जल संचय बिन सब सून!
झाँसी : भू-जल सप्ताह आज से प्रारम्भ हो गया है। इस अवधि में लोगों को जल संचयन व जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाएगा। जहाँ एक ओर औसत वर्षा की जबरदस्त कमी द़र्ज की जा रही है, वहीं भूजल के अनियन्त्रित दोहन ने ख़्ातरे की घण्टी बजा दी है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। बुन्देलखण्ड में भू-गर्भ जल की स्थिति बेहद खस्ता है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार यहाँ जलस्रोत मिलने की सम्भावनाएं क्षीण हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारियाँ और भी बढ़ जाती हैं। विशेष उपायों से अलग यदि हम रो़जमर्रा के घरेलू कार्यो में भी जल की बर्बादी न करने की ठान लें, तो यह जल संकट से मुक्ति पा सकते हैं।
बताते चलें कि बुन्देलखण्ड दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ वर्षा बेहद कम होती है। वर्तमान परिस्थितियों पर ऩजर डालें, तो आधी जुलाई बीत जाने के बाद भी यहाँ की ़जमीन बारिश के पानी की राह देख रही है। सबसे पहले बात झाँसी की। झाँसी जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 5079 वर्ग किलोमीटर है। यह जनपद दो भागों में विभाजित है। उत्तरी मैदानी क्षेत्र व दक्षिण पठारी क्षेत्र। पूरा क्षेत्र उतार-चढ़ाव वाला एवं पथरीला है। जनपद का उत्तर पश्चिम भाग दक्षिण पूर्व की तुलना में ऊँचा है, जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 311 मीटर है। यहाँ मुख्य रूप से सिंचाई राजकीय/गहरे नलकूप, निजी नलकूप, पम्प सेट एवं सिंचाई कूपों द्वारा की जाती है। यहाँ खेतों में मेड़बन्दी की कमी, लगातार बढ़ती बोरिंग, कुओं व तालाबों की जीर्णोद्धार न होना व वृक्षों की कटाई के चलते भूजल स्तर पर भारी गिरावट द़र्ज की गई है। ये ऐसा क्षेत्र नहीं, जहाँ वर्षा का जल भूमिगत होकर रुका रहे। यही कारण है कि गर्मी के मौसम में कई क्षेत्रों में भू-जल स्रोत सूख जाते हैं। भू-जल स्तर की बढ़ रही खाई को पाटने के लिए वर्षा जल संचयन बेहद आवश्यक हो गया है। वॉटर रिचा़िर्जग हेतु रेन वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाना अनिवार्य तो किया गया, पर इसका पालन न होना चिन्ता का विषय बना हुआ है। वहीं, ललितपुर भी स्थिति भी कुछ ख़्ास नहीं। इस क्षेत्र का भौगोलिक क्षेत्रफल 5039 वर्ग किलोमीटर है। जनपद का दक्षिण पूर्व भाग उत्तर पश्चिम की तुलना में ऊँचा है। जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 418.97 मीटर है। यहाँ कम गहराई वाले निजी नलकूप एवं बड़े व्यास के गहरे ब्लास्ट कूप ही उपयोगी हैं। दोनों जनपदों में आगामी समय में जल संकट उत्पन्न होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसका प्रमुख कारण आम जनता को इस अभियान से जुड़ाव न होना है। जागरूकता की कमी के चलते लगातार पानी की बर्बादी हो रही है। जल संचयन हो नहीं रहा। वर्षा का पानी संचित करने के लिए रूफ टॉप रेन वॉटर हार्वेस्टिंग मॉडल तैयार हैं, पर बजट की कमी के कारण इसे मॉडल तक ही सीमित रह गये हैं।