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तीन माह से छोटे बच्चे में निमोनिया खतरनाक

जौनपुर: सर्दियों के मौसम में यदि उनके शरीर का तापमान कम होने लगे तो नवजात की जान जोखिम में पड़ जाती ह

By Edited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 12:25 AM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 12:25 AM (IST)
तीन माह से छोटे बच्चे में निमोनिया खतरनाक

जौनपुर: सर्दियों के मौसम में यदि उनके शरीर का तापमान कम होने लगे तो नवजात की जान जोखिम में पड़ जाती है। जरूरी यह है कि बच्चे को बराबर गर्म रखें। थोड़ी सी लापरवाही निमोनिया की गिरफ्त में ले लेगी। यदि गलती से उसे ठंड लग जाए तो तत्काल उसका इलाज योग्य चिकित्सक से कराएं। उक्त बातें बाल रोग विशेषज्ञ डा. मुकेश शुक्ल ने शुक्रवार को तीर्थराज हास्पिटल रुहट्टा में ठंड के मौसम में नवजात को कैसे बचाएं विषयक गोष्ठी में कही।

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उन्होंने बताया कि इस मौसम में जो बच्चे अस्पतालों में आते हैं, वे ज्यादातर सर्दी-खाँसी से ग्रस्त होते हैं। यदि ऐसे बच्चों का इलाज समय पर न हो तो वे निमोनिया से पीड़ित हो जाते हैं। निमोनिया के प्रमुख दो लक्षण हैं। पहला खाँसी व दूसरा साँस चलना। ऐसे बच्चों को बुखार भी अक्सर होता है। निमोनिया यदि तीन माह से छोटे बच्चों में हो तो ज्यादा खतरनाक होता है। निमोनिया की वजह से अगर कोई बच्चा दूध न पी पा रहा हो, बहुत सुस्त हो, उसका तापमान कम हो रहा हो या फिट्स के दौरे भी आ रहे हों तो यह अत्यंत गंभीर अवस्था है। जन्म के समय जिन बच्चों का वजन कम होता है उन बच्चों की निमोनिया से मृत्यु होने के अवसर अधिक होते हैं। जो बच्चे कुपोषित हों या जिनको माता निकली हो या बड़ी खाँसी हो तो वे भी जोखिम से दूर नहीं हैं।

डा.शुक्ल ने बताया कि ज्यादातर मामलों में निमोनिया बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण की वजह से होता है। कुछ बच्चों में जन्मजात विकार, साँस की नली में रुकावट, एचआईवी संक्रमण या दिल में जन्मजात विकार होने से निमोनिया होता है। इस रोग के ज्यादातर मामले सर्दियों की शुरुआत में या इसके दौरान सामने आते हैं। अधिकांश रोगियों में इसका निदान खून की जाँच व छाती का एक्सरे करके किया जाता है। बैक्टीरियल निमोनिया में एंटीबायोटिक्स दवाइयाँ दी जाती हैं। इसके अलावा यदि बुखार हो तो पैरासाीटामॉल दी जाती है। बहुत तेज साँस हो तो भर्ती करने के उपरांत ऑक्सीजन दी जाती है। अगर बच्चे का खाना-पीना ठीक न हो तो सलाइन भी चढ़ाना पड़ती है। एक साल से छोटे बच्चों में जान बचाने के लिए समय पर निदान व तुरंत उपचार आवश्यक है। ग्रामीण अंचलों के अधिकांश बच्चे निमोनिया होने पर दम तोड़ देते हैं, क्योंकि वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव होता है।

इस मौके पर डा.शिखा शुक्ला, डा. वीरेंद्र यादव, डा. पवन चौरसिया, डा. वीपी गुप्ता, डा. गौरव मौर्य, डा. शशांक श्रीवास्तव, डा. पल्लवी श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।


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