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किस बला का नाम है पर्यटन विकास!

By Edited By: Published: Mon, 07 Apr 2014 01:08 AM (IST)Updated: Mon, 07 Apr 2014 01:08 AM (IST)
किस बला का नाम है पर्यटन विकास!

झाँसी : झाँसी व ओरछा ने अपने दम पर पर्यटन के रूप में पहचान तो हासिल कर ली, लेकिन दोनों राज्यों की सरकारें इस पहचान को उद्योग में नहीं बदल सकीं। यही कारण रहा कि पर्यटन उद्योग के विकास में बुन्देलखण्ड अंचल लगातार पिछड़ता रहा। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र, जहाँ के पर्यटन विकास पर किसी ने ऩजर डालने की आवश्यकता ही महसूस नहीं की। जानकर आश्चर्य होगा कि खनिज के साथ ही इतिहास एवं पुरातात्विक सम्पदा से लबालब इस क्षेत्र को 'इन्द्र का प्रदेश' बनाने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों व राजनैतिक दलों ने बुन्देलखण्ड के पर्यटन उद्योग को अपने अजेण्डा में शामिल ही नहीं किया।

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उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड के अलग होने के बाद बुन्देलखण्ड में फैली ऐतिहासिक, प्राकृतिक व धार्मिक सम्पदा को विकसित करने पर बात शुरू हुई। तब, इस अंचल के पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लेकर की प्रस्ताव बनाए गए। इनमें पर्यटक व सैलानियों को यहाँ ठहराकर आसपास के पर्यटन स्थलों तक ले जाने की योजनाएं बनायी गयीं। लेकिन, यह फाइल लखनऊ व दिल्ली में जाकर अटक गई। पर्यटन विभाग व प्रशासनिक अफसर अपने स्तर पर विकास की इन योजनाओं को आगे बढ़ाते रहे, लेकिन प्रदेश व देश की सत्ता में रहे राजनैतिक दल व जनप्रतिनिधियों ने पर्यटन विकास को लेकर गम्भीरता नहीं दिखायी। लगभग दो दशक से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की जरूरत जनता प्रबलता से महसूस करती रही। इस दौरान केन्द्र की कांग्रेस समर्थित सरकार व उसके पहले भाजपा समर्थित सरकार तथा राज्य की बसपा, सपा व भाजपा सरकारें कोई बड़ी योजना लेकर नहीं आई। अब यही राजनैतिक दल व उनके प्रतिनिधि पर्यटन विकास को लेकर नए सिरे से वायदे करने लगे हैं।

व्यापार जगत ने भी नहीं उठाया जोखिम

राजनैतिक दलों व जनप्रतिनिधियों के साथ व्यापार जगत ने भी इस अंचल की भलाई को लेकर कोई योजना नहीं बनायी और न ही पूँजी लगाने का जोखिम उठाया। पर्यटन उद्योग के विकास में होटल्स की लम्बी श्रृंखला आवश्यक व अनिवार्य प्राथमिकता है। पर्यटक व सैलानियों के यहाँ आकर ठहरने की व्यवस्था होने पर ही पर्यटकों को रोक कर यहाँ के ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थलों तक ले जाने का प्रयास किया जा सकता है। यहाँ कुछ होटल्स तो बने, लेकिन ओरछा व खजुराहो की तरह स्टार होटल्स की चेन खड़ी नहीं हो पायी। पर्यटकों के उनके हिसाब के होटल पास ही ओरछा में मिलने लगे, तो पर्यटक स्टेशन से निकल कर सीधे ओरछा रवाना होने लगा। धीरे-धीरे यह रास्ता पर्यटन मानचित्र में शामिल सा हो गया। जानकार बताते हैं कि होटल्स नहीं होने से खानपान में भी महानगर पिछड़ गया। विदेशी पर्यटक स्वास्थ्य व पर्यावरण को लेकर सजग रहते हैं। उनके स्तर के खानपान के रेस्ट्रॉण्ट भी उपलब्ध नहीं हो सके। पर्यावरण की स्थिति भी चिन्ताजनक होती गयी। धूल, ध्वनि व जल प्रदूषण बढ़ा, उसे रोकने के प्रयास नहीं हो सके। इससे पर्यटक स्थलों की प्राकृतिकता भी प्रभावित होती रही।

पर्यटन विभाग व निगम में समन्वय ही नहीं

प्रदेश में पर्यटन विकास को लेकर शासन स्तर पर एक तकनीकि समस्या आड़े आती रही, जिसे दूर करने के प्रयास नहीं हुए। दरअसल, प्रदेश में योजनाएं बनाने व पर्यटकों को सुविधाएं लाने की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के पास है। बुन्देलखण्ड के पर्यटन विकास को लेकर इन दोनों विभागों में समन्वय नहीं बन सका। पर्यटन विकास निगम ने महानगर में न तो पर्यटक सुविधाएं उपलब्ध कराई और न ही पर्यटक स्थलों का प्रचार कर सका। रेलवे स्टेशन पर लगा काउण्टर बन्द पड़ा है, तो उसके द्वारा संचालित वीरांगना होटल पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है। यहाँ तक कि दिल्ली में बैठे अधिकारी भी यहाँ पर्यटक लाने की कोई योजना नहीं बना पा रहे हैं। झाँसी के नाम व पहचान का उपयोग भी विभाग व निगम नहीं कर पा रहे हैं। इसके मुकाबले मध्यप्रदेश के अफसरों ने दिल्ली से लेकर विदेशों में अपने सम्पर्क बनाकर ट्रेवल एजेन्सी़ज से लाभ उठाया। इसीलिए ओरछा व खजुराहो जाने वाला पर्यटक महानगर से बाय-बाय करता निकल जा रहा है।

