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तस्वीरों के माध्यम से झाँकती धरोहर

झाँसी : इतिहास व प्राचीन संस्कृति के प्रतीक के रूप में यदि गौरवशाली धरोहर को बहुत लम्बे समय तक मजबूत

By Edited By: Published: Tue, 25 Nov 2014 01:33 AM (IST)Updated: Tue, 25 Nov 2014 01:33 AM (IST)
तस्वीरों के माध्यम से झाँकती धरोहर

झाँसी : इतिहास व प्राचीन संस्कृति के प्रतीक के रूप में यदि गौरवशाली धरोहर को बहुत लम्बे समय तक मजबूती से यथावत् खड़े देखना है, तो उसे अपने दिलों में जगह देनी होगी- यह बात बख़्ाूबी समझकर पुरातत्व विभाग आम लोगों को अपनी धरोहर से जोड़ने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है। इन्हीं प्रयासों के अन्तर्गत झाँसी मण्डल की क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई ने बुन्देलखण्ड के वासियों को तस्वीरों के माध्यम से क्षेत्र की धरोहर के प्रति जागरुक करने के लिये राजकीय संग्रहालय में प्रदर्शनी का आयोजन किया है। क्षेत्रीय प्रतिभाशाली फोटोग्राफर्स और चित्रकार की तस्वीरों और चित्रों से सजी 7 दिवसीय नि:शुल्क प्रदर्शनी को देखने के लिये महानगरवासियों के अतिरिक्त देशी-विदेशी पर्यटक भी खासे उत्सुक दिखे। विश्व धरोहर सप्ताह के अन्तर्गत पुरातत्व विभाग द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों में से अपनी धरोहर को जानने व समझने का रोचक तरीका प्रतीत होती इस प्रदर्शनी के प्रति विशेष रूप से विद्यार्थियों में सहज रुचि देखने को मिल रही है।

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रंगों से बयाँ होतीं अनमोल विरासतें

पर्यटन की दृष्टि से आपने अपने विरासत स्थलों का भ्रमण कई बार किया होगा, परन्तु उन्हीं विरासत को सुन्दर स्केच व रंगीन चित्रों के रूप में हू-ब-हू प्रस्तुत करना व देखना अलग ही एहसास है। इस एहसास को बयाँ किया है झाँसी के वरिष्ठ चित्रकार विकास वैभव ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से। झाँसी समेत बुन्देलखण्ड के महत्वपूर्ण स्थलों को उन्होंने अपने चित्रों में दर्शा कर उनकी खूबसूरती एक अलग ही तरीके से प्रस्तुत की है। जहाँ वॉटर कलर व जेल पेन के संयोजन से रानी लक्ष्मीबाई का किला, लक्ष्मी मन्दिर, गुसाई मन्दिर समूह, सेण्ट ज्यूड्स चर्च, राम-जानकी मन्दिर, समथर दुर्ग जैसे अद्भुत स्थलों के चित्र बनाये गये हैं, वहीं दूसरी और मात्र वॉटर कलर से निर्मित चित्रों में प्राचीन बुन्देली कलाओं व परम्पराओं को जीवित रखने का प्रयास किया गया है। ओरछा स्थित रामराजा मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर, जहाँगीर महल व रायप्रवीण महल के खूबसूरत स्केच बरबस ही इन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखने की लालसा पैदा करते हैं और जिन्होंने देखा है- उनके मन में इन्हें देखने का एक अलग ही ऩजरिया विकसित करते हैं।

बना रहे बुन्देलखण्ड का गौरव!

हमारी संस्कृति व वैभवशाली अतीत जीवित रहे- इसी आस के साथ चित्रकार विकास वैभव ने बुन्देलखण्ड से सम्बद्ध प्राचीन कलाओं व घटनाओं का समावेश अपने चित्रों में करने का प्रयास किया है। जालौन जिले के गाँव जखौली के विकास ने फाइन आर्ट में एमए किया है। झाँसी महोत्सव व उरई लोकोत्सव समेत बुन्देलखण्ड के विभिन्न हिस्सों में लगने वाली चित्र प्रदर्शनियों में अपने चित्रों के माध्यम से वह अपनी प्रतिभा व बुन्देलखण्ड के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करते आये हैं। वर्तमान में वह राजकीय इण्टर कॉलिज में चित्रकला के शिक्षक हैं और अब तक उनकी 3 पुस्तकें- 'गढ़कुण्डार में खंगार राजवंश', 'कला हस्ताक्षर' व चित्रकला आधारित पुस्तक 'विमल सागर' प्रकाशित हो चुकी है।

