चौकीदार की भूमिका से बाहर आएगी आरपीएफ
- ट्रेन में अपराध रोकने के लिए आरपीएफ के अधिकारों का होगा विस्तार - रेलवे ने ़कानून मन्त्रालय को भ
- ट्रेन में अपराध रोकने के लिए आरपीएफ के अधिकारों का होगा विस्तार
- रेलवे ने ़कानून मन्त्रालय को भेजा रेलवे ऐक्ट संशोधन का प्रस्ताव
झाँसी : ट्रेन में बढ़ रहे अपराधों पर नकेल कसने के लिए रेलवे ने रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) के अधिकार विस्तार की व़कालत की है। प्रत्येक मण्डल की अपराध समीक्षा के बाद रेलवे बोर्ड ने रेलवे ऐक्ट को संशोधित करने का प्रस्ताव ़कानून मन्त्रालय को भेज दिया है। इसके तहत पैसिंजर क्राइम में आरपीएफ की भूमिका बढ़ायी जाएगी। वर्तमान में आरपीएफ के पास सिर्फ चालान करने का अधिकार है, जोकि अपराधियों में डर पैदा करने में नाकाफी साबित हो रहा है।
गौरतलब है कि ट्रेन में आपराधिक घटनाएं रोकने की जिम्मेदारी संयुक्त रूप से आरपीएफ व राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सौंपी गई है। इसमें जीआरपी के पास तो मु़कदमा द़र्ज करने का अधिकार है पर आरपीएफ के पास नहीं। आरपीएफ के पास रेलवे ऐक्ट में कुल 29 धाराएं हैं, जिसके तहत चेन पुलिंग, अवैध वेण्डिंग, अनाधिकृत रूप से यात्रा करना, बदबूदार सामान ले जाने, ज्वलनशील पदार्थ ले जाने, झगड़ा करने आदि में चालान किया जा सकता है। इन धाराओं में चालान होने पर आरोपी को सिर्फ जुर्माना अदा करना होता है। इसके अलावा रेल सम्पत्ति चोरी व रेलवे की ़जमीन पर ़कब़्जा करने पर आरपीयूपी ऐक्ट का प्राविधान है। एफआइआर द़र्ज करने का अधिकार न होने के कारण आरपीएफ को मजबूरन गम्भीर मामलों में भी इन धाराओं का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे अपराधी आसानी से बच निकलते हैं। इसके अलावा मामला द़र्ज कराने के लिए आरपीएफ को या तो जीआरपी या फिर सिविल पुलिस पर निर्भर होना पड़ता है। ऐसे में अपराध का घटनास्थल बदल जाना आम बात है। कई बार आरपीएफ व जीआरपी में सामंजस्य न होने के कारण मामला द़र्ज ही नहीं हो पाता, जिसका लाभ अपराधी को मिलता है। ऐसे में आरपीएफ की भूमिका महज चौकीदार की बनकर रह गई है। लगातार ऐसे मामले सामने आने पर रेलवे ने यात्री सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आरपीएफ को अधिक अधिकार देने की ़जरूरत महसूस की। गहन मन्थन के बाद रेलवे बोर्ड ने ़कानून मन्त्रालय को रेलवे ऐक्ट को संशोधित करने का प्रस्ताव भेज दिया है। भेजे गये प्रस्ताव में पैसिंजर क्राइम में आरपीएफ की भूमिका सुदृढ़ करने के लिए धाराएं बढ़ाने एवं सजा सख़्त करना मुख्य रूप से शामिल है। बताया जा रहा है कि आरपीएफ को एफआइआर द़र्ज करने का अधिकार देने की बात भी इसमें कही गई है। रेलवे का उद्देश्य यह है कि अधिकारों की कमी के चलते यात्रियों की सुरक्षा से समझौता न हो। अपराधियों की धरपकड़ प्रक्रिया में दो एजेन्सी़ज के शामिल होने का नतीजा ही है कि अधिकार न होने की बात कहकर आरपीएफ भी अपराधियों को पकड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखाती। रेलवे का मानना है कि जिम्मेदारी बढ़ेगी, तो जवाबदेही भी तय होगी।