किरायेदारी से आयकर चोरी पर चला चाबुक
झाँसी : किरायेदारी ने भी भ्रष्टाचार को कम बढ़ावा नहीं दिया है। अपने मकान या दुकान का किराया अब ऩकद
झाँसी : किरायेदारी ने भी भ्रष्टाचार को कम बढ़ावा नहीं दिया है। अपने मकान या दुकान का किराया अब ऩकद की बजाय जब चेक या ऑनलाइन बैंकिंग से लिया जाएगा, तो बैंकों के माध्यम से यह जानकारी आयकर विभाग के पास पहुँच जाएगी। अभी तक ऩकदी में लेन-देन के चलते इससे आयकर चोरी किया जाता रहा है।
महानगर में सैकड़ों ऐसे घर व दुकानें हैं, जो मालकियत किसी और की हैं, पर इन्हें किराये पर दिया गया है। इस प्रॉपर्टी का क्या इस्तेमाल हो रहा है, यह जानकारी आयकर विभाग तक नहीं पहुँच पाती थी, इसलिए मकान या दुकान मालिक किराया ऩकद ही लेते थे। इससे किराये की यह धनराशि आय में नहीं जुड़ पाती है और इसके माध्यम से कर चोरी किया जा सकता है। यह मामला आयकर विभाग के लिए भी सिरदर्दी बना हुआ था। इसका तोड़ निकालने की तैयारी बहुत पहले से की जा रही थी, पर ऐसा हो नहीं पाया। सीमित संसाधनों के चलते यह पता नहीं हो पा रहा था कि लोग अपने मकान या दुकान का खुद उपयोग कर रहे हैं या अन्यत्र से करा रहे हैं। अब जब नोटबन्दी का निर्णय लागू कर दिया गया है, इसे किरायेदारी से आयकर चोरी करने के सिस्टम पर तगड़े प्रहार के रूप में देखा जा रहा है। इस प्रहार के भी दरअसल दो पहलू हैं। पहला जो अच्छा है, वह यह है कि लिमिटेड कैश निकालने की व्यवस्था व कैशलैस सोसायटि को बढ़ावा देने से अब मकान या दुकान मालिकों को किराया चेक या ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से ही स्वीकार करना पड़ेगा। जाहिर है कि पैसा बैंक में जाएगा, तो वह आय में जुड़ जाएगा। बैंक के माध्यम से आयकर विभाग आसानी से ऩजर रख पाएगा और नोटिस भेजकर पूछ सकेगा कि यह आय किस माध्यम से बढ़ी। ऐसे में पकड़े गए व्यक्ति को जवाब देना मुश्किल होगा। सा़फ है कि लोग पकड़े जाने के डर से ऐसा करने से बचेंगे और इस आय पर भी आयकर चुकाएंगे। इसका दूसरा पहलू जो थोड़ा खराब है, वह यह कि अभी तक इस व्यवस्था के लिए कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी नहीं की गयी, जिससे किरायेदारों की मुश्किल बढ़ गयी है। मकान या दुकान मालिक किराया ऩकद ही माँगेंगे, तो किरायेदार को बने रहने के लिए यह करना होगा और ऐसा न करने पर उसे हटाने का विकल्प मकान या दुकान मालिक के पास रहेगा। ऐसे में यदि इस बाबत कोई गाइडलाइन जारी हो जाती है कि किराया चेक या ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से ही स्वीकार किया जाए, तो किरायेदारों को राहत मिल जाएगी। किरायेदारों को नाम गोपनीय रखने पर शिकायत का विकल्प भी उपलब्ध हो जाए, तो इससे निश्चित तौर पर आयकर की चोरी बचायी जा सकती है। आने वाले समय में जब सोसायटि कैश लेस हो जाएगी, तब तो यह हो ही जाएगी, पर बात वर्तमान स्थिति की भी है।