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मैंने अपनी मौत की अ़फवाह फैलायी कि बस/कैसे-कैसे दावे लेकर लोग घर तक आ गये

By Edited By: Published: Sun, 06 Apr 2014 01:08 AM (IST)Updated: Sun, 06 Apr 2014 01:08 AM (IST)
मैंने अपनी मौत की अ़फवाह फैलायी कि बस/कैसे-कैसे दावे लेकर लोग घर तक आ गये

झाँसी : राजकीय संग्रहालय के ऑडिटोरियम में देश-प्रदेश में अपनी शाइरी के लिये विशिष्ट ख्याति रखने वाले शाइर कालका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' की काव्य स्मृतियों को चिरस्थायी करने की दृष्टि से साहित्यिक संस्था 'अंजुमन-ए-तामीर-ए-अदब' के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय मुशायरे में आमन्त्रित कवि-शाइरों ने श्रोताओं को देर शाम तक आह्लादित किया। मुम्बई से आये अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के शाइर, समालोचक एवं साहित्यकार सागर त्रिपाठी ने हिन्दी-उर्दू काव्य की समवेत् प्रस्तुतियों से परिवेश को अपने नाम कर लिया। बड़ी संख्या में उपस्थित गणमान्य श्रोताओं के समक्ष अन्य आमन्त्रित कवि-शाइरों ने भी विशुद्ध साहित्यिक रचनायें सुनाकर यह बता दिया कि ब़गैर लती़फेबाजी की चाशनी के ़खालिस शाइरी एवं कविता आज भी उसी संजीदगी से सुनी जाती है।

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कार्यक्रम का दीप मुख्य अतिथि दैनिक जागरण के सम्पादक यशोवर्धन गुप्त के साथ ही विशिष्ट अतिथिगणों अंजुमन के संरक्षक प्रदीप जैन 'आदित्य', पूर्व राज्यमन्त्री हरगोविन्द कुशवाहा, विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार मो. उस्मान, पंजाब नैशनल बैंक के री़जनल मैनेजर सुभाष चन्द्र शर्मा आदि ने समवेत् रूप से प्रज्च्वलित किया। मुख्य अतिथि ने अपनी संक्षिप्त, किन्तु सारगर्भित टिप्पणी में यमक अलंकार का प्रयोग करते हुये कहा कि 'बशर' (कालका प्रसाद 'बशर') मर नहीं सकता, बशर (इन्सान) कभी नहीं मरता। कार्यक्रम के औचित्य पर 'बशर' झाँसवी के पुत्र रजनीश श्रीवास्तव एवं कार्यक्रम संयोजक मुनव्वर ़खान एड. ने प्रकाश डालते हुये कहा कि उर्दू साहित्य की जिस शम्अ को 'बशर' साहब ने प्रज्ज्वलित किया था, उसकी लौ को चिरस्थायी रखने का प्रयास होगा तथा आगे भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहेगे। दैनिक जागरण के सह सम्पादक सुरेन्द्र सिंह ने 'बशर' झाँसवी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपने संस्मरणों के माध्यम से उजागर किया। सम्मानित अतिथियों का स्वागत देवेन्द्र श्रीवास्तव, संजय पटवारी, दिनेश भार्गव, श्रीमती कुन्ती हरीराम, श्रीमती प्रीति श्रीवास्तव, भानू सहाय, सुरेन्द्र सक्सेना, बृजेन्द्र श्रीवास्तव आदि ने किया। इस दौरान सागर त्रिपाठी, जमील झाँसवी, हलीम राना, मुनव्वर ़खान, सरोश झाँसवी, इ़कबाल हसन 'सहबा' को सम्मानित अतिथिगणों ने उर्दू शाइरी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये 'बशर अवॉर्ड ऑफ अचीवमेण्ट' व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। अतिथिगणों ने कहा कि सम्मान एवं पुरस्कार साहित्य सृजकों को और बेहतर करने की प्रेरणा एवं सम्बल् प्रदान करते है। अतिथियों ने 'याद-ए-बशर' स्मारिका के साथ ही जमील झाँसवी के ़गजल संग्रह-'इज्तिराबे-इश़्क (प्यार की बेचैनी)' एवं हलीम राना के ़गजल संग्रह-'स़फर लहू-लहू' का विमोचन भी किया।

