महाशिवरात्रि आज, सजे शिवालय
झाँसी : महाशिवरात्रि आज (24 ़फरवरी) मनायी जाएगी। इस अवसर पर शिवालयों को विद्युत छटा से सुसज्जित कर द
झाँसी : महाशिवरात्रि आज (24 ़फरवरी) मनायी जाएगी। इस अवसर पर शिवालयों को विद्युत छटा से सुसज्जित कर दिया गया है। प्रात:काल से ही महादेव को जल चढ़ाना शुरू हो जाएगा। इसके बाद शिव बारातों में श्रद्धालु बम-बम भोले के जयकारे लगाते ऩजर आएंगे। दुर्ग पर परम्परागत मेले के साथ ही सभी मन्दिरों में विशेष पूजन-अर्चन किया जाएगा। श्री महाकालेश्वर जी महाराज सेवा समिति के तत्वावधान में विशाल शोभायात्रा बाहर बड़ागाँव गेट स्थित श्री महाकालेश्वर राजा बाबा मन्दिर से प्रात: 11 बजे प्रारम्भ होगी। दिन भर मन्दिर में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते रहेंगे। वहीं, सीपरी बा़जार स्थित श्री रघुनाथ जी मन्दिर में बर्फ की झाँकी का आयोजन किया जा रहा है।
एक ऩजर झाँसी के प्रमुख शिवालयों के इतिहास पर
मढि़या महाकालेश्वर मन्दिर
600 वर्ष पहले के पन्नों को पलटा जाए, तो झाँसी गोसाई नागा महाराजाओं की रियासत थी। मढि़या मोहल्ला स्थित महाशक्ति श्री महाकालेश्वर प्राचीन शिव मन्दिरों में उनकी गौरव गाथा आज भी पल्लवित है। यहाँ महाराजा गंगाधर राव और उनके बाद महारानी लक्ष्मीबाई प्रत्येक सोमवार को शिव दर्शन के लिए आती थीं। कहते हैं महारानी लक्ष्मीबाई की श्री महाकालेश्वर में बड़ी आस्था थी।
राजा बाबा महाकालेश्वर मन्दिर
बड़ागाँव गेट बाहर महाकालेश्वर राजा बाबा मन्दिर की वास्तुकला चन्देल शासनकाल से मिलती-जुलती है। यह 14वीं सदी की बताई जाती है। कहते हैं सुन्दरपुरी एवं नारायणपुरी महाराज (नागा महाराज) थे, जिन्होंने महाकालेश्वर सहित निकट ही चार शिवालय मृत्युंजय, हजारिया शंकर जी एवं खेरापतिनाथ की स्थापना की थी। आस्था और शक्ति के प्रतीक महाकालेश्वर के दर्शन का बड़ा महत्व है। यहाँ पिछले 64 वर्ष से महाशिवरात्रि पर्व पर शिव बारात निकाली जा रही है।
दीक्षित बाग शिव मन्दिर
श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक दीक्षित बाग स्थित शिव मन्दिर भी आस्था का प्रतीक है। मन्दिर के अवशेष बताते हैं कि यहाँ से झाँसी दुर्ग तक गुप्त रास्ता था, जिससे महारानी लक्ष्मीबाई शिव दर्शन के लिए आती थीं। श्रद्धालुओं की शिव मन्दिर में बड़ी आस्था है।
ह़जारिया शिवालय
प्राचीन शिव मन्दिरों में एक पानी वाली धर्मशाला पर स्थित हजारिया शिव मन्दिर प्रसिद्ध है। मराठा एवं बुन्देली शैली में निर्मित मन्दिर संस्कृति के अनूठे संगम का प्रतीक है। प्रत्येक सोमवार को यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
फूटा चौपड़ा
फूटा चौपड़ा शिव मन्दिर भी गुसाइयों की शिव उपासना का प्रतीक है। गुसाई नागा महाराज लड़ाकू थे। युद्ध कौशल में निपुण नागा महाराज किसी भी राज्य की रक्षा के आमन्त्रण को स्वीकार कर लेते थे। फूटा चौपड़ा शिव मन्दिर उनकी आस्था के दर्शन कराता है।
