-आठ घंटे में होता था। फिल्टर पेपर पर पार्टिकल्स एकत्र करके वैज्ञानिक उनका विश्लेषण करते थे। इससे वायुमंडल में आठ घंटे के भीतर होने वाले परिवर्तनों की जानकारी मिलती थी जबकि अब आधा घंटे का भी रिकार्ड सरलता पूर्वक तैयार किया जा सकता है।
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कोहरा व मानसून की जानकारियां
विश्लेषकों के मुताबिक हवा में प्रति वर्ग मीटर मौजूद पार्टिकल्स का घनत्व कोहरा व मानसून की स्थिति तय करते हैं। मसलन यदि पार्टिकल्स 15 से 20 माइक्रोग्राम प्रति वर्गमीटर हैं तो ठंडक होनी तय है। इन्हीं के माध्यम से कोहरा पड़ने के कारण तलाशे जाते हैं। हवा में मौजूद ये सघन कण सूर्य किरणों का प्रत्यावर्तन रोकते हैं जिससे गर्मी व तपन बढ़ती है।
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तैयार हो रहा विशेष गुब्बारा
विभाग एक बड़ा गुब्बारा भी तैयार कर रहा है जिसमें विशेष तरह के सेंसर लगाए जा रहे हैं। गुब्बारा निर्धारित ऊंचाई पर एक बड़ी परिधि में तैरेगा और सेंसरों के माध्यम से कार्बन कणों का रिकार्ड नियंत्रण कक्ष को भेजेगा।
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इस विशिष्ट मशीन से वायु मंडल में मौजूद गैस, कार्बन तथा अन्य कणों का हर पल अध्ययन करना आसान व अधिक गुणवत्तापूर्ण हो गया है। इसके महत्वपूर्ण नतीजे निकल रहे हैं।
- प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी, पर्यावरण विज्ञानी आईआईटी