कार्यक्रम का औपचारिक शुभारम्भ म़कसूद अली 'नदीम' द्वारा प्रस्तुत 'बशर' झाँसवी की ़गजल- 'मैं ढँूढ़ता हूँ दिल को न जाने कहाँ-कहाँ/कुछ ऐसा लापता है तुम्हे देखने के बाद से हुआ।' उस्मान 'अश्क' ने वर्तमान परिवेश पर ़गजल- '़खबरों की कतरनों से वो अ़खबार हो गया/़गजलें चुरा के औरों की ़फनकार हो गया', अरमान तिवारी ने- 'बेहुनर हाथ मिटा देते है हीरे का वुजूद/दश्ते-़फनकार (कलाकार के हाथ) से पत्थर भी सँवर जाते है', लती़फ झाँसवी ने- 'उनसे मिलकर ये क्या हुआ मुझको/होश बा़की नहीं रहा मुझको', 'सिराज' तनवीर हमीरपुरी ने- '़ख्वाहिशें क्या ़ख्वाब बुनने में लगी है/बच्चियाँ है फूल चुनने में लगी है', इ़कबाल 'बन्ने' ने- 'बरगद ने पनपने न दिया कोई भी पौधा/सदियों से यही उसका हुनर देख रहे है', मदन मानव ने- 'कुहरा आज भी सूरज न निकलने देगा/ब़र्फ शिखरों पै जमी है न पिघलने देगा', जब्बार शारिब ने- 'जब हमको दोस्तों के करम याद आ गये/पलकों पै आँसुओं के दिये झिलमिला गये', राजकुमार अंजुम ने- 'कभी जुनूँ तो कभी बे़खुदी में गुजरी है/वो जिन्दगी जो तिरी बेरु़खी में गुजरी है', अब्दुल ़गनी 'दानिश' ने 'इस ़गमजदा हयात में कोई ़खुशी तो है/बुझता हुआ चरा़ग सही रोशनी तो है', इ़कबाल हसन 'सहबा' ने- '़गजल के हुस्न की गहराइयों में डूब गये/तिरे ़ख्याल की परछाइयों में डूब गये', सऱफराज 'मासूम' ने- 'ये ़खबर सुन के परेशान है हिन्दू-मुस्लिम/एक इन्सान ने इन्सान से बातें की है', मुनव्वर एड.ने- 'समझे ब़गैर कुछ भी न बोला करे कोई/कहने से पहले बात को तोला करे कोई', जाहिद कोंचवी ने- 'पलकों ने आँसुओं को छुपाने नहीं दिया/हमको ़खुशी का जश्न मनाने नहीं दिया', हलीम राना ने- 'ज़ख्म खाओगे मुसलसल उम्र/दोस्ती कर ली अगर नादान से', जमील झाँसवी ने- 'ज़ख्म तड़पाये तो फिर क्या होगा/हम न सह पाये तो फिर क्या होगा', वसी 'सालिक' ने- 'आज हम वो देखते है जो कभी देखा नहीं/अब नये इस दौर में कुछ भी तो दर-पर्दा नहीं' आदि ़गजलों की प्रस्तुति से कार्यक्रम को ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। सागर त्रिपाठी ने इस छल-प्रपंच की दुनिया पर ती़खी चोट करते हुये कहा- 'मैंने अपनी मौत की अ़फवाह फैलायी कि बस/कैसे-कैसे दावे लेकर लोग घर तक आ गये।' इनके अलावा अब्दुल हनी़फ 'माहिर', औसा़फ अली हुसैनी, अबरार 'दानिश', पंकज 'सम्राट', नूर मोहम्मद 'नूर', आरि़फ 'उमर', डॉ. इमदाद अली 'सदन', नियाज महोबवी, एए 'अजीज', मतीन 'हैरत' आदि ने भी अपने कलाम से प्रभावित किया। अन्त में संयोजक मुनव्वर ़खान ने आगन्तुकों एवं अतिथियों का आभार ज्ञापित किया।