झाँसी दुर्ग स्थित शिव मन्दिर
किले में स्थित भगवान शिव का मन्दिर मराठा व बुन्देली स्थापत्य शैली के मिश्रण का सुन्दर नमूना है। यह मराठा शासक नारोशंकर के काल में निर्मित हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई वहाँ नियमित पूजा करने जाती थीं। मन्दिर में स्थापित मुख्य शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर का बना हुआ है। नगर में उसी समय के कई शिवालय हैं।
भैरव बाबा
झाँसी दुर्ग से भी प्राचीन भैरव बाबा का मन्दिर है। मन्दिर की स्थापना का तो कोई इतिहास नहीं हैं। लेकिन बताया जाता है कि इस पहाड़ी पर भैरव बाबा मन्दिर किले के निर्माण के भी पहले था, जिसे नष्ट नहीं किया गया, बल्कि किले के बीचों बीच आज भी स्थापित है।
सिद्धेश्वर मन्दिर
आचार्य रघुनाथ राव धुलेकर द्वारा 1933 में सिद्धेश्वर पीठ की स्थापना कराई थी। आचार्य ने यहाँ कुण्ड की खुदाई कराई, तब प्राचीन शिवलिंग व नन्दी प्राप्त हुए। पुष्य नक्षत्र में दक्षिण वस्तु शैली पर आधारित श्री यन्त्र के नक्शे पर बने बामौर के पत्थरों से निर्मित मन्दिर में शिवलिंग की स्थापना कराई। पुष्य नक्षत्र में स्थापित होने के कारण इसकी सिद्ध ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजा की जाती है।
महर्षि दयानन्द के बोध पर्व पर विविध कार्यक्रम आज
झाँसी : ़िजला आर्य उप प्रतिनिधि सभा के तत्वावधान में महर्षि दयानन्द का बोध पर्व आज मनाया जाएगा। सभा के मन्त्री अशोक सूरी ने बताया कि मुक्ताकाशी मंच पर प्रात: 10 बजे से अपराह्न 1 बजे तक विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे। कार्यक्रम में सर्वधर्म सद्भाव समिति के पदाधिकारी भी शामिल होंगे।
पहली सदी के सिक्के पर भोले भण्डारी
झाँसी : पहली सदी (कुषाणकाल) में भी कबीले के लोगों ने भगवान शिव की आकृति वाले सिक्के छापे, जो आज दर्शन के लिए उपलब्ध हैं। यह सिक्का देखा जा सकता है अनोखे सिक्कों का संग्रह करने के शौकीन हरिमोहन दुबे के पास। हरिमोहन बताते हैं कि 160 ईसा पूर्व के लगभग मध्य एशिया निवासी यूह-ची नामक कबीले के लोग अफगानिस्तान में आश्रय पाकर रहने लगे। वहाँ से भगाये जाने के बाद क्यू-श्वांग (कुषाण) नामक कबीले के नाम से भारत के उत्तर में प्रवेश कर गये। पंजाब के कुछ प्रान्तों के अलावा उत्तर प्रदेश व बिहार में भी इनका शासन माना गया। इन कबीलों के राजा भारतीयों को अपना बनाने के लिए तत्कालीन शिव सम्प्रदाय में शामिल हो गये व सोने, चाँदी, तांबे के सिक्कों में भगवान शंकर की आकृति नन्दी व बिना नन्दी के छापनी शुरु कर दी। पहली सदी के तांबे का सिक्का 17 ग्राम वजन का है। इन सिक्कों में भगवान शिव के चार हाथ दिखाये गये हैं, जिसमें डमरू, त्रिशूल, काल-फास व कमण्डल लिये दिखाया गया है।