ठंड की रैन में खोखा दुकानों के नीचे बसेरा
कन्नौज, जागरण संवाददाता : इत्र के शहर कन्नौज में लोग आसपास के जनपदों से भी काम करने के लिए आते हैं।
कन्नौज, जागरण संवाददाता : इत्र के शहर कन्नौज में लोग आसपास के जनपदों से भी काम करने के लिए आते हैं। रात हो गई तो उन्हें सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं है। न रैनबसेरा है और न ही आश्रय घर। गर्मी के मौसम में चाहे जहां रात कट सकती है, लेकिन ठंड की रात तो काटे नहीं कटती। इसका दर्द तो वही समझ सकते हैं, जो कभी बगैर किसी संसाधनों के रात में फंस चुके हों। कन्नौज शहर में कोई रैनबसेरा न होने के कारण लोगों को ठंड की रात लकड़ी के खोखा (दुकानों) के नीचे ओढ़-लपेट कर रात काटनी पड़ रही है। शासन की रैनबसेरा (सेल्टर हाउस) खोलने की योजना भी, लेकिन नगर पालिका के पास इसके लिए जमीन ही नहीं है। नगर पालिका को जब अपने इलाके में जमीन नहीं मिली तो उसने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन विभाग और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र भेज दिया है। इन विभागों से जमीन के संबंध में कोई उत्तर नहीं मिला है। अब ठंड का मौसम फिर से शुरू हो गया, लेकिन रैनबसेरा तैयार नहीं कराया जा सका।
कन्नौज में करीब दो सैकड़ा से अधिक लघु उद्योग स्थापित हैं। इसमें इत्र कारखाने और कोल्ड स्टोरेज शामिल हैं। इस कारण यहां पर जिले के अलावा आसपास के जनपदों से भी लोग रोज काम के लिए आते हैं। काम यदि देरी हो गई तो इन लोगों के लिए अपने घर पहुंचने का कोई साधन नहीं होता है। ऐसे लोगों में हरदोई जिले के बिलग्राम और आसपास इलाके से आने वाले ज्यादा होते हैं। कारण रात में वहां जाने के लिए कोई साधन मुख्यालय से नहीं हैं। मजबूरन लोगों को रात फुटपाथ पर काटनी पड़ती है। गर्मी के मौसम में तो ऐसा चल जाता है, लेकिन ठंड के मौसम में खुले में रात नहीं काटी जा सकती। इस कारण लोग मजबूरी में सड़क किनारे रखीं लकड़ी की दुकानों के नीचे ओढ़-लपेट कर लेट जाते हैं। बुधवार की रात शहर का भ्रमण किया गया तो कई लोग लकड़ी की दुकानों के नीचे लेटे थे।
''शहर में दो रैनबसेरा की जरूरत है। शहरी आजीविका मिशन के तहत योजना भी है, लेकिन कोई जमीन नहीं मिल पा रही है। जमीन के लिए यूपी रोडवेज और सीएमओ को पत्र भेजा गया है। यदि यह विभाग जमीन मुहैया करा दें तो रैनबसेरा बनवा दिया जाए।''
- बीडी भंट्ट, अधिशाषी अधिकारी, नगर पालिका।