- सागर त्रिपाठी के सम्मान में मुशायरा गोष्ठी का आयोजन रोज क्लब के तत्वावधान में किया गया, जिसमें अब्दुल हमीद, अब्दुल ़ग़फ़्फार, शादाब आलम, नौबत सिंह, अरमान तिवारी, अर्जुन सिंह 'चाँद', आरि़फ 'उमर', इ़कबाल हसन 'सहबा', हलीम राना, जब्बार शारिब, सऱफराज मासूम, सागर त्रिपाठी आदि ने ़गजलें पेश कीं। आभार क्लब के सेक्रेटरी शौ़कत उल्ला ़खान ने किया।

फोटो हाफ कॉलम

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जो जनमानस को सुसंस्कृत व सभ्य बनाये, वही सच्चा साहित्यकार : सागर त्रिपाठी

झाँसी : सागर त्रिपाठी का शुमार भारत के ऐसे चन्द अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों में किया जाता है, जो एक ही समय में कवि-शाइर, लेखक एवं बेहतरीन मुशायरा मंच संचालक है तथा जिनको मंचीय कवि सम्मेलन-मुशायरा आयोजनों के साथ-साथ विशिष्ट साहित्यिक संगोष्ठियों व स्थापित साहित्यकारों के मध्य समान रूप से सम्मान प्राप्त है। कुछ मंच संचालकों द्वारा मुशायरा व कवि सम्मेलन मंचों से सस्ते लती़फे एवं कविताओं के पढ़े जाने को वे अहम़काना कृत्य ़करार देते है। मुम्बई से यादे-'बशर' मुशायरे में शिरकत को यहाँ आये सागर साहब का कहना है कि यदि कवि सम्मेलन या मुशायरा ़खत्म होने के बाद लोगों की यह राय बनती है कि बड़ा म़जा आया, तो उनकी ऩजर में ऐसा कार्यक्रम असफल ही है, लेकिन यदि यह राय बनती है कि श्रोता पहले से अधिक सुसंस्कृत और सभ्य हुये है तथा उनकी मालूमात में इ़जा़फा हुआ है, तो वे ऐसे कार्यक्रम को सफल मानते है। उनका कहना है कि मुशायरा या कवि सम्मेलन को ज्ञान व संस्कृति का प्रतीक होना चाहिये। वे कविता या शाइरी को समाज का दर्पण मानते हुये कहते है कि यदि कम पढ़े-लिखे या निमन् मानसिकता वाले कवि-शाइर मंच या साहित्य से जुड़ते है, तो मंच का स्तर गिरेगा ही। आजकल अधिकांशतया यही हो रहा है। वे उस शाइरी को सफल मानते है, जो लिखी तो किसी एक कवि या शाइर के द्वारा गयी हो, लेकिन जिसमें अधिकांश लोग अपने दिलो-दिमा़ग की तस्वीर देख सकें। लगभग चार दशक से शाइरी कर रहे अनवर साहब के कई ़ग़जल संग्रह प्रकाशित हुये है, जिनमें 'सागर की लह्रे', 'रचना और रचनाकार', 'अलि़फ', 'कहकशाँ', 'माँ', 'किर्चियाँ', '़गजल सप्तक', 'उ़फुक', 'सायबाने-रहमत', 'कबन्ध' एवं 'शब्दवेध' अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है।

05 अंजुम

10.00


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