देखने को मिलेगा दुर्लभ चित्रों का संग्रह

कैसी थी वह तलवार, जिसके बल पर रानी लक्ष्मीबाई अपने झाँसी की रक्षा करने का साहस बनाये रखती थीं? कैसी थी हाथियों की वह विशाल ब्रिटिश सेना, जिसने सन् 1858 में हम पर आक्रमण किया था? कैसे थे सन् 1880 के सीपरी और सदर बा़जार, सन् 1889 के जीवनशाह रोड, सैंयर गेट और हमारे झाँसी का रेलवे स्टेशन? - प्रदर्शनी स्थल पर डॉ. वसीम खान के फोटो संग्रह में आपको महानगर के ऐसे ही महत्वपूर्ण स्थलों का तत्कालीन स्वरूप देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। पुरातत्व निदेशालय, लखनऊ के वरिष्ठ फोटोग्राफर द्वारा खींचे गये उत्खनन के फोटोग्राफ्स, अविनाश पाण्डेय द्वारा खींचे गये देवगढ़ स्थित बौद्ध गुफाओं के फोटोग्राफ्स के अतिरिक्त अतुल दीक्षित के फोटोग्राफ्स भी प्रदर्शनी के उद्देश्य की पूर्ति में सहायक बन रहे हैं। युवा फोटोग्राफर प्रशान्त पाण्डेय की फोटोग्राफी पुरानी धरोहर को नये अन्दा़ज में प्रस्तुत कर रही है। कालिंजर (बाँदा), ललितपुर, महेवा (महोबा), कालपी समेत बुन्देलखण्ड के विभिन्न विरासत स्थलों व स्मारको की झलकियाँ देती प्रदर्शनी में सुकवाँ-ढुकवाँ बाँध समेत झाँसी के कई दर्शनीय स्थलों को विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया गया है। साँची स्थित स्तूप व 'माया देवी का दिव्य स्वप्न' नामक उत्कीर्ण चित्रकारी के चित्र भी सैलानियों का मन मोह रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मोहन नेपाली द्वारा संग्रहीत दुर्लभ चित्रों को भी प्रदर्शनी में सम्मिलित किया गया है।

अपनी धरोहर की उपेक्षा करना अपनी जड़ों से कट कर अपने मूल अस्तित्व व गौरवशाली अतीत को विस्मृत कर देना है- इसके परिणाम निश्चित रूप से हमारे भविष्य पर विपरीत प्रभाव डालेंगे। आज (25 नवम्बर को) प्रदर्शनी का समापन दिवस है। अगर अभी तक आपने यहाँ आकर बुन्देलखण्ड से जुड़े दुर्लभ चित्रों व अपने विरासत स्थलों का अवलोकन नहीं किया, तो आज ही होकर आइये। हम अपनी धरोहर के संरक्षण की जिम्मेदारी लें- इसके लिये पहले आवश्यक है कि इनकी भव्यता व महत्व को हम अपने मन में अच्छी तरह बैठा लें।

प्रदर्शनी को लेकर दिखा उत्साह

राजकीय संग्रहालय का अवकाश होने के बाव़जूद सोमवार को भी प्रदर्शनी दर्शकों लिये खुली रही, जिसे देखने के लिए दिन भर लोग आते रहे। झाँसी के मुख्य विकास अधिकारी संजय कुमार ने प्रदर्शनी का अवलोकन करने के बाद इस सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये। इस अवसर पर पुलिन्दकला दीर्घा के प्रमुख मुकुन्द मेहरोत्रा, भोपाल की सिदरा आर्कियोलॉजी सोसायटी के पुराविद् डॉ. वसीम खान आदि उपस्थित रहे।

क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई के प्रभारी अधिकारी एसके दुबे ने बताया कि आज (25 नवम्बर को) बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के पर्यटन एवं होटल मैनेजमेण्ट संस्थान में विश्व धरोहर सप्ताह का समापन कार्यक्रम बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अविनाश चन्द्र पाण्डेय के मुख्य आतिथ्य में प्रात: 11 बजे से आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर बुन्देलखण्ड सहित विश्व की विभिन्न दुर्लभ धरोहर को प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया जाएगा और 19 नवम्बर को राजकीय संग्रहालय में हुई धरोहर सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरुस्कृत किया जाएगा।


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