मुआवजे से अधिक प्रीमियम
झाँसी : प्राकृतिक आपदा से बर्बाद किसानों को उबारने के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय फसल बीमा योजना छलावा
झाँसी : प्राकृतिक आपदा से बर्बाद किसानों को उबारने के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय फसल बीमा योजना छलावा बन गई है। योजना के तहत प्रीमियम अधिक जमा हो रहा है, जबकि क्लेम की राशि काफी कम है। पिछले तीन फसल चक्रों में किसानों ने 1 अरब से अधिक का प्रीमियम कम्पनि को दिया, जबकि क्षतिपूर्ति लगभग 69 करोड़ की ही हो पाई है। हालाँकि विगत वर्ष ख़्ारीफ में हुए नुकसान का बीमा धन मिलना अभी बाकी है।
बुन्देलखण्ड में खेती-किसानी अब जोखिम का काम हो गई है। वैसे तो यहाँ पानी का अभाव बना रहता है, जिससे किसान मनमाफिक पैदावार नहीं कर पाता है। अगर मेहनत-मशक्कत और कर्ज लेकर खेतों में बीज डाल भी लेता है तो कभी अतिवर्षा तो कभी ओलावृष्टि खड़ी फसलों पर पानी फेर देती है। साल-दर-साल का यह सिलसिला टूटने का नाम नहीं ले रहा है, जिससे किसान बर्बादी के दलदल में फँसता जा रहा है। प्राकृतिक संकट से किसानों को बचाने के लिए शासन द्वारा राष्ट्रीय फसल बीमा योजना संचालित की जा रही है। प्राकृतिक आपदाओं से घिरे रहने वाले बुन्देलखण्ड के लिए यह योजना वरदान साबित होनी चाहिए थी, लेकिन खामियों की वजह से अभिषाप बन गई है। योजना की सच्चाई देखें तो पता चल जाएगा कि फसल बीमा के नाम पर किसानों को किस तरह से छला जा रहा है। विगत 3 फसलों की बीमा राशि और प्रीमियम के बीच के अन्तर योजना की कलई खोलने के लिए काफी है। वर्ष 2014 खरीफ में जनपद के 72,321 किसानों ने फसलों का बीमा कराया और प्रीमियम के रूप में 25.15 करोड़ रुपए की धनराशि कम्पनि के हवाले की। पानी के अभाव ने फसलों को प्रभावित किया और बीमा क्लेम की प्रक्रिया शुरू हुई। कम्पनि ने किसानों को केवल 20.31 करोड़ रुपए की ही क्षतिपूर्ति दी। यह धनराशि प्रीमियम से लगभग 5 करोड़ रुपए कम रही। इसके बाद रबी सी़जन में 1,14,996 किसानों ने फसलों का बीमा कराते हुए 32.60 करोड़ रुपए का प्रीमियम जमा किया। ओलावृष्टि ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। इस बार बीमा कम्पनि ने 48.71 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति दी। वर्ष 2015 में खरीफ सी़जन में 1,60,609 किसानों ने फसलों का बीमा कराते हुए 48.26 करोड़ रुपए का प्रीमियम जमा किया। इस बार सूखे ने फसलों को अपनी चपेट में ले लिया और किसान फिर तबाह हो गया। इसकी क्षतिपूर्ति का अब तक बीमा कम्पनि द्वारा निर्धारण नहीं किया जा सका है। अगर इन तीन फसल चक्रों में ही देखें तो किसानों ने अब तक कम्पनि को 106 करोड़ रुपए का प्रीमियम दिया, जबकि बदले में कम्पनि द्वारा 69 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति ही दी है, जो 36.99 करोड़ रुपए कम है। हालाँकि योजना के तहत प्रीमियम की धनराशि में राज्य व केन्द्र सरकार का भी हिस्सा शामिल है, इसलिए किसानों को नुकसान कम हो रहा है।
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बुन्देलखण्ड में प्रीमियम भी अधिक
तबाही के मुहाने पर खड़े बुन्देलखण्ड के किसानों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जा रहा है, इसका अन्दाजा बीमा कम्पनि द्वारा वसूले जा रहे प्रीमियम से लगाया जा सकता है। कम्पनि द्वारा यहाँ प्रदेश के अन्य जनपदों से कहीं अधिक प्रीमियम राशि वसूली जा रही है। दरअसल, बुन्देलखण्ड में निरन्तर प्राकृतिक आपदाएं आने के कारण यहाँ कोई बीमा कम्पनि फसलों का बीमा करने को तैयार नहीं थी, जिस कारण कुछ शर्तो के साथ कम्पनि को लाया गया।
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ऐसे किया जाता है क्षति का आकलन
प्राकृतिक आपदा से फसल बर्बाद होने का आकलन भी काफी पेचीदा है। इसके लिए उन 7 वर्षो की उत्पादकता देखी जाती है, जिनमें फसलें नष्ट न हुई हों। इसके बाद क्रॉप कटिंग के आँकड़ों से मिलान करने के बाद उत्पादन में आए अन्तर को नुकसान की श्रेणी में रखते हुए क्षतिपूर्ति दी जाती है।
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यह है प्रति हेक्टेयर बीमा कवर
गेहूँ : 28,243
चना : 19,306
मटर : 24,992
मसूर : 8,653
उर्द : 6,525
धान : 19,223