बस यह बनते रहे प्रस्ताव

लक्ष्मीताल का सुन्दरीकरण

लक्ष्मीताल के सुन्दरीकरण के लिए बनाकर भेजे गये प्रस्ताव को केन्द्र सरकार ने सैद्धान्तिक स्वीकृति दे दी। पर, धनराशि स्वीकृत होने व कार्यदायी संस्था तय होने में ही पूरी समय निकल गया और अब लोकसभा चुनाव आ गए। अन्तत: सुन्दरीकरण का प्रस्ताव ़जमीन पर नहीं उतर सका। जल निगम ने लक्ष्मीताल के सुन्दरीकरण के लिए 62 करोड़ रुपए से अधिक की योजना राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय को भेजी। साल भर विशेषज्ञ टीमों के आने, लखनऊ व दिल्ली में बैठकें होने का क्रम चलता रहा। धनराशि स्वीकृत होने तथा कार्यदायी संस्था तय होने का भ्रम लगातार चलता रहा। इसी को लेकर लम्बी ़कवायद चलती रही। पर, लोकसभा चुनाव की घोषणा होने तक कोई सार्थक प्रयास ़जमीन पर नहीं उतर सके। इसके पहले भी कई बार प्रयास होते रहे। 33 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में फैले लक्ष्मीताल में जलभराव का क्षेत्र 31 हेक्टेयर से कुछ अधिक है। पर लक्ष्मीताल का जलभराव लगातार कम होता गया और पानी में प्रदूषण बढ़ता रहा।

फिर अपने स्वरूप में लौटेगी गढ़मऊ झील

झाँसी, विशेषकर महानगर में पर्यटन विकास के लिए सही दिशा में प्रयास नहीं किए गए, जिससे सार्थक परिणाम सामने नहीं आए। गढ़मऊ झील के सुन्दरीकरण के लिए 5.86 करोड़ रुपए केन्द्र सरकार से स्वीकृत हुए, तो राज्य सरकार का 12.50 प्रतिशत अंश नहीं मिला। इस झील के चारों ओर वृहद प्राकृतिक धरोहर बिखरी पड़ी है। नैनीताल व भीमताल की तरह ही झील का विकास करने की योजना बनायी गयी थी। प्रस्ताव में झील के बीच के टापू को विकसित करते हुए कैफेटेरिया, छोटे-छोटे हट डिवेलप करने, झील में मोटरबोट चलाया जाना शामिल है। झील के चारों तरफ घाट बनाने के साथ पाथ-वे बनाने तथा कार पार्किग स्थल भी तैयार किए जाने थे। झील को विकसित करने के लिए 6.58 करोड़ रुपए का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया था। 220 एकड़ में फैली झील में 128 एकड़ गढ़मऊ व शेष पालर ग्रामसभा में सम्मिलित है।

सजेगी महानगर की विरासत

नगर निगम क्षेत्र में विरासत को संरक्षित करने की योजना भी बनायी गयी थी। जीर्णोद्धार व सुन्दर बनाने के लिए 12 खिड़की, 6 दरवाजे व परकोटे को इस योजना में शामिल किया गया। इस योजना को लेकर जानकारी दी गई कि किले के दरवाजे व खिड़की को मूल स्वरूप में लाने के लिए काम किया जाएगा। इसके साथ ही कानपुर मार्ग पर झरना जैसा पार्क बनाने, मेडिकल कॉलेज के पहले पहाड़ी पर झरना बनाने, झाँसी किले के साथ अन्य पुरातत्व व ऐतिहासिक स्थलों की प्रतिकृति बनाए जाने के प्रस्ताव भी बने हैं। यह योजना कहाँ तक पहुँची, इसकी जानकारी नहीं हो पा रही है।

आकर्षण का केन्द्र नहीं बन सका नारायण बाग

नारायण बाग को विकसित करने को भी योजनाएं बनीं। अब मुख्यमन्त्री की घोषणा में भी राजकीय उद्यान नारायण बाग व विकास शामिल हुआ, जिसमें लगभग 86 लाख रुपए स्वीकृत भी हुए और कुछ काम भी हुआ। पर, अभी यह पर्यटक आकर्षित करने की स्थिति में नहीं पहुँचा।

एरच व अन्य ऐतिहासिक स्थल

जनपद के ऐतिहासिक स्थल एरच को विकसित करने का भी प्रस्ताव भेजा गया था। जनपद में अन्य पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए 40 लाख रुपए के प्रस्ताव अलग से भेजे गए।

बेतवा के घाटों का विकास

महानगर के किनारे से निकली बेतवा के किनारे पर नौकायन का प्रस्ताव भी हवा में ही है। ऐसे कई प्रस्ताव बने और फाइल में बन्द होते रहे। बेतवा के घाटों को विकसित कर नौकायन के माध्यम से विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने को लेकर कई बार बात हुई। खजुराहो मार्ग पर बेतवा किनारों के घाटों को विकसित करने से जनपद के पर्यटन उद्योग के लिए बड़ा कदम साबित हो सकता है।

फाइल : रघुवीर शर्मा

समय : 6.10

6 अप्रैल 2014


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